कर्मस्थाने
निजक्षेत्री यदि राहुर्भवेदिह।
भौमशुक्रबुधैयुर्क्त:
क्षणे वृद्धि: क्षणे क्षय:।। गर्गहोराशास्त्र 1/25
अर्थ - दसवें भाव
मे राहु की राशि मे मंगल, बुध और शुक्र के
साथ स्थित हो तो क्षण मे वृद्धि क्षण मे क्षय होता है।
विश्लेषण - राहु
किसी भी राशि का स्वामी नहीं है अर्थात उसकी कोई राशि नहीं है तो फिर "राहु
की राशि में" कोई ग्रह कैसे स्थित हो सकता है? इस पर ज्योतिषी यह तर्क भी दे सकते है कि गर्गाचार्य ने मेष
व वृश्चिक राशि को राहु की राशि कहा है, पर इन दोनों राशियों का स्वामी ग्रह तो मंगल है फिर राहु को क्यों दे दी गई ?
और ऋषि गर्ग के समय मे तो राशियां थी ही नहीं न
ही राशियां ऋषियों ने बनाई थी, तो वह किसी ग्रह
को किसी राशि का स्वामी नहीं बना सकते थे और न उन्होनें बनाया था। जाहिर है कि
सिद्धांत बोगस है और फलित ज्योतिष ठगी का धन्धा है जो उन ऋषियों के नाम पर किया जा
रहा है जिनका कि फलित ज्योतिष से कोई सम्बन्ध ही नहीं है। इतने मे ही मैंने अनेक
तथ्य उजागर कर दिए है अब जो जिज्ञासु होगा वह समझ जायेगा कि ज्योतिष बोगस है और
ज्योतिषी ठग, इनसे दूर रहने मे
ही भलाई है बाकि मूर्खों का क्या है वह तो बने ही ज्योतिषीयों का पेट भरने के लिए
है।
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