राहु-केतु पौराणिक कथा के चरित्र मात्र थे - थे इसलिए कि राहु केतु जो आज ज्योतिष मे है उनका किसी को ज्ञान नहीं था न ही केतु का किसी पुराण मे उल्लेख है। ऋषियों के अनुसार राहु सूर्य से 10 हजार योजन(1 लाख 50 हजार कि.मी.) नीचे स्थित था जो सूर्य को खाने के लिए उपर आता था और सुर्दशन चक्र द्वारा सूर्य को बचाए जाने के कारण वापिस चला जाता था। स्वर्भानु नामक दैत्य के अमृत पी लेने के कारण उसके सर को काट दिया गया और उसके सर को राहु और धङ को केतु बना दिया गया जब्कि ज्योतिष की किसी भी प्रचीन किताब मे राहु केतु को सर और धङ नहीं कहा गया है न ही यह लिखा है कि राहु केतु सर्प है। उस समय के ज्ञान के अनुसार पृथ्वी स्थिर थी जिसके पास मे सूर्य और चन्द्रमा सूर्य से भी दूर स्थित था जो इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि जिन राहु केतु को आज हम जानते है वह स्थिर पृथ्वी और चन्द्रमा के सूर्य से भी दूर होने से नहीं बन सकते थे जिस से स्पष्ट होता है कि आज के राहु केतु के बारे मे किसी को भी जानकारी नहीं थी। प्राचीन काल मे ब्रह्मांड मे ग्रहों की सही स्थिति का ज्यान न होने के कारण ग्रहण का कारण भी उसी स्वर्भानु दैत्य को समझा जाता था इसी आधार पर चन्द्रमा और सूर्य को उनका शत्रु बना दिया गया और सूर्य और चन्द्र ग्रहण के समय बनने वाली छाया के कारण इन्हे छाया ग्रह कहा गया था। आर्यभट्ट के समय तक भी राहु केतु को ही ग्रहण का कारण माना जाता था और उनके द्वारा ग्रहण का सही कारण स्पष्ट किए जाने के पश्चात भी धार्मिक आस्था के कारण सैंकङो वर्षो तक उनकी बात को किसी ने नहीं माना था। राहु केतु केवल भारतीय ज्योतिष मे ही है जिससे यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या राहु केतु भारतीय क्षेत्र को ही प्रभावित करते है ! अन्यत्र नहीं ? यदि ऐसा है तो वह व्यक्ति जो भारत की सीमा रेखा से बाहर जाने पर राहु केतु के प्रभाव से मुक्त हो जाने चाहिए। यह तथ्य ज्योतिष के सही होने पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता है और इस प्रश्न का उतर ज्योतिषी भी नहीं जानते है उन्हे तो यह भी पता नहीं है कि राहु केतु वास्तव मे क्या है। ज्योतिष मे राहु केतु किसी भी राशि के स्वामी नहीं है न किसी राशि मे उच्च नीच के होते है परन्तु कोई भी ज्योतिषी यह नहीं जानता कि बिना किसी राशि का स्वामी बनाए इन्हे ज्योतिष मे स्थान क्यों दे दिया गया, क्यों इनको नक्षत्रों का स्वामित्व दे दिया गया, क्यों राहु की दशा 18 वर्ष की और केतु की मात्र 7 वर्ष की होती है - ज्योतिषी जानते है तो केवल एक ही बात - मूर्ख बनाकर ठगी का धन्धा करना और बोगस ज्योतिष को विज्ञान, दैवीय विज्ञान कह कर प्रचारित करना जिससे समाज में अन्धविश्वास फैलता रहे और उनका ठगी का धन्धा निरन्तर चलता रहे।
राहु केतु - राहु केतु आकाशीय पिंड नहीं है यह मात्र दो कटान बिंदु है जो पृथ्वी और चन्द्रमा के परिक्रमा पथ पर बनते है। चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए पृथ्वी की कक्षा के साथ 5 अंश का कोण बनाते हुए उसे दो स्थान पर से काटता है इस से जो कटान बिन्दु बनते है उन्हें ही राहु केतु कहते है। पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए चन्द्रमा जिस बिन्दु पर से होकर पृथ्वी की कक्षा से ऊपर आता है वह बिन्दु राहु कहलाता है और जिस बिन्दु पर से होकर चन्द्रमा पृथ्वी की कक्षा से नीचे जाता है वह केतु कहलाता है। पृथ्वी और चन्द्रमा के ब्रह्मांड में अपने-अपने पथ पर चलने के कारण राहु और केतु की स्थिति भी साथ-साथ बदलती रहती है इससे यह दोनो बिन्दु अन्य ग्रहों के विपरीत क्रम मे चलते हुए दिखाई देते है और आधुनिक ज्योतिष मे यह बिन्दु एक दूसरे से सदैव 180 अंश पर रहते है। परन्तु यदि आप सनत जैन द्वारा लिखित पुस्तक "ज्योतिष कितना सही कितना गलत" पढ़ेगें तो जानेगें कि न तो राहु केतु की गति होती है न ही यह सदैव 180 अंश पर होते है और केवल 4% व्यक्तियों की कुंडली मे राहु केतु होते है वह भी कर्क रेखा से नीचे रहने वाले व्यक्तियों के ही अन्य के नहीं, कर्क रेखा से उपर तो राहु केतु बनते ही नहीं है और सौरमंडल मे यही एक नहीं बल्कि ऐसे अनेक राहु केतु है। अतः राहु केतु जो दो कटान बिन्दु मात्र है उनसे भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है और जिन राहु केतु से निर्मित कालसर्प योग/दोष के नाम पर आप ठगी का शिकार बनते है वह राहु केतु असल मे आपकी कुंडली मे है ही नहीं - इस पर अधिक जानकारी के लिए "ज्योतिष कितना सही कितना गलत - Astrology a Science or Myth by sanat kumar jain" पुस्तक पढ़े।
अन्त मे - दो कटान बिन्दु मात्र से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है वह भी ऐसे बिन्दु - राहु केतु - जो आपकी कुंडली मे है ही नहीं। फलित ज्योतिष एक बोगस विषय है जो पौराणिक मान्यताओं व ब्रह्मांड की गलत जानकारी के आधार पर बनाया गया है जो आज के खगोल के ज्ञान के परिपेक्ष्य मे गलत सिद्ध हो चुका है इसलिए फलित ज्योतिष अन्धविश्वास मात्र है केवल ठगी का धन्धा है।

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