क्या ग्रहों का प्रभाव देश काल और परिस्थिति अनुसार पङता है जैसा कि ज्योतिषीयों द्वारा कहा जाता है।
देश काल और परिस्थिति यह शब्द आए कहां से - प्राचीन समय मे राजा महाराजा और विशिष्ठ व्यक्तियों की कुंडलियां ही बनती थी इसके अलावा कोई बेहद अमीर व्यक्ति ही कुंडली बनवा सकता था। स्पष्ट है कि भविष्यवाणी भी राजाओं महाराजाओं के लिए ही होती थी। ज्योतिषी की कही कोई बात गलत निकले या उस से किसी प्रकार की हानि हो जाए तो ज्योतिषी को मृत्यु दंड भी दिया जा सकता था - शायद बहुत से मरे भी होगें(आज की तरह तो है नहीं कि एक ज्योतिषी की भविष्यवाणी गलत निकलने और टोटके से लाभ न होने की स्थिति मे उस ज्योतिषी की गर्दन पकङने की बजाय किसी दूसरे ज्योतिषी के पास पैसे लुटाने पहुंच जाते है) - इसलिए ज्योतिषी को अपनी भविष्यवाणी अर्थात कुछ भी कहने से पूर्व स्थान समय व परिस्थिति को ध्यान मे रखना पङता था। यूं समझे कि युद्ध के समय जीत हार की भविष्यवाणी करने से पहले दोनो राज्यो की सैन्य शक्ति, युद्ध कौशल, अस्त्र शस्त्र, युद्ध नीति आदि का विश्लेषण करना आवश्यक था तभी कोई बात कही जा सकती थी इसलिए देश काल और परिस्थिति की बात कही गई। इसके पीछे कोई वैज्ञानिक तर्क/तथ्य नहीं है और ज्योतिषी आज भी व्यक्ति के स्थान समय और परिस्थिति अनुसार ही भविष्यवाणी करते है न कि सिद्धांत अनुसार।
ज्योतिषी ग्रहों के प्रभाव को देश काल और परिस्थिति अनुसार पङना कहते है यह बात केवल मूर्ख बनाने के लिए ही कही जाती है ज्योतिष की किसी भी प्राचीन कही जाने वाली पुस्तकों मे इस बात का उल्लेख नहीं है कि भविषयवाणी देश काल और परिस्थिति के अनुसार की जानी चाहिए। ग्रहों को न तो पृथ्वी पर कितने देश है इसका पता है, न हर देश के टाईम जोन का, न अक्षांश देशांतर का, और न ही किसी देश की परिस्थिति का। आजादी से पहले भारत मे ही 563 रियासतें थी जिन्हे मिलाने के बाद भारत देश बना तो ग्रहों को कौन से देश की सीमा कितनी और कहां तक है यह भी पता नहीं है देश के अन्दर के राज्य जिले तहसील शहर ग्राम की सीमा के पता होने का प्रश्न ही नहीं उठता है इसलिए ग्रह देश काल और परिस्थिति अनुसार प्रभावित कैसे कर सकते है जब उन्हे उसका पता ही नहीं है। आज ज्योतिषी इन्टरनेट के माध्यम से देश विदेश के व्यक्तियों की कुंडलियां देखते है परन्तु सभी के लिए सिद्धांत तो एक जैसे ही लगा रहे है और जो देश काल परिस्थिति अनुसार लागू नहीं होते है। ज्योतिष के सिद्धांत यदि वैज्ञानिक पद्धति से बनाए गए है तो देश काल परिस्थिति अनुसार बदलने से रहे मेष राशि का स्वामी मंगल है सूर्य की दशा 6 वर्ष की है शनि की नीच राशि मेष है आदि सिद्धांत देश काल परिस्थिति अनुसार कैसे बदल सकते है यदि सिद्धांत प्रत्येक देश समय और परिस्थिति अनुसार बदल जाते है तो विषय ही बोगस हुआ। इसी प्रकार से सूर्य के मेष राशि या पंचम भाव मे स्थित होने का जो फल है वह भारत मे जन्मे व्यक्ति के लिए अलग अमेरिका मे जन्मे व्यक्ति के लिए अलग कैसे हो जाएगा फिर तो सिद्धांत ही बोगस हुआ। इसी प्रकार मंगल 7वें भाव मे स्थित होकर मांगलिक दोष बना रहा है तो व्यक्ति दुनिया के किसी कोने मे भी चले जाए दोष मिटने से रहा! कहने का अर्थ है कि ज्योतिष के सिद्धांत/फल देश काल और परिस्थिति अनुसार नहीं बदल सकते है। इतना अवश्य है कि ज्योतिषी किन्हीं दो देशों मे जन्मे व्यक्तियों के देश काल और परिस्थिति अनुसार टुल्लेबाजी करेगें क्योंकि प्रत्येक देश के व्यक्ति का रहन सहन, खान पान, प्रकृति, सामाजिक व पारिवारिक परिवेश आदि सभी कुछ भिन्न होता है इसलिए टुल्लेबाजी भी उसी अनुसार अलग होगी। आज व्यक्ति अपने जन्म स्थान से अन्यत्र भी जा बसते है नौकरी व्यापार करने वाले असंख्य व्यक्तियों का स्थान परिवर्तन होता ही रहता है अनेक व्यक्ति घूमने के लिए देश विदेश की यात्राएं करते है ज्योतिष अनुसार सभी की कुंडली उनके जन्म स्थान समय अनुसार ही बनेगी तो ग्रहों का प्रभाव जन्म स्थान अनुसार पङेगा या रह रहे स्थान अनुसार, और ग्रह व्यक्ति के जन्म व वर्तमान स्थान को किस प्रकार सुनिश्चित करते है। ज्योतिषी तो बताते ही है कि इस/उस देश/स्थान की यात्रा करना, रहना या व्यापार आदि के लिए सही रहेगा तो व्यक्ति को उसी देश/स्थान मे चले जाना चाहिए जहां ग्रह उन्हे ज्योतिष के सिद्धांतो के विपरीत शुभ फल दे - पर क्या ग्रह वहां उस व्यक्ति को तंग नहीं करेगें ? और ग्रहों को कैसे पता चलेगा कि व्यक्ति किस समय कौन से स्थान पर है। आधुनिक युग मे करोङो व्यक्ति हवाई जहाज मे यात्रा करते है और जहाज पृथ्वी से 30 हजार फुट की ऊंचाई पर उङते है यानि कि देश काल और परिस्थिति से बहुत दूर उङान भरते हुए जहाज मे सवार व्यक्तियों पर यह नियम कैसे लागू होगा। चन्द्रमा पर मानव पहुंच ही चुका है आने वाले कल मे अन्तरिक्ष मे बन रहे स्टेशन पर भी रहेगा और भविष्य मे मंगल ग्रह पर भी उतर जाए तो उन सभी व्यक्तियों का भविष्य को ग्रह कैसे प्रभावित करेगे वह भी उन सिद्धांतो के अनुसार जो पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्य के लिए रचे गए है न कि हवाई जहाज मे उङ रहे, स्पेस स्टेशन मे रह रहे, चन्द्रमा मंगल पर चहलकदमी कर रहे व्यक्तियों के लिए। उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि देश काल और परिस्थिति अनुसार ग्रहों के प्रभाव की बात मूर्ख बनाने के लिए ही कही जाती है यदि किसी व्यक्ति की कुंडली मे कोई सिद्धांत सही लग गया तो सिद्धांत सही यदि नहीं तो देश काल परिस्थिति की बात कहकर उसी सिद्धांत का फल बदल दिया जाता है और ज्योतिष सही हो जाता है।
ग्रहों का प्रभाव देश काल परिस्थिति अनुसार, और सिद्धांत अनुसार यह दोनो बातें अलग है और एक दूसरे के विपरीत है। यदि ग्रह देश काल परिस्थिति अनुसार प्रभावित करते है तो सिद्धांत गलत है और यदि ग्रहों का प्रभाव सिद्धांत अनुसार पङता है तो देश काल परिस्थिति की बात के कोई मायने नहीं है क्योंकि सिद्धांत निश्चित है वह किसी भी सूरत मे नहीं बदल सकते है लेकिन यह बात ज्योतिषी आपको नहीं बताएगें और इसी प्रकार से अपने ठगी के धन्धे के लिए दो विपरीत बात कर के मूर्ख बनाते रहेगें। यदि ग्रह देश काल और परिस्थिति अनुसार ही प्रभावित करते है तो (उन्हे ज्योतिष के सिद्धांत अनुसार ही कार्य करना होगा) जुङवा बच्चो का भविष्य एक जैसा क्यों नहीं होता है एक ही स्थान समय पर जन्म लेने के कारण दोनो का भविष्य एक जैसा ही होना चाहिए, फिर ग्रह दोनो को अलग अलग कैसे प्रभावित करते है ग्रह योग तो दोनो की कुंडली मे एक जैसे ही होते है। ज्योतिषी ऐसे प्रश्नो के उतर को पूर्व जन्म के कर्मो पर डाल देते है अथवा शोध की बात कहकर स्वयं को अलग कर ठगी के धन्धे को बचाया जाता है। चूंकि व्यक्ति अपनी बुद्धि का इतना प्रयोग नहीं करते है कि ज्योतिषी की चालाकी को पकङ सके इसलिए ज्योतिषी द्वारा कही गई किसी भी बात को सच मान लेते है अतः पूर्वजन्म के कर्म की बात को स्वीकार कर लिया जाता है। पूर्वजन्म के कर्म की बात भी मूर्ख बनाने के लिए कही जाती है ग्रहों ने फल व्यक्ति की जन्म कुंडली मे अपनी स्थिति अनुसार देना है जो लग्नानुसार तय होता है और जुङवा बच्चो के लग्न, राशि, ग्रह योग, दशा आदि सब एक जैसे होते है तो पूर्व जन्म मे चाहे कैसे भी कर्म क्यों न किए हो ग्रहों को इस जन्म मे उनकी कुंडली अनुसार फल देना है, जो न तो देश काल परिस्थिति अनुसार भिन्न हो सकता है न ही कुंडली/सिद्धान्त के अनुसार क्योंकि दोनो का जन्म एक ही स्थान समय पर होता है अतः जो सिद्धांत एक की कुंडली मे प्रयुक्त होगा वही दूसरे की कुंडली मे प्रयुक्त होगा फिर ग्रहों का प्रभाव/फल अलग अलग कैसे पङेगा/होगा। और देश काल परिस्थिति अनुसार भी ग्रहों के द्वारा दोनो के भविष्य को अलग अलग प्रभावित कर अलग अलग फल देना सम्भव नहीं है अतः स्पष्ट है कि ग्रहों का भविष्य पर कोई प्रभाव नहीं है देश काल परिस्थिति अनुसार भी नहीं। बात जुङवा बच्चों पर पङने वाले प्रभाव की ही नहीं है बल्कि विश्व के समस्त व्यक्तियों की है। यदि आप देश काल और परिस्थिति अनुसार ग्रहों के प्रभाव की बात को मान भी लें तब भी यह बात गलत है क्योंकि ग्रहों को ज्योतिष के सिद्धांत अनुसार फल देना है क्योंकि सिद्धान्त इसलिए बनाये गए है और एक ही स्थान, दिन और समय पर अनेक बच्चे पैदा होते है एक जैसे ग्रह योग के साथ, इसलिए ज्योतिष के सिद्धांत अनुसार देखा जाए तो उन सभी का भविष्य एक जैसा ही होना चाहिए और यदि देश काल अनुसार देखा जाए तो एक ही स्थान समय पर जन्म लेने वाले अनेक व्यक्तियों का भविष्य एक जैसा ही होना चाहिए दोनो ही स्थितियों मे ग्रह अलग अलग प्रभावित नहीं कर सकते है। विश्व मे किन्ही दो व्यक्तियों का भविष्य भी एक जैसा नहीं होता है तो असंख्य व्यक्तियों का सम्भव ही नहीं है इसलिए सिद्धांत भी बोगस है और ग्रह देश काल परिस्थिति की बात भी गलत है। ग्रहों का ऐसा कोई प्रभाव नहीं होता है जो ज्योतिष के सिद्धांत अनुसार या देश काल परिस्थिति अनुसार भविष्य को प्रभावित करते हुए जीवन की घटनाओं को लागू कर सके। अब अगर ग्रह, देश काल और परिस्थिति अनुसार प्रभावित करते है तो ज्योतिष के सिद्धांत बोगस है, यदि सिद्धांत सही है तो एक ही स्थान वर्ष तिथि और समय पर पैदा होने वाले अनेक व्यक्तियों की एक जैसी कुंडली होने के बावजूद भविष्य भी एक जैसा होना चाहिए। अनेक व्यक्तियों का भविष्य न तो ज्योतिष के सिद्धांत अनुसार एक जैसा हो सकता है न ही देश काल और परिस्थिति अनुसार इन दो विपरीत बातो से कोई भी व्यक्ति समझ सकता है कि ज्योतिष बोगस है। ज्योतिष के सिद्धांत अनुसार ग्रहों का फल और देश काल परिस्थिति अनुसार फल - यह दोनो बाते अन्तर्विरोधी है इसलिए ज्योतिषी चाहें तो आकर इस विषय पर चर्चा कर सकते है कि ग्रह ज्योतिष के सिद्धांत अनुरूप, देश काल और परिस्थिति अनुसार कैसे प्रभावित करते है।

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