ज्योतिषी किस प्रकार से
बोगस ज्योतिष के बोगस सिद्धांतो पर से मूर्ख बना रहें है यह आप जान ही गए होगें
परन्तु ज्योतिषी ज्योतिष के नियमो को ही दरकिनार कर मूर्ख बना रहें है यह आप शायद
ही जानते होगें। आपने केवल विंशोतरी दशा का नाम ही सुना होगा क्योंकि ज्योतिषी
मुख्यतः विंशोतरी दशा का ही प्रयोग करते है इसी शृंख्ला मे बात करें तो ज्योतिष मे
विंशोत्तरी दशा के पश्चात भी अनेक दशाएं है जिनमे अष्टोत्तरी योगिनी षोडशोतरी
चरदशा पाचकदशा नैसर्गिक और अष्टकवर्ग आदि अनेक दशाएं है। ज्योतिष के शास्त्र
वृहद्पाराशर होराशास्त्र मे ही ४२ तरह की दशा का उल्लेख किया गया है जिनमे से
ज्योतिषीयो द्वारा केवल विंशोतरी दशा को ही प्रमुख रुप से फलित के लिए लिया जाता
है जब्कि अन्य सभी दशाओं से फलित करने का उल्लेख किया गया है।
बृहद्पाराशहोराशास्त्र मे दशाफल अध्याय के अन्तर्गत पहले दस श्लोक केवल इन्ही ४२
दशाओ के नाम से भरे है - सभी के दशा वर्ष भी अलग अलग है व जन्म के समय कौन सी दशा
पहले प्रारम्भ होगी इसकी गणना की विधि भी अगल है। उन सभी पर तो चर्चा नहीं की जा
सकती है परन्तु ज्योतिषी आपको कैसे मूर्ख बना रहें है इसकी जानकारी के लिए उन्ही
४२ दशा मे से एक अष्टोतरी दशा को लेते है।
वृहद्पाराशर होराशास्त्र मे दशा अध्याय के १७वें श्लोक के
अनुसार - "यदि लग्नेश से राहु लग्न के आलावा केन्द्र व त्रिकोण मे स्थित हो
तो अष्टोतरी दशा लेनी चाहिए" - इसका अर्थ यह हुआ कि स्वयं ऋषि पराशर द्वारा
लिखित माने जाने वाले ज्योतिष शास्त्र वृहद्पाराशर होराशास्त्र मे अष्टोतरी दशा से
फलित को कहा गया है।
ऐसे स्थिति अनेक बार बनती है जब राहु लग्नेश से केन्द्र व
त्रिकोण मे स्थित होता है मान लीजीए कि किसी का लग्नेश - अर्थात लग्न मे स्थित
राशि का स्वामी - मंगल है और राहु मंगल से केन्द्र या त्रिकोण मे स्थित हो तो यह
स्थिति ४५ दिन तक रहेगी और इन ४५ दिनो मे मेष और वृश्चिक लग्न मे पैदा होने वाले जातको
पर ज्योतिष के नियमनुसार अष्टोतरी दशा लागू होगी। यदि शनि लग्नेश हो तो पूरे १८
माह तक मकर व कुंभ लग्न मे पैदा होने वाले सभी जातको की दशा की गणना अष्टोतरी से
ही की जायेगी। इस प्रकार से आप समझ सकते है कि कितने व्यक्तियों - जिनकी संख्या
करोङो मे है - की दशा की गणना अष्टोतरी से होनी चाहिए जब्कि ज्योतिषी तो प्रत्येक
व्यक्ति की दशा की गणना विंशोतरी दशा पद्धति से ही करते है यदि कोई ज्योतिषी
अष्टोतरी दशा पद्धति से गणना कर भी रहा है, तो वह भी
प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक ही दशा पद्धति अपना रहें है जो ज्योतिष के नियमों के
विरूद्ध है।
अब प्रश्न यह उठता है कि ज्योतिषी अष्टोतरी दशा से फलित
की गणना क्यों नहीं कर रहे है - इसका उतर वृहद्पाराशर होराशास्त्र मे दशाफल अध्याय
के १८वें श्लोक मे ही छुपा हुआ है जिसके अनुसार - "आर्द्रा से ४ नक्षत्र के
अन्तर्गत जन्म नक्षत्र हो तो सूर्य की दशा, इसके बाद
३ नक्षत्र मे चन्द्रमा की, ४ नक्षत्रों मे मंगल की, ३ नक्षत्र मे बुध की, ४ नक्षत्र मे शनि की, ३ नक्षत्र मे गुरु की, ४ नक्षत्र मे राहु की,
और शेष ३ नक्षत्र मे शुक्र की दशा इस क्रम मे होती है"(इसे आप
दिए गए चित्र पर से सरलता से समझ सकते है) - इस श्लोक के अनुसार अष्टोतरी दशा के ८
ग्रहों के अन्तर्गत आने वाले नक्षत्रों की संख्या २८ हो गई जो ज्योतिष के नक्षत्र
की संख्या २७ से एक अधिक है - वह नक्षत्र है अभिजीत जिसे शनि के अन्तर्गत रखा गया
है। चूंकि ज्योतिष मे केवल २७ नक्षत्र ही रखे गए है और अभिजीत नक्षत्र को स्थान
नहीं दिया गया है ऐसे मे यह प्रश्न अवश्य उत्पन्न होता है कि अभिजीत नक्षत्र कहीं
है ही नहीं तो चन्द्रमा उस पर कैसे स्थित हो सकता है। ज्योतिष मे नक्षत्रों की
संख्या ही २७ है इसलिए न तो चन्द्रमा अभिजीत नक्षत्र पर स्थित हो सकता है और अभिजीत
नक्षत्र के अन्तर्गत किसी का जन्म ही नहीं हो सकता है - होगा कैसे जब ज्योतिष मे
अभिजीत नक्षत्र कहीं है ही नहीं - न ही अष्टोतरी दशा की गणना की जा सकती है
क्योंकि अष्टोतरी दशा की गणना का गणित ही गलत हो गया इसलिए अष्टोतरी दशा की गणना
नहीं की जा सकती है लेकिन ज्योतिषीयो को दशा के गणित से कोई मतलब नहीं है उन्हे तो
आपको मूर्ख बनाना है अपने ठगी के धन्धे के लिए जो वह अच्छी तरह से बना रहें है वह
इसलिए क्योंकि आप बन रहें है।
यदि वृहद्पाराशर होराशास्त्र आदि का ध्यान पूर्वक अध्ययन
किया जाए तो यह बात प्रमाणित हो जाती है कि वह ऋषि पराशर द्वारा लिखित नहीं है न
ही फलित ज्योतिष को ऋषियों ने बनाया था। जिन ऋषि मुनि को हम सर्वज्ञ/त्रिकालज्ञ
मानते है वह ऋषि पराशर ज्योतिष मे २७ नक्षत्रों को रखने के पश्चात अष्टोतरी दशा मे
२८ नक्षत्रों को क्यों रखते।
विंशोतरी दशा मे ९ ग्रहों के अन्तर्गत २७ नक्षत्रों को
रखा गया है जब्कि अष्टोतरी दशा मे ८ ग्रहों के अन्तर्गत २८ नक्षत्रों को रखा गया
है। विंशोतरी दशा १२० वर्ष की और अष्टोतरी दशा १०८ वर्ष की होती है। दोनो महादशा
मे ग्रहों के दशा वर्ष भी समान नहीं है एवं विंशोतरी दशा मे नौ ग्रहों के दशा वर्ष
सम्मिलित है वहीं अष्टोतरी महादशा मे केतु को छोङकर केवल ८ ग्रहों के दशा वर्ष ही
सम्मिलित है - अष्टोतरी दशा मे केतु को किस कारण से बाहर कर दिया गया यह तो
ज्योतिषी ही बता सकते है जो ज्योतिष को विज्ञान कहते रहते है उनसे इस सम्बन्ध मे
प्रश्न किया ही जाना चाहिए - आखिर आपको भी यह जानने का अधिकार है कि नहीं ! या यूं
ही बोगस ग्रह दशा के नाम पर लुटते रहना है। विंशोतरी अष्टोतरी आदि अनेक दशा
पद्धतियों मे से कौन सी सही है और किसको लिया जाए यह ज्योतिषी स्वयं भी नहीं जानते
है और इस बात के लिए ज्योतिषीयो को दोष भी नहीं दिया जा रहा है क्योंकि उन्होने
ज्योतिष के सिद्धांतो की रचना नहीं की है परन्तु अपने व्यापारिक उपयोग के चलते
प्रत्येक सिद्धांत को सही बताकर अन्जान मित्रो के विश्वास व आस्था श्रद्धा के नाम
पर ठगी का धन्धा भी ज्योतिषी ही कर रहें है चाहे वह महज एक शौक हो, मुफ्त मे हो या पैसे लेकर - ठगी तो ठगी ही होती है फिर उन्हे दोष क्यों न
दिया जाए भले ही विषय/सिद्धांत बोगस हो पर वह अपने आप तो किसी को नहीं ठग सकते है।
विंशोतरी और अष्टोतरी दशा मे ग्रहों के दशा वर्ष भी अलग
है विंशोतरी दशा मे शनि के दशा वर्ष १९ है तो अष्टोतरी दशा मे १० वर्ष - शनि को इस
बात का पता कैसे चलता होगा कि किस व्यक्ति को विंशोतरी दशानुसार १९ वर्ष और किसका
अष्टोतरी दशानुसार १० वर्ष तक ही सत्यानाश करना है - यह
तो ज्योतिषी ही बता सकते है परन्तु यदि आपको विशोंतरी दशानुसार शनि के १९ वर्ष
अधिक प्रतीत हो रहें है तो अपने चहिते ज्योतिषी से कहिए कि अष्टोतरी दशानुसार दशा
की गणना करे जिस से शनि ग्रह से १० वर्ष मे ही छुटकारा मिल जाए क्योंकि जब कुंडली
मे २४ अंश का अन्तर होने पर बोगस सिद्धांतो से सही भविष्यवाणी की जा सकती है तो
किसी भी दशानुसार फलित किया जा सकता है यह भी सम्भव है कि विंशोतरी मे दशा अच्छी
नहीं चल रही हो और अष्टोतरी षोडषोतरी आदि से कोई अच्छी दशा चल रही हो जिससे बुरे
दिन उसी समय समाप्त हो जाए - ४२ तरह की दशाओं मे से जब मन करे तब जो दशा पसन्द हो
वह चुन लो जिस से हमेशा शुभ ग्रह की दशा ही चलती रहे - तब शायद आपका दिमाग काम
करने लग जाए और समझ जाएं कि ज्योतिष बोगस है और ज्योतिषी ठग।
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