माई माल इतना दीजीए, जो घर मे न समाय ।
IT को पता न चले, नहीं तो रेड पङ जाए ।।
ज्योतिषी हुआ तो क्या हुआ, जैसे ठग मशहूर ।
सिद्धांत का पता नहीं, भविष्यवाणी अति दूर ।।
रात गवाई राशि रटि, दिवस गवाया रट्ट ग्रह चाल
।
भोर मूर्ख एक ऐसा लुटिए, दमङी बचे न खाल ।।
पढ़त पढ़त ज्योतिष के, उङ गए सर के बाल ।
सिद्धांत सही मिला नही, बदले ग्रह की चाल ।।
कर्म ऐ जन्म न जानि, खोले पहले की पोथी ।
भला मानस का जानि, चूना लगाए रहे पोती ।।
ज्योतिषी ऐसा चाहिए, जो तिलक हुए लगाय ।
सिद्धांत एक न आवे, पल मे मूर्ख दिए बनाय ।।
रद्दी मे दे दियो सब कबाड़, कछु मति राखि आपन पास ।
ठगी की किताबे मत दियो, मोहे सिद्धांत मिलण की आस
।।
ज्योतिषी पल न जाने आपणा, बांचे कोसो दूर ।
औरन का पता नहि, पेङ अमिया तोङि रहे खजूर
।।
दशा राहु चल रही, और लगि गयो साढे साती ।
अब फेर मे ऐसो फसो, नींद न आवै दिन राति ।।
निन्दक देखि आपणा, किए बन्द किवाङ ।
ऐ मना समझ लै तोसे, होई रहे खिलवाङ ।।
करत करत टोटका, भया जीवन कंगाल ।
ग्रह दशा न बदली, ठग भये मालामाल ।।
जन्म ले ज्योतिषी द्वार, ठगत रहि संसार ।
ता सै तो ऊ चोर भला, लूटे एक ही बार ।।
टुल्लेबाजी अनमोल है, जै कोई करि जानि ।
ग्राहक जेब तौलि के, तब मुख बाहर आनि ।।
नाम न पूछे ग्राहक का, पूछि लै भूतकाल ।
अच्छे से जानि के, बता देय भविष्यकाल ।।
कर्म सो आज संचे, आगे जन्म काम आये ।
ग्रह दिखाय ज्योतिषी, सब परगट हो जाये ।।
टोकका करे धन मिले, मैं करु बार बार ।
राश्न घर मे रखिए, हफ्तो खाए परिवार ।।
दशा तेरे ग्रह की, जब देखूं तब नीच ।
कुंडली को फूंक दे, आपे सब ग्रह ठीक ।।
ठगी-ठोरी सब करे, ईमानदारी विरला कोय ।
ठगी करे सब लूटै, वो बङा ज्योतिषी होय ।।
सनत कबहुं न मिलावै, देखि दूर भाग जाय ।
कब सिद्धांत पूछि के, होश उडि़ लिए जाय ।।
जो तो को सनत मिलहुं, उसको करि प्रणाम ।
सब ज्ञान धरा रह जावे, व्यर्थ सारे प्रमाण ।।
कल लूटे सो आज लूट, आज लूटे सो अब ।
सनत किताब रटि लिये, फिर लूटेगा कब ।।
कहना सो कह दिया, अब कुछ कहा न जाय ।
समझ गए ठीक है, नहीं तो क्या किया जाय ।।
समझ गए ठीक है, नहीं तो क्या किया जाय ।।
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