अब तक आपने कुंडली मिलान
से संबन्धित रखने वाले विषय मांगलिक योग और विषकन्या योग के बारे मे विस्तारपूर्वक
चर्चा कराते हुए जाना की वह किस प्रकार से बोगस है आधारहीन है इस अंक मे हम कुंडली
मिलान के सबसे महत्वपूर्ण विषय अष्टकूट मिलान पर विस्तृत चर्चा कर जानेंगे की यह
भी ज्योतिष के ठगी के धंधे का ही एक रूप है।
अष्टकूट मिलान - यानि विवाह के लिए वर व कन्या की कुंडली
मे जो गुण मिलान किया जाता है उसे अष्टकूट मिलान कहते है। इसके अन्तर्गत लड़के व
लड़की की कुंडली मे - 1.वर्ण, 2.वश्य,
3.तारा, 4.योनि, 5.ग्रह
मैत्री, 6.गण, 7.भकूट, 8.नाङी (इनकी क्रम संख्या इनके अंक भी है)। यह आठ प्रकार के कूट/गुण मिलाए
जाते है। इस मिलान मे अधिकतम 36 अंक - जिन्हें गुण कहा जाता
है - होते है और न्यूनतम निर्धारित अंक 18 है अर्थात विवाह
की सम्मति के लिए ज्योतिष अनुसार वर कन्या की कुंडली मिलान मे 18 अंक प्राप्त होना आवश्यक है तभी दोनो का विवाह
उचित कहा जाता है। लेकिन वर्तमान समय मे तारों/नक्षत्र के आधार पर ऐसा मिलान कितना
सार्थक हो सकता है, जो व्यक्ति खगोल शास्त्र का सामान्य
ज्ञान रखते है उन्हें यह बताने की आवश्यकता नहीं है।
यह आठ गुण क्या है इसे भी समझ लेते है।
1.वर्ण - इसके अंतर्गत वर्ण/जाति का मिलान
किया जाता है। (matching of the castes)
2.वश्य - पति पत्नी का एक दूसरे की तरफ
आकर्षण, जो न मिलने पर नहीँ रहेगा। (attraction)
3.तारा - दोनो मे प्रेम प्यार का भाव,
जो तारा न मिलने पर पर नहीँ हो सकता। (longevity of either)
4.योनि - योनि मिलने पर ही दोनो की काम की
इच्छा मेँ मिलान रहेगा। (nature and characteristics)
5.ग्रह मैत्री - ग्रह मैत्री मिलने पर ही
उनके ग्रहों मे मित्रता रहेगी। (natural friendship)
6.गण - गण मिलने पर ही दोनों के स्वभाव मे
मिलान रहेगा। देव राक्षस नहीं मिलने चाहिए। (mental compatibility)
7.भकूट - भकूट मिलने पर ही राशियों मे
मित्रता रहेगी। (relative influence of one on the other)
8.नाङी - नाङी मिलने पर ही बच्चे होंगे व
किसी की मृत्यु नहीँ होगी। (possibility of child birth)
अब मैं जो आपको बताने जा रहा हूं वह सनत जी के अलावा
दुनिया का कोई व्यक्ति आपको नहीं बताएगा, ज्योतिषी
तो बिल्कुल नहीं बताएगें इसलिए इसे ध्यान से पढ़े और समझकर गांठ बांध लीजीए यदि
ज्योतिष के कुचक्र से बाहर निकलना चाहते है तो, अन्यथा आपकी
मर्जी।
• उपरोक्त आठ गुण से कोई भी एक गुण न मिलने
पर उनसे सम्बन्धित विषय भी सम्भव नहीं है। साथ ही इस मिलान की वैज्ञानिकता पर भी
अनेक प्रश्न उत्पन्न होते है जैसे की वर्ण - 12 राशियों को
चार वर्णों मे बांटा गया है तो क्या सभी वर्णो के व्यक्ति उसी वर्ण की राशि मे
पैदा होते है जो उनके वर्ण के अनुसार निर्धारित है। ग्रह मैत्री - ग्रहों मे
मित्रता शत्रुता के सिद्धान्त के आधार पर पति पत्नी के मध्य मैत्रीपूर्ण संबन्ध
होने की क्या गारंटी है और जिन पति पत्नी की एक ही राशि होती है इस सिद्धान्त के
अनुसार उनमे कभी कोई झगड़ा नहीं होना चाहिए पर क्या कोई ज्योतिषी इस आधार पर दोनों
के बीच आजीवन मधुर सम्बन्ध रहने की गारंटी देता है। गण – इसमे
समान गण को शुभ कहा गया है लेकिन यदि राक्षस से राक्षस मिल जाए तो क्या अपनी
राक्षसी प्रवृति का त्याग कर देंगे? यदि हम पौराणिक कथा के
अनुसार राक्षसो का तो कार्य ही लङाई झगङा करना होता था। गण जन्म फल के अनुसार
राक्षस गण मे उत्पन्न व्यक्ति क्रोधी, पापी, कलह करने वाला, दुष्टात्मा, स्वयं
पर गर्व करने वाला होता है, फिर पति पत्नी जिनकी
राशि/नक्षत्र राक्षस गण के अन्तर्गत ही आते हो वह प्रेम पूर्वक कैसे रह सकते है।
गण दोष न हो इसके लिए वर कन्या के समान नक्षत्र होने चाहिए लेकिन राक्षस गण के
नक्षत्र कृतिका मघा आश्लेषा और विशाखा मे उत्पन्न परूष/स्त्री इन्हीं नक्षत्रों मे
उत्पन्न स्त्री/पुरुष से विवाह नहीं कर सकते है क्योंकि तब नाड़ी दोष हो जाएगा।
भकूट - राशियों के मध्य मे नक्षत्रों के विभाजन का कोई वैज्ञानिक आधार न होने से
भकूट मिलान मे भी एकरूपता नहीं है चित्रा नक्षत्र के प्रथम दो चरण कन्या मे तथा
अंतिम दो चरण तुला राशि के अन्तर्गत आते है उदाहरण के लिए वर कन्या का चित्रा
नक्षत्र मे जन्म हो और दोनों का नक्षत्र चरण अलग हो तो समान नक्षत्र होते हुए भी
राशि अलग होती है जो भकूट दोष का कारण बनेगी। गण भकूट और नाड़ी इन तीने के ही
मिलाकर 21 अंक होते है यदि 36 मे से 21
घटाया जाए तो 15 शेष रहते है जो अनेक
ज्योतिषीयों द्वारा विवाह के लिए मान्य है अर्थात 15 गुण
मिलने पर भी विवाह शुभ करार दे दिया जाता है जो शास्त्र सम्मत न होते हुए अष्टकूट
मिलान के अवैज्ञानिक होने की मजबूरी है। अब प्रश्न यह है कि जब इनमे से कोई एक गुण
न मिलने पर उस से सम्बन्धित विषय सम्भव नहीं है तो फिर किस आधार पर न्यूनतम 18
अंक की प्राप्ति पर विवाह की सम्मति दी जाती है? इन प्रश्नों का उतर आपको कोई ज्योतिषी नहीं दे पाएगा क्योंकि वह स्वयं
नहीं जानते है समाज भेङ चाल का आदि हो चुका है सब वही चल रहें है इसलिए ज्योतिष भी
चल रहा है क्या, क्यों और कैसे इन शब्दों का नामो निशान नहीं
है तो ज्योतिषी से कोई प्रश्न नहीं किया जाता है सिवाय भविष्य जानने के। वास्तव मे
अष्टकूट मिलान का ज्योतिष से कोई सम्बन्ध नहीं है मुहूर्त की पुस्तक मुहूर्त
चिंतामणि मे अष्टकूट मिलान का उल्लेख मिलता है लेकिन वह ज्योतिष से सम्बन्धित
पुस्तक नहीं है न ही ज्योतिष का मुहूर्त से कोई सम्बन्ध है। मुहूर्त चिंतामणि के
छठे प्रकरण के 21वें श्लोक मे गुण मिलान का उल्लेख है परंतु
विवाह के लिए गुण मिलान कुंडली के आधार पर मांगलिक दोष विषकन्या दोष आदि को ध्यान
मे रखते हुए किया जाना चाहिए यह नहीं लिखा है। अष्टकूट मिलान की कोई वैज्ञानिक
प्रमाणिकता नहीं है क्योंकि इस मिलान का आधार जन्म नक्षत्र के चरण होते है जिनका
राशियों मे विभाजन ही अवैज्ञानिक है इसलिए अष्टकूट ज्योतिष की तरह ही बोगस है।
• कुंडली मे अष्टकूट मिलान का आधार वर/वधु
के जन्म नक्षत्र होते है एक नक्षत्र मेँ 4 चरण (part)
होते है कौन से चरण मे जन्म हुआ है उसी आधार पर दोनो की पत्रिका का
मिलान किया जाता है। गुण मिलान के अधिकतम अंक 36 होते है
परन्तु आश्चर्य की बात है कि किसी भी नक्षत्र से मिलाने पर भी 36 अंक प्राप्त नहीं होते है - आप चाहेँ तो पुष्टि के लिए स्वयं मिलाकर देख
सकतेँ है। उतर भारत मे जहां अष्टकूट मिलान किया जाता है वहीं दक्षिण भारत मे दषकूट
मिलान भी प्रचलित है दोनो मे अधिकतम निर्धारित अंक 36 ही है
लेकिन मिलान की प्रक्रिया के अन्तर्गत आने वाले विषय/बिन्दु - तारा योनि वैश्य आदि
- भिन्न है और उनके अंक भी अलग है जो गुण मिलान की सार्थकता व ज्योतिष के विज्ञान
होने के विषय पर प्रश्न चिन्ह लगाने के लिए पर्याप्त है। मुहूर्त चिंतामणि जो
मुहूर्त से संबन्धित पुस्तक है के छठे प्रकरण के 21वें श्लोक
के अनुसार –
वर्णो वश्य तथा तारा योनिश्च ग्रहमैत्रकम।
गणमैत्र भकूट च नाड़ी चेते गुणाधिका:।।
अर्थ – वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रह मैत्री, गण मैत्री, भकूट
एवम् नाड़ी ये आठ गुण होते है।
- मुहूर्त चिंतामणि के विवाह प्रकरण के
अध्याय मे केवल इन गुणों का उल्लेख किया गया है ज्योतिषीयों ने केवल अपने ठगी के
धंधे के लिए इन गुणों को इनके क्रमानुसार ही अंक देकर व न्यूनतम व अधिकतम प्राप्तांक
की बात फैलाकर समाज को इस हद्द तक भ्रमित कर रखा है कि व्यक्ति बिना कुंडली मिलान
करवाए विवाह के बारे मे सोच भी नहीं सकते हैं। अष्टकूट मिलान के अंतर्गत आठ कूट मे
से विवाह के लिए न्यूनतम कितने मिलने चाहिए इसका स्पष्ट उल्लेख कहीं पर नहीं किया
गया है इस बारे मे ज्योतिषी भी भिन्न राय रखते है अनेक ज्योतिषी गुण मिलान को
मान्यता नहीं देते है तो अनेक गुण मिलान को महत्वपूर्ण मानते है। यदि अष्टकूट
मिलान के पश्चात भी वैवाहिक जीवन सुखमय न होने पर किसी व्यक्ति ने प्रश्न कर लिया
तो कहा जाएगा कि गुण मिलान से कुछ नहीं होता है कुंडली मे अन्य बातें भी देखनी
पङती है यह कहकर ज्योतिषी गुण मिलान को व्यर्थ सिद्ध कर देते है लेकिन व्यक्ति
ज्योतिषी की चालाकी को नहीं समझ पाते है और ज्योतिषी अपने मुताबिक कभी भी कोई भी
ग्रह दोष बताकर मूर्ख बनाते रहते है। इसलिए ऐसे मिलान का कोई औचित्य नहीं है बेहतर
है की आप ज्योतिष बोगस है यह समझकर अंधविश्वास के इस कुचक्र से बाहर निकला जाए।
• नाड़ी दोष - इस अष्टकूट के गुण मिलान मे
जिस पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाता है वह है नाड़ी दोष। नाड़ी न मिलने पर विवाह के
लिए सम्मति नहीं दी जाती है क्योंकि ज्योतिष के अनुसार पति पत्नी की समान नाड़ी हो
तो कुंडली मे नाड़ी दोष होता है जिसका परिणाम मृत्यु ही कहा गया है। नाड़ी दोष होने
पर संतान नहीं होती है या मृत पैदा होती है या जीवित नहीं रहती है इस कारण नाड़ी
दोष इतना महत्वपूर्ण है। नाड़ी दोष का मृत्यु और संतान के न होने से क्या संबंध है
यह किसी ज्योतिषी को नहीं पता है लेकिन इस पर यह प्रश्न अवश्य उत्पन्न होता है कि
जब अष्टकूट मिलान का सिद्धान्त है कि न्यूनतम 18 गुण मिलने
पर विवाह किया जा सकता है - जो बिना नाड़ी के अंक जोड़े भी मिल जाते है - तो नाड़ी
नहीं मिलने से क्या फर्क पड़ता है जब सिद्धान्त कह रहा है कि विवाह कर लो फिर
सिद्धान्त की बात न मानने का कोई औचित्य ही नहीं बनता है। दूसरा प्रश्न यह है कि
यदि वर कन्या दोनों की कुंडली मे संतान होने का योग हो तो इस स्थिति मे कुंडली मे
संतान योग के सिद्धान्त को सही माना जाएगा या नाड़ी दोष को? और
दोनों की कुंडली मे संतान योग न हो और नाड़ी मिलान हो रहा हो तो कौन सा सिद्धान्त
सही है इसका निर्णय कैसे होगा - दोनों मे से एक सही तो एक ही होगा? इसी प्रकार से कुंडली के ग्रह योग अनुसार यदि पति पत्नी दोनों दीर्घायु हो
तो केवल नाड़ी न मिलने से मृत्यु कैसे हो जाएगी फिर तो सिद्धान्त बोगस हुआ और ऐसे
अंतर्विरोधी व बोगस सिद्धान्त पर आधारित कुंडली मिलान को सही कैसे माना जा सकता
है। यदि अष्टकूट मिलान का आधार नक्षत्रों के चरणानुसार वर कन्या के जन्म नक्षत्र
का मिलान किया जाए तो अधिकतर नक्षत्रों मे नाङी, भकूट,
गण आदि दोष होते है क्योंकि अष्टकूट मिलान का आधार वैज्ञानिक नहीं
है वर कन्या के समान नक्षत्र होने पर विवाह नहीं हो सकता क्योकि तब नाड़ी दोष होता
है लेकिन समान नक्षत्र होने पर गण दोष नहीं होता है, समान
नक्षत्र के अलग चरण होने से नौ नक्षत्रों मे राशि अलग होने भकूट दोष हो जाएगा तो
ऐसे अन्तर्विरोधी सिद्धान्त पर आधारित कुंडली मिलान का कोई औचित्य नहीं हुआ इसलिए
इसे विज्ञान तो बिलकुल नहीं कहा जाना चाहिए। यदि यह मिलान वैज्ञानिक पद्धति पर
आधारित होता तो हर जगह समान पद्धति होती और कुंडली मिलान के आधार पर किए गए विवाह
मे कभी कोई समस्या न होती सब सुखी जीवन व्यतीत कर रहे होते न कोई लड़ाई झगड़ा न तलाक
न ही अन्य किसी प्रकार की कोई तकलीफ होती। इसलिए सुखी वैवाहिक जीवन के लिए कुंडली
मिलान पर विश्वास न करते हुए अपनी बुद्धि और विवेक से जीवन के प्रत्येक पहलू पर
भली भांति विचार करते हुए उचित निर्णय लिया जाना चाहिए इस प्रकार से व्यक्ति के
द्वारा जो भी निर्णय लिया जाएगा वह सत्यता के अधिक निकट होगा। अष्टकूट मिलान के
अन्य पहलुओं पर आगामी अंक मे विस्तारपूर्वक चर्चा की जाएगी।
सर आपकी कहानी बहुत अच्छी लगी ।
जवाब देंहटाएंऐसी और भी कहानियाँ लिखते रहिएगा ।
रही बात ज्योतिष की तो ये ब्लॉग पढ़ के तो आपके बस की बात नही दिख रही ।
अच्छा एक प्रश्न ये भी है की क्या आपके प्रश्नो का आधार आपके सपने में आए विचार हैं ?
या आपने हमारे वेदों को पढ़ा है और तब ये प्रश्न आए ?
हमारी मानिये,
किसी अच्छे पंडितजी से मिलिए ।
५ मिनट में सारी शंका का समाधान हो जाएगा, उसके लिए इतना बड़ा ब्लॉग लिखने की ज़रूरत नही थी ।
और हमारे इतिहास को गोरखधंधा कहने की तो बिलकुल नही थी ।
आइए infosecin@protonmail.com पे बतियाना हो तो ।
नमस्कार ।
इनकी बातों में सजाई है कुंडली सिर्फ लूटने का तरिका है और कुछ भी नहीं।
हटाएंविवाह टूटने पर सारा खर्चा उस पंडित ले लेना चाहिए जिसने कुण्डलिया मिलाई थी।
जब तक इंसान स्वयं दुखी नहीं होता तब तक उसे सारी बाते बकवास लगती है लेकिन याद रहे : जब धरती लगी फटने तो प्रसाद लगा बटने . आप नही मानते है कोई बात नही लेकिन अपना ज्ञान अपने आप तक सीमित रखे ये मेरी निजी सलाह है आपकी .
हटाएंमेरी चिंता करने की बजाय आपको ज्योतिष कैसे सही है यह बताने पर ध्यान लगाना चाहिए और बजाय कुछ भी लिखने के लेख में उठाए गए प्रश्नों के सही उत्तर देने चाहिए थे (यदि आप ज्योतिषी हैं तो)। और मैने अपने बारे में इसी ब्लॉग पर जानकारी दी है चाहे तो पढ़ लेना। इसलिए मैं इस विषय पर अधुक न लिखते हुए मूल प्रश्न पर ही रहूंगा।
जवाब देंहटाएंआपने वेद के बारे में लिखा है तो यह बताइए कि कौन से वेद में फलित ज्योतिष का उल्लेख किया गया है ?
अधजल गगरी छलकत जाए। जब तक किसी विषय का पूर्ण ज्ञान न हो तो ऐसे बेतुके आर्टिकल लिख कर जनता को गुमराह करने उचित नही। जब तक कोई इस पर शोध कार्य करके शोध से प्राप्त सामग्री की प्रस्तुति के साथ यदि ऋषियों के गहन शोध को अप्रामाणिक सिद्ध न कर सके तब तक यदि किसी को इस पर विश्वास नही भी है तो उसके लिए मौन रन ही उचित होगा। यह न केवल अल्पज्ञता का सूचक है अपितु एक नैतिक उच्छशराखलता का द्योतक भी है। अतः पाठक गन ऐसे अल्पज्ञानियों से सावधान रहें। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंलेख की सामग्री का कोई शोध पूर्ण अधिकार नही है अतः इसे मान्यता देने उचित न होगा। धन्यवाद
जवाब देंहटाएंSir mujhe ek kundali milani he mujhe apka contact number milega 9999405942 WhatsApp number mera plzz reply me
जवाब देंहटाएंEk Chay banane wala comment karte dekha gaya ki sachin ko vat sahi gumaya. Per vo apni chay quality per dhyan deta.. yahi niyam sab per lagu hota. Hum jyotish etc. Per comments karte hai kyonki vobhamari samaj me nahi ati.
जवाब देंहटाएंसापेक्षिकता के कारण इस ब्रह्मांड में जो सत्य दिख रहा है, ज़रूरी नहीं कि वो सत्य ही हो और यही बात असत्य के लिए भी। कोई गुत्थी सुलझ न रही हो तो उसके भीतर के धागे ग़लत नहीं बल्कि उसे न सुलझा पाने वाले में अयोग्यता होती है लेकिन वो अपनी मर्ज़ी से जितना ज़रूरी हुआ, उतना लिया और उसे ही सत्य मान कर बाक़ी को ग़लत या बेकार मानकर दोष देते हुए छोड़ या फेंक देता है।हम (मानव) ही ने ब्रह्मांड के अनेक रहस्यों को अपनी संतुष्टि तक सुलझाया है और वे सभी उनके सामने नगण्य हैं जो आज भी अनसुलझे हैं। ज्योतिष भी उनमें से एक है। इसका वास्तविक अर्थ आज के आधुनिक युग में अनर्थ हो गया है, कारण है-शॉर्ट कट। किसी विषय और उसमें नीहित कारणों को समझने का समय नहीं है। दो सरल संख्याओं की गुणा के लिए भी हाथ कैल्क्युलेटर की ओर बढ़ते हैं। नाम राशि और जन्म राशि के बीच इसी शॉर्ट कट वाली प्रणाली से कैसे हम एक विषय (ज्योतिष) की गम्भीरता को विकृत कर देते हैं, इसके लिए मेरा एक लेख अवश्य पढ़ें-https://www.jyotishajournal.com/archives/2020/5/2/A
जवाब देंहटाएंमुझे इस ब्रह्मांड के किसी भी विषय का सम्पूर्ण ज्ञान नहीं है।जहां तक सम्भव होता है, तर्क सहित समझने का प्रयासरत रहता हूँ, लेकिन जो समझ न आए उसे बकवास कहने की हिम्मत भी नहीं करता क्योंकि मैं अपने को उसके समर्थ नहीं मानता। निकट और दूरदृष्टि दोष केवल आँखों में ही नहीं होता, हमारी समझ में भी होता है।तर्क न कर पाने या न समझ पाने के कारण या कभी कभी वहाँ तक दृष्टि ही न जाने के कारण मैं किसी विषय को अंधविश्वास नहीं कहता। दुर्भावनावश तो कभी नहीं। जिस तरह वेदों का स्रोत ज्ञात न होने पर भी वो सत्य हैं, यदि हमें ज्ञात नहीं तो इसका अर्थ यह नहीं कि कोई स्रोत होगा ही नहीं, उन्हें सुरक्षित रखने की विशुद्ध प्रणाली विकसित न रही होगी लेकिन भाषा तो विकसित थी और वैज्ञानिक भी थी, इसलिए एक दूसरे से वेद-वाक्य आगे प्रसारित होते रहे और कहीं पर आकर उनका संचयन भी होने लगा होगा। संचयन से शॉर्ट कट आ गया और अब तो क्योंकि आधुनिक कहलाने वाले मनुष्य में इन्हें केवल पढ़ने की ही क्षमता नहीं, उन्हें समझने और स्मरण करने तो बात ही छोड़िए। और यहीं से शुरू होती है उनकी आलोचना। जब सार समझ न आए तो उसे अंधविश्वास कहना ग़लत है। गलती विषय में नहीं, अपनी सुविधा अनुसार उसको अनर्थ और पथ्भ्रंश करने वालों की है। मुहूर्त चिंतामणि का भी स्रोत अज्ञात है, लेकिन मानव जीवन के क्रम में अनुशासन और उसके फलस्वरूप वह आनंदित और उन्नतशील बना रहे, उसी के संदर्भ में संस्कृत भाषा में वाचन है जिसे विद्वानों ने टीका के साथ प्रस्तुत किया है। स्थूल रूप में बिना किसी गणितीय परिकलन के सीधे केवल १५ गुणों के आधार पर वैवाहिक सम्बन्ध बताने वाले पोंगे लोग ही एक गम्भीर विषय का उपहास कराते हैं। समस्या ये है के ऐसे ही लोगों की अधिकता हो रही है, विषय पर अनुसंधान करने वालों की कम। पहले के साहित्यों को दुर्भावना वश भी विलुप्त किया जाता रहा है जिसके कारण हम कुछ रहस्यों के तर्कसंगत हल ढूँढते रहते हैं। लगभग १०० साल पहले श्री रामानुजन ने ३७ वर्ष की आयु तक ऐसी गणितीय संक्रियाएँ लिख दीं जिनका उस समय मज़ाक़ उड़ाया गया और आज देश विदेश के बच्चे उन पर अनुसंधान करते है और आधुनिक युग होते हुए भी अभी भी उनमें से अनेक संक्रियाएँ अनसुलझी हैं। हम ही थे जो धरती की सूरज के चारों ओर गति को ग़लत बताते थे। हमारे ये साहित्य उस समय से भी पहले हैं। सूर्य सिद्धांत का गणित आज भी गणित के विद्वानों को आसानी से समझ नहीं आ सकता, आज के पोंगों की तो औक़ात ही नहीं, इसका मतलब ये नहीं कि वह मिथ्या है। बहुत कुछ उदाहरण देने का मन है लेकिन फिर कभी सही। कोई मेरी बातों को व्यक्तिगत न ले। धन्यवाद।