फलित ज्योतिष की एक बहुत प्रसिद्ध व चर्चित व फलित ज्योतिष की आदि शास्त्र कहलाने वाली पुस्तक जिसे द्वौपर युग मे ऋषि पराशर द्वारा रचित माना जाता है और जिसके सिद्धांत ज्योतिष मे बेहद मान्य है और इसी पुस्तक मे लिखित सिद्धांतो का प्रयोग सभी ज्योतिषीयों द्वारा किया जाता है लेकिन वृहदपाराशर होराशास्त्र द्वौपन युग के ऋषि पराशर द्वारा लिखित नहीं है यह बात इस पुस्तक का अध्ययन करने पर स्पष्ट हो जाती है जिसका सबसे बड़ा प्रमाण तो यही है की फलित ज्योतिष की रचना किसी ज्योतिषी ने नहीं की थी। ऋषियों ने कभी भी ज्योतिष के कार्य और ज्योतिशीयों का समर्थन नहीं किया ऋषि वेदव्यास जी, जो ऋषि पराशर के पुत्र, थे उन्होंने ज्योतिषीयों को चांडाल तक कहलवाया था। वृहद पराशर होराशास्त्र द्वौपर युग के ऋषि पराशर द्वारा लिखित पुस्तक नहीं है इसके प्रमाण निम्नलिखित है -
• पहला प्रमाण तो यही है की वृहद पाराशर होराशास्त्र संस्कृत भाषा मे लिखी गई है जबकि संस्कृत भाषा अधिक से अधिक 2300 वर्ष पुरानी ही है और ऋषि पराशर जो 5000 वर्ष पूर्व हुए कहे जाते है उनके समय मे संस्कृत नहीं थी। सम्राट अशोक के समय मे पाली ब्राह्मी और प्राकृत भाषाएं ही थी संस्कृत (मेरे अनुसार) या तो थी ही नहीं या आम प्रचलित - बोलचाल की - भाषा नहीं थी। पुष्यमित्र के बाद ही संस्कृत चलन मे आई थी जिससे स्पष्ट है की ऋषि पाराशर भविष्य की लिपी मे पुस्तक को नहीं लिख सकते थे।
• दूसरा प्रमाण है इसमे बुध ग्रह को बुद्ध से जोङना – अवतारवाद के अध्याय मे लिखा है की “बुध से बुद्धावतार हुए” जब्कि बुद्ध ऋषि पराशर के बाद हुए थे - अब भविष्य की बात को वर्तमान मे भूतकाल के वाक्य मे कैसे लिखा जा सकता है - यह संभव नहीं है।
• तीसरा प्रमाण है - इसमे वर्णित विंशोतरी दशा - विभिन्न मान्यताओं के अनुसार द्वौपर युग मे मनुष्य की पूर्णायु 1000 वर्ष कही जाती है जब्कि इस शास्त्र मे दी गई विंशोतरी महादशा केवल 120 वर्ष की ही है जो द्वौपर युग मे मनुष्य की आयु के आस पास भी नहीं है। जिससे स्पष्ट होता है कि विंशोतरी महादशा को ऋषि पराशर ने नहीं बनाया था - सामान्य सी बात है कि दशा को कोई भी बनाता लेकिन उस काल मे मनुष्य की पूर्णायु के अनुसार ही बनाता जो कि उस समय एक हजार वर्ष थी और विंशोतरी दशा मे मनुष्य की पूर्णायु केवल 120 वर्ष ही है जो द्वौपर युग मे मनुष्य की पूर्णायु का महज 10 प्रतिशत है।
• चौथा प्रमाण है - वृहदपाराशर होराशास्त्र को भास्कराचार्य द्वितीय द्वारा लिखित पुस्तक सिद्धांत शिरोमणि (ई सन 1150) के बाद लिखा गया है। क्योंकि भास्कराचार्य द्वितीय ने ही सर्वप्रथम तत्कालीन ज्योतिष (जिसे अब खगोलशास्त्र कहते है) को वेद की आंख कहा था जिसका उल्लेख उन्होने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक सिद्धांत शिरोमणि मे किया है इस से पहले के किसी भी ग्रन्थ/शास्त्र आदि मे ज्योतिष को वेद का नेत्र नहीं कहा गया है। और पाराशर होराशास्त्र मे इस बात का उल्लेख है और ऋषि पराशर तो ऐसा करने से रहे।
• पांचवा प्रमाण है - वृहदपाराशर होराशास्त्र मे केतु का उल्लेख होना जब्कि वराहमिहिर को भी केतु के बारे मे ज्ञान नहीं था। किसी भी वेद पुराण में केतु का उल्लेख नहीं है केतु की खोज वराहमिहिर के समय से वर्षो बाद हुई थी। विंशोत्तरी दशा मे केतू को सम्मिलित कर बाकायदा दशा वर्ष भी दिए गए है जो ऋषि पराशर के लिए करना संभव नहीं था - जाहिर है जब उन्हें केतु का ज्ञान ही नहीं था तो फलित ज्योतिष में उसे कैसे शामिल करते।
• छठा प्रमाण है - वृहदपाराशर होराशास्त्र में रशियों का उल्लेख होना। राशियों को भारत वर्ष के किसी ऋषि आचार्य ने नहीं बनाया था महाभारत में उल्लेख है कि उस समय मे फलित ज्योतिषीयों को नक्षत्र जीवी कहा जाता था यह भी तत्कालीन समय मे फलित ज्योतिष में राशियों की अनुपस्थिति को दर्शाता है। राशियों को प्राचीन यूनान मे बेबीलोन की सभ्यता ने बनाया था जिसे टॉलेमी ने अपनाया और वहां से सिकंदर के समय राशियों का ज्ञान भारत आया जिसे वराहमिहिर के समय के आस पास (ईस्वी सन की प्रारम्भिक सदियों में) ज्योतिष मे स्थान दिया गया।
• सातवां प्रमाण है - फलित ज्योतिष में 27 नक्षत्रों का होना, ऋषियों ने 27 नहीं वरन 28 नक्षत्रों की रचना की थी - वेद में 28 नक्षत्रों का उल्लेख है - और सभी नक्षत्रों का अंशात्मक विस्तार असमान था (जिसका ज्ञान ऋषि पराशर को भी था) तो ऐसा कोई कारण नहीं बनता है कि ऋषि पराशर 28 नक्षत्रों की बजाय 27 नक्षत्र ही ज्योतिष में रखते और उनके अंश भी समान कर देते। यूनान से राशियों के ज्ञान के भारत आने के बाद 12 राशियों के मध्य 28 नक्षत्रों का गणित के अनुसार विभाजन सही नहीं हो रहा था इस कारण 28 की बजाय 27 नक्षत्रों को ही रखा गया और उनके अंश भी असमान कर दिए और यह कार्य ऋषि पराशर ने नहीं किया था।
• आठवां प्रमाण है - होराशास्त्र में वर्णित अनेक महादशाओं में अष्टोत्तरी दशा की गणना के लिए 28 नक्षत्रों का रखा जाना जो अपने आप मे ही ऋषि पराशर द्वारा होराशास्त्र को नहीं लिखा जाना प्रमाणित करता है। क्योंकि पूरे ज्योतिष में 27 नक्षत्र ही सम्मिलित करने के बाद अष्टोत्तरी दशा में 28 नक्षत्रों का प्रयोग खगोलीय एवं गणितीय दृष्टि से सही नहीं है ऐसी भूल ऋषि पराशर तो नहीं कर सकते थे - सामान्य सी बात है कि जब 28 नक्षत्रों का ज्ञान होते हुए जब ज्योतिष में 27 नक्षत्रों को ही सम्मिलित किए गए तो फिर अष्टोत्तरी दशा की गणना के लिए 28 नक्षत्रों का चयन गलत है क्योंकि जो नक्षत्र कहीं है ही नहीं उसकी गणना कैसे संभव है।
• नौवां प्रमाण है - ज्योतिष में अश्विनी नक्षत्र प्रथम नक्षत्र होना, जबकि वेद में कृतिका नक्षत्र प्रथम नक्षत्र है। कृतिका नक्षत्र के प्रथम होने का तात्पर्य है कि 360 अंश के आकाशीय वृत का प्रारंभिक बिंदु (वैदिक काल) कृतिका नक्षत्र से आरंभ होता है और अश्विनी नक्षत्र कृतिका से पूर्व का तीसरा नक्षत्र है फलित ज्योतिष में उसके प्रथम होने का अर्थ है कि ऋषि पाराशर ने पाराशर होराशास्र नहीं लिखा था। ज्योतिष में अश्विनी नक्षत्र का प्रथम होना यह सिद्ध करता है कि होराशास्त्र को ऋषि पराशर के समय मे नहीं लिखा गया था यह खगोल व गणित की विस्तृत प्रक्रिया है जिसके बारे में आप सनत जी की पुस्तक - ज्योतिष कितना सही कितना गलत - में पढ़ सकते है।
• दसवां प्रमाण है - होराशास्त्र में बाल्य काल मे ही विवाह होने के सिद्धांत होना जबकि ऋषि पराशर के समय मे बाल विवाह नामक कुरीति नहीं थी। विभिन्न शास्त्रों के अनुसार उस समय मे मनुष्य जीवन चार आश्रम में विभक्त था जिसमे जीवन का प्रथम चतुर्थांश ब्रह्मचर्य का था जिससे स्पष्ट होता है कि जब बाल्य काल मे विवाह की कुरीति नहीं थी तो उनसे संबंधित सिद्धांत भी नहीं हो सकते थे।
इसके अतिरिक्त भी अनेक प्रमाण है जो हमे इतिहास के पन्ने पलटने से प्राप्त होते है जो यही स्पष्ट करते है की वृहद पराशर होराशास्त्र द्वौपर युग के ऋषि पराशर द्वारा लिखित नहीं है इस पुस्तक को 11वीं शताब्दी में लिखा गया है। पराशर होराशास्र के बारे जो बातें ज्योतिषीयों द्वारा फैलाई गई है वह सब गलत है जैसे कि फलित ज्योतिष हमारे ऋषियों की देन है, ज्योतिष का ज्ञान ब्रम्हा जी ने ऋषि पराशर को दिया था, होराशास्र ऋषि पराशर द्वारा लिखित है आदि, सभी बातें गलत है। इस प्रकार का भ्रामक प्रचार ज्योतिषीयों द्वारा ज्योतिष जैसे बोगस विषय मे विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए किया जाता है जिससे कि उनका ठगी का धंधा सुचारू रूप से चलता रहे। उपरोक्त तथ्यों से यह बातें स्पष्ट होती है - फलित ज्योतिष को ऋषियों ने नहीं बनाया था। वृहदपाराशर होराशास्त्र ऋषि पराशर द्वारा लिखित पुस्तक नहीं है। ऋषियों ने राशियां नहीं बनाई थी। केतु का ज्ञान किसी ऋषि को नहीं था। विंशोतरी दशा ऋषि पराशर द्वारा रचित नहीं है। इसके पश्चात भी यदि आप ज्योतिषीयों के द्वार पर अपना भविष्य बरबाद करने बैठे रहना चाहते है तो आपकी मर्जी।

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  1. Kuch logon ki adat hoti hai Faltu me dusron ki burayi aur apni badayi karne ki, jaise ki yeh mahashay.. !! Ata jata khak nahi aur ulti sidhi batein kehne me mahir.

    Parashar Ji ke pita Vyas Ji, Poori kahani hi Ulti kar di...!! Jo bhi batein likhi hain sab jhuth. Prabhu apni dimagi gandagi apne tak simit rakha kijiye, aur swaym uski badbu soongha kijiye.. Samaj par badi Kripa hogi...

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  2. भाव चलित कुंडली से ही ग्रहों का फलादेश किया जा रहा है, इस विषय पर क्या मत है आपका?

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  3. जो समझ न आये या न कर पाए, वो अंगूर खट्टे हैं । मेरे पास सैकड़ों प्रमाण हैं, ज्योतिष के गणित और फलित के सही होने के ये बात अलग है, कुछ अच्छे ग्रन्ध पुरानी पीढ़ियों के साथ लुप्त या कहें, भ्रष्ट हो गए ।

    मेरे ही परिवार में, ऐसे ऐसे ज्योतिषी हुए है जो अपनी मृत्यु तक पहले से बता देते थे और उनका कहा ऐसा था जो तारीख से मेल करता था ।

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