मांगलिक दोष क्या होता है यह आप जानते ही है नहीं जानते है तो एक बार फिर से बता देता हूं कुंडली मे लग्न चंद्रमा या शुक्र से 1,4,7,8,12, भाव मे से किसी एक मे मंगल स्थित हो तो मांगलिक दोष होता है इस पर विस्तृत चर्चा की जा चुकी है तो और अधिक उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है। पिछले अंक मे आप अष्टकूट मिलान के विषय मे भी जान ही गए है इस अंक मे अष्टकूट मिलान और मांगलिक दोष के आपसी संबंध पर चर्चा कर जानेंगे की ज्योतिषी किस प्रकार से अष्टकूट मिलान और मांगलिक दोष का घाल-मेल कर समाज को मूर्ख बना रहे हैं।
विवाह के लिए कुंडली मिलान मे मांगलिक दोष का कितना महत्व है यदि मांगलिक दोष के विषय मे फैलाए गए डर से तुलना की जाए तो बहुत अधिक है गुण मिलान से भी अधिक महत्व मांगलिक दोष को दिया जाता है। प्राय देखने मे आता है कि अष्टकूट मिलान मे विवाह के लिए न्यूनतम निर्धारित 18 व इस से अधिक गुण मिलने के पश्चात भी मांगलिक दोष के कारण सब गुङ गोबर हो जाता है और दूसरी ओर कुंडली मे मांगलिक दोष न होने पर अष्टकूट मिलान मे न्यूनतम निर्धारित गुण न मिलने के कारण ज्योतिषी द्वारा विवाह के लिए सम्मति नहीं दी जाती है यह दोनो बातें विरोधाभासी है और कुंडली मिलान की सार्थकता पर प्रश्न चिन्ह लगाती है। मांगलिक दोष और अष्टकूट मिलान दोनो एक दूसरे के विपरीत बात करते हैं ज्योतिष की इस गलती पर ज्योतिषीयों का ध्यान गया और इस गलती को सुधारने अर्थात निपटने के लिए उन्होने नया सिद्धांत बना दिया कि यदि अष्टकूट मिलान मे 28 या इस से अधिक गुण का मिलान हो रहा हो तो मांगलिक दोष नगण्य होता है या समाप्त हो जाता है असल मे यह सिद्धांत भी बोगस ही है क्योंकि मंगल ग्रहयह कभी नहीं जान सकता है की किस व्यक्ति की कुंडली मे 28 गुण मिल रहे है और किसके नहीं अन्यथा न तो 27 गुण पर मांगलिक दोष का प्रभाव जारी रख सकता है न ही 28 गुण मिलने पर समाप्त कर सकता है। लेकिन 28 गुण मिलने पर मंगल दोष समाप्त होने के इस बोगस सिद्धान्त से आम व्यक्ति जो ज्योतिष के धन्धे और ज्योतिषीयों की चालाकी से अन्जान है, उन्हे मूर्ख बनाना सरल हो गया उनकी मन:स्थिति व परिस्थिति अनुसार कभी 28 से अधिक गुण मिलान के पश्चात मांगलिक दोष भुला दिया जाता है तो कभी किसी मालदार ग्राहक को देखते ही हौवा बनाकर पेश किया जाता है और उपाय के नाम पर लूटा तो सभी को जाता है। दूसरा सिद्धांत बना दिया कि 28 वर्ष की आयु के बाद मंगल दोष स्वत ही समाप्त हो जाता है जिस पर प्रश्न उठना लाजमी है कि क्या मंगल ग्रह प्रत्येक व्यक्ति की आयु का हिसाब किताब रखता है तो किस प्रकार से? विश्व की पूरी जनसंख्या का न सही लेकिन 40 प्रतिशत जनसंख्या की आयु का हिसाब किताब तो रखना ही पङेगा तभी वह जो व्यक्ति 28 वर्ष के हो चुके है उनके नाम अपनी हिट लिस्टसे हटा पाएगा क्योंकि उनकी कुंडली मे मांगलिक दोष होता है। अष्टकूट मिलान और मांगलिक दोष का ज्योतिष की किसी भी प्राचीन पुस्तक मे उल्लेख नहीं है तो मांगलिक दोष 28 वर्ष के बाद समाप्त हो जाता है या 28 गुण मिलने पर नगण्य हो जाता है इसका उल्लेख भी कहाँ से होगा - जाहिर है यह सिद्धान्त भी मनगढ़ंत है। ज्योतिषी अपने हर समस्या का समाधानके बैनर तले प्रत्येक ग्रह दोष का निवारण करते है इसलिए व्यक्ति भी ग्रह दोष का निवारण पूछते है तो निवारण के नाम पर ऐसे सिद्धान्त बना दिए गए है जिससे की अंधविश्वासी और ग्रहों से भयभीत व्यक्तियों को मूर्ख बनाया जा सके।
कुंडली मिलान के अंतर्गत अष्टकूट मिलान ही आता है जिसके अंतर्गत वर कन्या की कुंडली मे केवल गुण मिलान किया जाता है अन्य कुछ नहीं। मांगलिक दोष सहित अनेक दोष इस मिलान के साथ जोड़ दिए गए है जिससे की ठगी के धंधे का दायरा और विस्तृत हो और अधिक से अधिक व्यक्ति अपना धन लुटाने के लिए ज्योतिषी के द्वार पर बैठे रहे। अष्टकूट मिलान मे इसका उल्लेख नहीं है कि विवाह से पूर्व कुंडली मिलान के समय अष्टकूट मिलान के साथ मांगलिक दोष पर भी विचार किया जाए क्योंकि अष्टकूट मिलान के सिद्धान्त अनुसार गुण मिलान स्वयं मे पूर्ण है इसलिए अन्य किसी विषय पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है। अष्टकूट मिलान के सिद्धान्त अनुसार गुण मिलान इसीलिए किया जाता है कि वर कन्या का वैवाहिक जीवन सुखमय हो उनमे किसी प्रकार का वैचारिक मतभेद, तलाक, वैधव्य, संतान उत्पति मे बाधा आदि समस्याएँ न हो। यह सभी विषय अष्टकूट मिलान के अंतर्गत आ जाते है तो मांगलिक दोष आदि पर विचार करने की आवश्यकता क्यों होती है? अष्टकूट मिलान के सिद्धान्त अनुसार न्यूनतम 18 गुण मिलान होने पर विवाह किया जा सकता है, तो कुंडली मे मांगलिक दोष या अन्य किसी दोष से क्या अंतर पड़ जाएगा? स्पष्ट रूप से अष्टकूट के सिद्धान्त को ही नकारने का अर्थ है कि इस मिलान का कोई औचित्य नहीं है, यदि है तो मांगलिक दोष को महत्व नहीं दिया जाना चाहिए। मांगलिक दोष के सिद्धान्त अनुसार मांगलिक दोष युक्त स्त्री/पुरुष का विवाह मांगलिक दोष युक्त पुरुष/स्त्री के साथ ही किया जाना चाहिए जिस पर यह प्रश्न उठता है की यदि दोनों की कुंडली मे विवाह के लिए आवश्यक न्यूनतम 18 गुण नहीं मिल रहे हो तो निर्णय किस आधार पर लिया जाएगा एक ओर ज्योतिषी द्वारा 18 से अधिक गुण मिलने पर मांगलिक दोष के कारण विवाह के लिए सम्मति नहीं दी जाती है तो दूसरी ओर बिना मांगलिक दोष के विवाह इसलिए शुभ करार नहीं दिया जाता क्योंकि न्यूनतम आवश्यक गुण का मिलान नहीं हो रहा होता है यह स्थिति विरोधाभासी है दोनों सिद्धांत एक दूसरे के विपरीत है जो ज्योतिषी आपको कभी नहीं बताएंगे और जिज्ञासा न होने के कारण आप कभी जान नहीं पाएंगे इसलिए ज्योतिष विज्ञान है, ज्योतिषी गलत हो सकता है ज्योतिष नहींआदि वाक्य की रट्ट लगाते रहेंगे और आजीवन बोगस ज्योतिष के बोगस सिद्धांतों पर से ज्योतिषी द्वारा यूं ही मूर्ख बनाए जाते रहेंगे जिस तरह से वह सदियों से बनाते चले आ रहे हैं।
मांगलिक दोष विवाह की आयु के समय ही क्यों प्रकट होता है प्रश्न बचकाना प्रतीत हो सकता है लेकिन है नहीं। यदि आपने इतिहास पढ़ा हो तो जानते ही होंगे कि पहले बाल विवाह होते थे 5/7/9/13 वर्ष की आयु मे ही विवाह हो जाता था जो बाल विवाह कानून बनने के पश्चात बन्द हो गए। अब इस पर यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि जो मंगल पहले 5/9/13 वर्ष की आयु मे ही विवाह के समय मांगलिक दोष का फन लहराने लगता था, आज वह 27/28 वर्ष की आयु तक इन्तजार क्यों करने लगा क्या यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण नहीं है कि ज्योतिष बोगस है और मंगल(ग्रहों) का ऐसा कोई प्रभाव नहीं होता है जो विवाह संतान तलाक वैधव्य आदि विषयों को प्रभावित करता है। यदि आपका अन्धविश्वासी दिमाग इस तर्क को स्वीकार न करते हुए इस तथ्य पर विचार नहीं कर सकता तो न सही लेकिन इस बात पर तो विचार किया जा सकता है सभी स्त्री पुरुष का विवाह एक आयु मे नहीं होता है और अलग समय पर होता है किसी का तो होता ही नहीं है तो पृथ्वी से 7.8 करोङ किलो मीटर दूर मंगल को कैसे पता चलता है कि किस व्यक्ति का विवाह हो चुका है और किसका नहीं तभी तो वह उनकी कुंडली मे निष्क्रीय अवस्था मे पङे हुए अपने मांगलिक दोष के प्रभाव को जागृत कर वैहाविक जीवन का बेङा गर्क कर पाएगा।
उपरोक्त विश्लेषण से आप समझ सकते है की अष्टकूट मिलान और मांगलिक दोष दोनों ही बोगस है फलित ज्योतिष के बोगस होने से दोनों का कोई औचित्य नहीं है दोनों सिद्धांतो मे कोई मेल नहीं है दोनों सिद्धान्त स्थिति को स्पष्ट करने की बजाय विरोधाभासी स्थिति उत्पन्न करते है जिससे की कोई स्पष्ट निर्णय नहीं लिया जा सकता है इसलिए वैवाहिक जीवन से सम्बन्धित सही भविष्यवाणी भी नहीं की जा सकती है। अतः ज्योतिषी व्यक्ति की परिस्थिति के अनुसार अपनी मनमर्जी से टुल्लेबाजी करते है जिसे भविष्यवाणी समझा जाता है जो किसी संयोग वश सही निकलने पर या सत्य के आस पास रहने पर ज्योतिषी के चरणों मे साक्षात दंडवत प्रणाम कराते हुए ज्योतिषी और ज्योतिष दोनों की जय जय कार की जाती है। अंधविश्वास के कारण समाज मे ग्रहों के डर - विशेषत मंगल ग्रह के विषय मे वैवाहिक जीवन को बरबाद करने से संबन्धित फैलाये गए से अनेक युवाओं का विवाह नहीं हो रहा है अनेक व्यक्तियों की तो कुंडली मिलान करते विवाह की आयु ही पार हो गई कहीं गुण नहीं मिल रहे है तो कहीं मांगलिक दोष निकाल आता है कहीं कुछ तो कहीं कुछ। ज्योतिषी जो अपनी व अपने बच्चों की कुंडली का सही मिलान नहीं कर पाए वह अन्य किसी की कुंडली का सही मिलान कैसे कर देंगे? जिनकी अपनी संतान बाकायदा कुंडली मिलाने के पश्चात भी कोर्ट कचहरी के चक्कर काट रही है वह किसी अन्य के वैवाहिक जीवन को सुखी कैसे कर देंगे? जो ज्योतिषी हर समस्या का समाधानका बोर्ड लटाकर घूम रहे है, उनकी अपनी समस्याओं का समाधान तो हो नहीं रहा है दूसरों की समस्याओं का समाधान कहां से कर देगें? – यदि आप इन बातों पर भी विचार नहीं कर सकते है तो आप मूर्ख बनाकर लूटने के लिए है इस पृथ्वी पर अवतरित हुए है फिर आपको कोई नहीं बचा सकता है सिवाय आपके वह होने से रहा।

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