ज्योतिष मे राशियों का वर्णन - राशियां जो तारों का ही समूह हैउन्ही तारों को इस प्रकार के आकार रंग रुप प्रकृति आदि देना आज के ब्रम्हांड के ज्ञान के अनुसार तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता है। वह तारे जो हमारे सौरमंडल मे ही नहीं है उनके भविष्य सम्बन्धी प्रभाव की बात आज के विज्ञान के युग मे करना तर्कसंगत नहीं है।

• मेष राशि
पित्तानिलत्रिधा त्वैक्यं श्लेष्मिकाश्च क्रियोदयः।
रक्तवर्णो बृहद्गाश्चतुष्पाद्रात्रि विक्रमी।।
पूर्ववासी नृपज्याति शैलचारी रजोगुणी।
पृष्ठोदयी पावकी च मेषराशिः कुजादिपः।।
अर्थ - पित्त वायु कफ ये तीनो मिले हुए और कफ प्रकृति हैमेष राशि का लाल वर्ण बङा शरीर चार पैर है यह रात मे बलवान है। पूर्व दिशा क्षत्रिय वर्ण पर्वतीय प्रदेश मे घूमने वाली रजोगुणी पृष्ठोदयी अग्निराशि है और इसके स्वामी मंगल है।

• वृष राशि
श्वेत: शुक्राधिपो दीर्घ: चतुष्पाच्छर्वरी बली।
याम्येटग्राम्यो वनिग्भूमि: स्त्री पृष्ठोदयो वृषः।।
अर्थ – वर्ष राशि श्वेत वर्ण लंबा शरीर चार पैर रात्रिबली दक्षिण दिशा ग्रामवासी वैश्य वर्ण  भूमि प्रिय स्त्रीसंज्ञा और पृष्ठोदयी है शुक्र इसके स्वामी है।

• मिथुन राशि
शीर्षोदयी नृमिथुनं सगदं च सवीणक्म्।
प्रत्क्स्वामी द्विपाद्रात्रिबली ग्राम्याग्रगो§निली।।
समगात्रो हरिद्वर्णो मिथुनाख्यो बुधाधिपः।
अर्थ – मिथुन राशि शीर्शोदयी पुरुष-स्त्री पुरुष गदा को लिए और स्त्री वीणा को लिए हुए पश्चिम दिशा के स्वामी द्विपद रात्रिबली ग्राम में रहने वाली वायु प्रकृति है हरे रंग का इसका श्री हैं और बुध इसके स्वामी है।

• कर्क राशि
पाटलो वनचारी च ब्रह्मणो निशि वीर्यवान।।
बहुपटुतरः स्थौल्यतनुः स्त्वगुणी जली।
पृष्ठोदयी कर्कराशिर्मृगाङ्को§धिपति स्मृतः।।
अर्थ - कर्क राशि का थोड़ा लाल और सफेद मिला हुआ रंग वनचारी ब्राह्मण वर्ण है रात में बली है यह अत्यंत विद्वान स्थूल शरीर जल में रहने वाली पृष्ठोदयी राशि है और चन्द्र इसके स्वामी है।

• सिंह राशि
सिंहः सूर्याधिपः सत्त्वी चतुष्पात्क्षत्रियो बली।
शीर्षोदयी बृहद्गात्रः पाण्डुः पूर्वेङ्द्युवीर्यवान्।।
अर्थ – सिंह राशि सतोगुणी चतुष्पद क्षत्रिय। वर्ण बलवान शीर्षोंदयी राशि लंबा शरीर पांडुवर्ण पूर्व दिशा की स्वामी दिन में बली है और सूर्य इसके स्वामी है।

• कन्या राशि
पार्वतीयाथ कन्याख्या राशिर्दिनबलानिवता।।
शीर्षोदया च मध्याङ्गा द्विपाद्याम्यचरा स्मृता।
ससस्यदहना वैश्य चित्रवर्णा प्रभञिजनी।।
कुमारी तमसायुक्ता बालभावा बुधाधिपः।
अर्थ - कन्या राशि – पर्वत में विशेष रुचिवाली दिवाबली शीर्षोंदयी माध्यम शरीर विपद दक्षिण दिशा में रहने वाली वैश्य वर्ण है धान को भूनती हुई चित्र वर्ण के वस्त्र को पहने हुए कन्या तमोगुण से युक्त बाल भाव वाली है तथा बुध इसके स्वामी है।

• तुला राशि
शीर्षोदयी द्युवीर्याढ्यस्था शूद्रो रजोगुणी।।
शुक्रो§धिपो पश्चिमेशो तुलो मध्यतनुर्द्विपात्।
अर्थ - तुला राशि शीर्षोंदयी दिवाबली शुद्र्वर्ण रजोगुणी पश्चिम दिशा की स्वामी माध्यम शरीर वाली है जिसके स्वामी शुक्र है।

• वृश्चिक राशि
शीर्षोदयो§स्थ स्वल्पाङ्गो बहुपाद ब्राह्मणो बली।।
सौम्यस्थो दिनवीर्याढ्यः पिशङ्गो जलभूचरः।
रोमस्वाढ्यो§तितीक्ष्णाङ्गो वृश्चिक्श्च कुजाधिपः।।
अर्थ - वृश्चिक राशि शीर्षोदयी छोटा शरीर अनेक चरण ब्राह्मण वर्ण उतर दिशा की स्वामी दिवाबली धुम्रवर्ण जल भूमि पर चलने वाली है रोम से युक्त शरीर अत्यंत तीखे अंगो वाली है इसके स्वामी मगल है।

• धनु राशि
अश्वजङ्घो त्वथ धनुर्गुरुस्वामी च सात्विकः।
पिङ्ग्लो निशि वीर्याढ्यः पावकः क्षत्रियो द्विपाद्।।
आदावन्ते चतुष्पाद् समगात्रो धनुर्धरः।
पूर्वस्थो वसुधाचारी तेजवान् पृष्ठतोद्गमी।।
अर्थ - धनु राशि को घोड़े की जंघा है एवं सात्विक राशि है पिंगल वर्ण रात्री बली अग्निराशि क्षत्रिय वर्ण पूर्वार्ध द्विपद और उतरार्ध चतुष्पद सामान शरीर धनुष लिए हुए है यह पूर्व दिशा की स्वामी भूमि पर रहने वाली तेजस्वी पृष्ठोदयी राशि है और इसके स्वामी गुरु है।

• मकर राशि
मन्दाधिपस्तमी भौमी याम्येट् च निशि वीर्यवान्।
पृष्ठोदयी बृहद्गात्रः मकरो जलभूचरः।।
आदौ चतुष्पादन्ते च द्विपदो जलगो मतः।
अर्थ - मकर राशि तमोगुणी भूतत्व दक्षिण दिशा की स्वामी रात्रिबली है पृष्ठोदयी बड़ा शरीर जलीय भूमि में चलने वाली पूर्वार्ध चतुष्पद और उतरार्ध द्विपद जल में रहने वाली है शनि इसके स्वामी है।

• कुम्भ राशि
कुम्भः कुम्भी नरो बभ्रुः वर्णमध्यतनुर्द्विपात्।।
द्युवीर्यो जलमध्यस्थो वातशीर्षोदयी तमः।
शूदः पश्चिमदेशस्य स्वामी दैवाकरिः स्मृतः।।
अर्थ - कुम्भ राशि घडा लिए हुए पुर्ष नेवले के रंग जैसा वर्ण माध्यम शरीर द्विपद दिवाबली जल में रहने वाली वायु प्रकृति शीर्षोंदयी और तामस प्रकृति है शुद्र वर्ण पश्चिम दिशा की स्वामी है और शनि इसके स्वामी है।

• मीन राशि
मीनौ पुच्छास्यासंलग्नौ मीनराशिर्दिवा बली।
जली सत्वगुणाढ्यश्च स्वस्थो जलचरो द्विजः।।
अपदो मध्यदेही च सौम्यस्थो ह्युभयोदयी।
अर्थ – मीन राशि दो मछलियों में एक का मुख दूसरे के पूँछ में लगा हुआ स्वरूप दिन में बली है सतोगुणी जलचर ब्राह्मण वर्ण चरणहीन माध्यम शरीर उतर दिशा की स्वामी और उभयोदयी है और गुरु इसके स्वामी है।


सुराचार्याधिपश्चास्य राशीनां गदितं मया।।
त्रिंशद्भागात्मकः स्थूलसूक्ष्माकरफलाय च।
अर्थ - इस प्रकार मैंने ३० अंश के राशियों का स्वरुप बतलाया इनके स्थूल और सूक्ष्म फल ग्रन्थों मे कहे हुए है।
वृहदपाशर होराशास्त्र राशिस्वरुपाध्यायः - ६-२४।।

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