मनुष्य जब प्रथम बार किसी
वस्तु विषय को देखता है तो यह आवश्यक ही नहीं है कि उसे उस वस्तु विषय के बारे मे
सही ज्ञान हो जाए। इस कार्य मे समय भी लग सकता है और जब तक उस विषय वस्तु का सही
ज्ञान प्राप्त न हो जाए, तब तक ज्ञान के अभाव मे अनेक प्रकार की
मान्यताओं और धारणाओं का उत्पन्न होना स्वाभाविक होता है। ऐसी मान्यताओं व धारणाओं
का ज्ञान के प्रकाश मे स्वतः ही अन्त हो जाना चाहिए लेकिन ऐसा होने मे समय लगता है
क्योंकि जब तक सही ज्ञान का प्रकाश पहुंचता है तब तक उन्ही मान्यताओं व धारणाओं का
अन्धेरा अन्धविश्वास का रुप लेकर फैल चुका होता है। यूं तो रोशनी की एक किरण भी
अन्धेरे को मिटा देती है लेकिन जहां अन्धेरे के काले बादल छा चुके हो वहां पर
रोशनी की किरण से उजाला क्या होगा।
अन्धविश्वास जब मन की गहराइयों मे बस जाए तो उसे निकालना
सहज नहीं होता है इस कार्य मे समय अवश्य लगता है लेकिन अपनी शिक्षा ज्ञान व बुद्धि
से विज्ञान के महत्व को समझना इतना भी मुश्किल कार्य नहीं होता है कि अन्धविश्वास
से बाहर ही न निकल पाएं। उसके लिए जिज्ञासा का होना आवश्यक होता है और जिज्ञासा
विज्ञान उत्पन्न करता है न कि अन्धविश्वास तभी विज्ञान के महत्व को समझा जा सकता
है। विज्ञान का योगदन किसी से छुपा नहीं है न ही अन्धविश्वास इतना अन्जान है कि
सामान्य से विज्ञान को भी न समझ सके फिर भी अन्धविश्वास स्वयं को विज्ञान के
समकक्ष रखने की भरपूर कोशिश करता है। विंडम्बना यह है कि अपनी इस नाकाम कोशिश के
बाद जिस विज्ञान ने अन्धविश्वासी जीवन को इतना सरल कर दिया उसी विज्ञान को
अन्धविश्वास अपने समक्ष बौना कहने से नहीं चूकता है, क्योंकि
विज्ञान अपने तर्को तथ्यों से अन्धविश्वास को नकारता आया है और हर
बार गलत प्रमाणित भी करता है यही बात अन्धविश्वास को न गवार गुजरती है। जिस
अन्धविश्वास ने आज तक सूई तक का आविष्कार नहीं किया वही अन्धविश्वास विज्ञान की
देन हवाई जहाज को भी युगों पहले की अपनी तकनीक बताकर भी विज्ञान के बनाए जहाज मे सवार
होकर यात्रा करता है हालत यह है कि अन्धविश्वास स्वयं को कब्रिस्तान मे पूरी तरह
से दफन करने के पश्चात विज्ञान के माध्यम से ही धरती पर जन्म लेता है और चाहता है
कि विज्ञान उसे मृत्यु से भी बचा ले। उसकी एक छींक से लेकर एड्स कैंसर तक मे
विज्ञान उसकी मदद करता है फिर भी दम तोङता अन्धविश्वास विज्ञान को ही कोसते हुए
कहता है कि वह मृत्यु को नहीं टाल सका तो क्या विज्ञान हुआ। उसकी इस बात पर ऐसा
लगता है कि मानो विज्ञान मुस्कुराते हुए अन्धविश्वास से ठिठोली करते हुए कह रहा हो
- अरे अन्धविश्वास तुम्हारा तो जन्म ही मृत्यु के लिए हुआ है लेकिन मैं अमर हूं।
विज्ञान के जन्म के साथ ही अन्धविश्वास का पतन होना
प्रारम्भ हो गया इसलिए अन्धविश्वास हमेशा से ही विज्ञान का विरोध करता आया है। उसे
लगता है कि विज्ञान उसके अस्तित्व के लिए बहुत बङा खतरा है लेकिन 99%
बहुमत के साथ उसने अपने अस्तित्व को बचाए रखा है। ऐसा नहीं है कि
अन्धविश्वास विज्ञान को महत्व नहीं देता है दिन/रात विज्ञान के जिस ज्ञान तकनीक और
उपकरणों के प्रयोग से अन्धविश्वास स्वयं को आधुनिक किये हुए है उसी को नकारने के
लिए उसी के दिए हुए ज्ञान व तकनीक का प्रयोग करता है और जानता है कि विज्ञान उसके
लिए खतरा है इसलिए दिमाग के किसी कोने मे ही सही मगर अपने अस्तित्व को बचाने का
भरपूर प्रयास करता है। अन्धविश्वास भले ही सुबह से शाम तक अपने मोबाईल से चिपका
रहे परन्तु अपने टेलीपैथी के जरिए न जाने कितने अन्तरिक्ष मे फाईबर आप्टिक्ल के
साथ ब्राडबैंड कनेक्टीविटी की बात करता है जिसके वह ढेरो प्रमाण देता है, लेकिन यदि किसी दिन दफ्तर नहीं जाने का मूड हो तो आधुनिक मानव निर्मित
विज्ञान का प्रयोग कर मोबाईल से मैसेज करके कहना पङता है कि साहब आज मैं नहीं
आउंगा। बात यहीं पर समाप्त नहीं हो जाती है इसकी फेरहिस्त बहुत लम्बी है सबकी
विवेचना तो नहीं की जा सकती है लेकिन इतना अवश्य लिखा जा सकता है कि अन्धविश्वास
को प्रत्येक मोङ पर विज्ञान की आवश्यकता पङती है उसके पश्चात भी वह विज्ञान के
महत्व को नकार कर स्वयं को सर्वश्रेष्ठ घोषित करता है। अपने अस्तित्व के लिए अन्धविश्वास
को ऐसा करना पङता है नहीं तो उसकी जङो को विज्ञान उखाङ कर दूर फेंक देगा लेकिन
अन्धविश्वास की जङे इतनी गहरी है कि विज्ञान को उन्हे खोद कर निकालने और समाप्त
करने मे बहुत समय लगेगा उस समय मे आप और हम तो नहीं होगें लेकिन मानतवा के प्रति
अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए भविष्य को अन्धविश्वास से मुक्ति दिलवाने की ओर
कदम तो बढ़ा ही सकते है।
अन्धविश्वास द्वारा विज्ञान का विरोध करना और विज्ञान
द्वारा अन्धविश्वास नकारना स्वाभाविक है एक ओर अन्धविश्वास जहां अप्रत्याशित व
असाधारण दावा करता है वहीं दूसरी ओर विज्ञान बिना किसी ठोस तर्क/तथ्य के कोई बात
नहीं करता है। क्योंकि अन्धविश्वास के असाधारण दावो के पीछे तर्क तथ्य नदारद होते
है तो विज्ञान द्वारा ऐसे दावों का खंडन करना उचित है यही बात अन्धविश्वास को
पसन्द नहीं आती है। विज्ञान यदि अन्धविश्वास को नकारता है, पूर्णतया खंडन करता है तो इसका यह अर्थ नहीं है कि विज्ञान अन्धविश्वास को
समझने मे असमर्थ है या वह इतना उन्नत नहीं हुआ कि अन्धविश्वास के पीछे छिपे हुए
पराविज्ञान महाविज्ञान या दैवीय विज्ञान को न समझ सके। विज्ञान ने किसी
अन्धविश्वास का खंडन किया है तो इसका अर्थ है कि विज्ञान को उसमे ऐसा कुछ नहीं
मिला जो सत्य हो व जिसके आधार पर कहा जा सके कि अन्धविश्वास सत्य है। विज्ञान किसी
भी बात को ठोस तर्को व तथ्यो के आधार पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विश्लेषण कर सही
पाए जाने पर ही स्वीकृत करता है और अन्धविश्वास जो तर्क की श्रेणी मे भी कहीं
स्थान नहीं रखता है विज्ञान के लिए किस प्रकार स्वीकार्य हो सकता है। विज्ञान
अन्धविश्वास के पीछे नहीं है न कभी रहा है न ही अन्धविश्वास को गलत सिद्ध करना
विज्ञान के कार्यक्षेत्र के अन्तर्गत आता है। वह तो अपना कार्य करता रहता है और
उसके कार्य करने, नई तकनीक, यन्त्रों
के विकास क्रम मे अन्धविश्वास पीछे छूट जाता है, वास्तव मे
कहीं पर ठहरता नहीं है तो इसमे विज्ञान की क्या गलती है। गलती है तो केवल
अन्धविश्वास की जो आधुनिकता की इस दौङ मे विज्ञान के महत्व को समझते हुए भी स्वयं
को विज्ञान के समकक्ष स्थान दिलवाने की नाकाम कोशिश करता रहता है यही उसकी गलती है
जिस दिन उसे यह बात समझ मे आ जाएगी उस दिन वह विज्ञान को नमन कर हमेशा के लिए
विलुप्त हो जाएगा।
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