भारत में अनेक प्रकार के अंधविश्वास के साथ ही फलित-ज्योतिष की बढ़ती आवर्ती समाज के लिये अत्यंत चिंताजनक विषय है समाज का बुद्धिजीवी वर्ग इस बात को भली भांति समझता है और अपने स्तर पर अंधविश्वास के खिलाफ समाज में जागृति लाने के कार्य मे कार्यरत भी है लेकिन अफ़सोस इस बात का है कि आज का मीडिया भी भाग्यवाद पर आधारित फलित ज्योतिष वास्तुशास्त्र अंक ज्योतिष हस्तरेखा आदि अंधाविश्वास व अवैज्ञानिक विषयों को बढ़ावा दे रहा है जिस कारण आज की शिक्षित युवा पीढ़ी अपना आत्मविश्वास खो कर ज्योतिष वास्तु टोटकों आदि के जाल में फसी हुई है जबकि मीडिया का कार्य समाज में अंधविश्वास को बढ़ावा देने के स्थान पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए प्रेरित करना होना चाहिए जिससे प्रत्येक व्यक्ति में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित हो और वह अंधाविश्वास से दूर हो लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जायेगा कि हमारे देश मे ऐसा बिल्कुल नहीं है और वर्तमान परिस्थिति में तो यह बेहद मुश्किल है। यदि व्यक्ति को अंधविश्वास के जाल से बाहर निकलनाहै तो उसके लिए व्यक्ति को स्वयं ही प्रयास करना होगा फलित ज्योतिष अंक विद्या वास्तु हस्तरेखा आदि, विज्ञान न होकर केवल अंधाविश्वास मात्र है इसे समझना होगा फलित ज्योतिष जैसे छद्म विज्ञान को समझकर इस अंधविश्वास के प्रति अविश्वास प्रकट कर समाज में ज्योतिषीयों के ठगी के धंधे का पर्दाफाश करने का यही उचित समय है। इसके लिए आवश्यक है ज्योतिषियों को खुली चुनौती देकर तथा ज्योतिष विज्ञान है या अन्धविश्वास इस पर ज्योतिषीयों को चर्चा के लिए आमंत्रित कर तर्क द्वारा यह कार्य किया जाना चाहिए। यह कार्य इस ग्रुप द्वारा किया जा रहा है जो पिछले सात वर्ष से जारी है और अब तक की चर्चा, तर्क-वितर्क से यही निष्कर्ष निकलता है कि फलित ज्योतिष विज्ञान नहीं है वरन एक छद्म विज्ञान है बल्कि कहना चाहिए की अंधविश्वास है।
हमारे देश में वैदिक काल से ही ग्रहों से संबंधित कथाएं और किवदंतियाँ प्रचलन में रही है वर्तमान में भी लोग इन पौराणिक कथाओं को ही सत्य मानते है हमारे देश मे आज भी ग्रहण का कारण राहु है जो सूर्य और चंद्रमा को निगल जाता है इसलिए ग्रहण लगता है, सूर्य के पृथ्वी के गिर्द घूमने से दिन और रात बनते है, ग्रह निर्जीव खगोलीय पिंड नहीं वरन देवता है जो पृथ्वी पर मनुष्य के जीवन (भविष्य) का संचालन करते हैं। इस तरह के मिथक जब तक मिटेगें नहीं तब तक सही तथ्य किसी की समझ मे नहीं आने वाले है और यह कार्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण द्वारा ही सम्भव है जिसके लिए सामूहिक रूप से प्रयास किया जाना चाहिए तभी समाज मे जागृति संभव है। प्रायः देखने मे आता है किसी ग्रह के राशि परिवर्तन, सूर्य व चंद्र ग्रहण या अन्य किसी भी खगोलीय घटना के घटित होने के महीने पहले से ही टीवी, समाचार पत्रों व अन्य संचार के माध्यम से फलित ज्योतिषीयों की बेतुकी भविष्यवाणियों का दौर प्रारम्भ हो जाता है विभिन्न टीवी चैनलों पर सभी ज्योतिषी अपनी ढफली अपना राग बजाकर अपना कूपमंडूक सुनाते रहते है लेकिन फिर भी किसी व्यक्ति की समझ में नहीं आता है कि यदि ज्योतिष विज्ञान है तो सभी ज्योतिषी अनेक प्रकार की अलग अलग भविष्यवाणी क्यों करते है इक्का-दुक्का वाक्य के अलावा अन्य किसी भी बात में समानता नहीं होती है इसलिए व्यक्ति प्रत्येक ज्योतिषी, प्रत्येक टीवी चैनल और प्रत्येक अखबार में प्रसारित व प्रकाशित बेतुकी भविष्यवाणियों को पढ़ने सुनने व देखने में अपना कीमती समय बर्बाद कर देते है इस उम्मीद में की कहीं पर किसी ज्योतिषी की बात तो सच हो जाए और वह उसके द्वार पर अथक परिश्रम से कमाए धन को लुटाने के लिए पहुँच जाएं। असल में ग्रहों के राशि परिवर्तन, ग्रहण आदि के समय ज्योतिषी आदि ठगी का धंधा करने वाले व्यक्ति दान-दक्षिणा, बतौर फीस पैसे ऐंठने इत्यादि के बहाने लोगों के मन में भय उत्पन्न करने की मंशा रखते हैं और अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु कूप मंडूक बनकर विभिन्न टीवी चैनलों पत्र पत्रिकाओं पर टर्राते रहते है चूँकि भारत जैसे देश में अंधविश्वास अपने चरम पर है जिसमें ज्योतिष प्रथम स्थान पर विराजमान है इसलिए इन कूप मंडूकों के द्वारा बिछाए जाल में फसना स्वाभाविक होता है। किसी चोर की चोरी पकड़े जाने के बाद वह चोरी करना बंद नहीं करता है बल्कि उसके विपरीत चोरी करने के नए तरीके की खोज करता है जिस से की वह पकड़ा नहीं जाए इस प्रकार से ज्योतिषी भी कभी अपना ठगी का धंधा बंद नहीं करेंगे और मूर्ख बनाने के नित नए तरीकों की खोज जारी रखेंगे जब तक "ज्योतिष विज्ञान नहीं अंधविश्वास है" व्यक्ति यह समझ नहीं लेते है। अभी ग्रहों के भविष्य सम्बधी प्रभाव को गुरुत्व बल द्वारा दर्शा कर मूर्ख बनाया जा रहा है जब व्यक्ति को गुरुत्व बल के बारे में ज्ञान हो जाएगा कि वह भविष्य नहीं बनाता है तो ज्योतिषी किसी अन्य माध्यम से भविष्य बनाएगे और तब तक बनाते बिगाड़ते रहेंगे जब तक कि व्यक्ति स्वयं को अंधविश्वास से मुक्त न कर ले। ज्योतिषीयों द्वारा अंधविश्वास का जो जहर समाज मे घोला जा रहा है उसका शिकार युवा पीढ़ी हो रही है और दिन-ब-दिन अंधविश्वास के  दलदल में फसती जा रही है लेकिन युवा पीढ़ी अंधविश्वास में इसलिए लिप्त नहीं है कि वह शिक्षित नहीं है बल्कि उनकी परवरिश ही अंधविश्वास से भरे माहौल में हुई है इसलिए वह विवश है अंधविश्वास के कारण अपना आत्मविश्वास खो चुकी है और कर्महीन जीवन यापन करना चाहती है उसकी इसी कर्महीनता का किसी रंगे सियार द्वारा भरपूर लाभ उठाया जाता है।
अंधविश्वास के कारण हुए सत्यानाश के हमारे समक्ष अनेक जीवंत उदाहरण है लेकिन उन्हें हम देखकर भी अनदेखा कर देते है दूसरों की ठोकर से सीख लेने की बजाय हम उन्हें ही संभल कर चलने की सलाह देते है भले ही स्वयं गड्ढे में क्यों न पड़े हों। आए दिन अनेक प्रकार की ठगी जालसाजी धोखाधड़ी आदि की अनेक खबरें पढ़ते है लेकिन फिर भी सजग नहीं होते और स्वयं को झूठा दिलासा देते हुए कहते है कि ऐसा मेरे साथ नहीं होगा, मुझे कोई नहीं लूट सकता क्योंकि लुटाने के लिए मैं स्वयं चलकर किसी ज्योतिषी के द्वार पर जाता हूं। जिस देश मे सुबह को गोरा बनाने वाली क्रीम का करोड़ो रूपये का व्यापार हो, उस देश मे भविष्य बताने वालों की कीमत क्या होगी यह समझना मुश्किल नहीं है दरअसल ठगी की आधुनिक परिभाषा ही बदल गई है जिस के अनुसार यदि व्यक्ति स्वेच्छा से स्वयं को ठगे जाने के लिए प्रस्तुत करे तो वह ठगी नहीं कहलाती है बल्कि वह तो उसका परम कर्तव्य है जो उसे हर कीमत पर निभाना है क्योंकि लूटने वाले ने मानसिक रूप से उसे इस कार्य के लिए तैयार किया है जिसके लिए उसने रात रात भर जागकर दिमाग खपाऊ परिश्रम किया है अतः अथक परिश्रम का फल मिलना स्वाभाविक है।
फलित ज्योतिष वास्तुशास्त्र हस्तरेखा अंक ज्योतिष फेंग शुई आदि अनेक छद्म विज्ञान के विषय आजकल बहुत प्रचलन में है विज्ञान इनमें से किसी भी विषय को विज्ञान नहीं मानता है क्योंकि इन विषयों में से कोई भी विषय विज्ञान के मापदंड पर खरा नहीं उतरता है। वास्तव में इन छद्म विज्ञान के विषयों और छद्म वैज्ञानिकों के अनुसरण के कारण हमारा सा बहुमूल्य समय नष्ट होता है, आर्थिक हानि उठानी पड़ती है, उपयोगी वस्तुएं नष्ट होती हैं और अंधाविश्वास को प्रोत्साहन मिलता है जो हमारे भविष्य के लिए खतरे की घंटी है इसलिए इन छद्म विज्ञान के विषयों को अब और अधिक बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए परंतु वास्तविकता इसके बिलकुल विपरीत है और वर्तमान स्थिति अत्यंत चिंताजनक है क्योंकि आज अंधविश्वास और छद्मवैज्ञानिक तथ्यों में अत्यधिक बढ़ोत्तरी हो रही है जिसमे हमारी युवा पीढ़ी फसती जा रही है। हमारे देश में अंधविश्वास अन्य देशों की तुलना में कुछ अधिक है जो कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण की अनुपस्थिति को दर्शाता है इसलिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण भारत की प्रथम एवं तात्कालिक आवश्यकता है यदि हम अपने दैनिक जीवन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखेंगे तो हम अपने जीवन की व्यक्तिगत एवं सामाजिक घटनाओं के तर्कसंगत कारणों को ज्ञात करने में सक्षम होंगे जिससे की भविष्य के प्रति अनावश्यक चिंता व असुरक्षा की भावना और ग्रहों के निरर्थक भय से छुटकारा मिलना सम्भव हो पायेगा।

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