क्या फलित ज्योतिष व
ज्योतिषीयों को ऋषियों (व सभ्य समाज) द्वारा सम्मानजनक दृष्टि से देखा जाता था? इसका उतर है नहीं।
पौराणिक शास्त्रो व
ग्रन्थो के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि फलित ज्योतिष (अर्थात भविष्य बताने) को
व ज्योतिषीयों को प्राचीन काल से ही सम्मानजनक दृष्टि से नहीं देखा जाता था भविष्य
बताने का कार्य करने वाले व्यक्ति सभ्य समाज द्वारा बहिष्कृत व तिरस्कृत थे। किसी
भी धार्मिक कार्य अनुष्ठान - पूजा, हवन, देवयज्ञ, श्राद्ध आदि मे फलित ज्योतिष का कार्य करने वाले
व्यक्तियो का भाग लेना वर्जित था। फलित ज्योतिषी जिन शास्त्रो व ऋषि मुनियो के नाम
पर ठगी का व्यापार कर रहे है, वही ऋषि मुनि उन्ही पुराणो मे ज्योतिषीयों को चांडाल, निंदित, द्विजो मे अधम आदि उपाधियो से सम्मानित कर के गए है ऋषि मुनि न तो फलित
ज्योतिष का समर्थन करते थे, न ही ज्योतिषीयो का। यहाँ तक कहा गया है, ज्योतिषी यदि देवताओं के गुरू बृहस्पति के समान भी विद्वान हों, तो भी वह सम्माननीय नहीं है। इस तरह से आप स्वयं
ही समझ सकते है कि आरम्भ से ही सभ्य समाज मे फलित ज्योतिष और ज्योतिषीयों की क्या
स्थिति थी। पुराणो/शास्त्रों मे इस तरह की बहुत सी बाते कही गई है ज्योतिषीयों के
लिए परन्तु यह आश्चर्य ही कहा जाएगा कि यह सब पढ़ने के बाद भी कहां तो ज्योतिषीयों
को ज्योतिष के कार्य का ही परित्याग कर देना चाहिए, बजाय इस के बहुत से ज्योतिषीयों मे इतनी भी शर्म
नहीं बची है कि यदि वह ज्योतिष पर चर्चा नहीं कर सकते तो किसी के लिए अपशब्दो व
अभद्र भाषा का प्रयोग नहीं करे। विचारो मे भिन्नता होना स्वाभाविक है, परन्तु यहां पर चर्चा फलित ज्योतिष पर है जो तर्कसंगत
व उचित तथ्य पर की जा रही है यदि विषय के सन्दर्भ मे ज्योतिषीयों और उनके समर्थको
के पास सही तथ्य से परिपूर्ण तर्क नहीं है, तो क्या यह आवश्यक है कि किसी व्यक्ति पर निरर्थक टिप्पणी, अभद्र भाषा का प्रयोग - गाली ज्ञान आदि किया जाए
! क्या इस तरह की शब्दावली से यह बात प्रमाणित नहीं हो जाती है कि – ज्योतिषी वास्तव
मे चांडाल है जो यदि ज्योतिषी देवताओ के गुरु बृहस्पति के समान भी विद्वान हो, तो भी उनका सम्मान नहीँ करना चाहिए। जाहिर है
ज्योतिषी उस समय मे भी ऐसे ही कृत्य करते होगें तभी ऋषियो ने उनके लिए इस तरह की
अपमानजनक बातें कही है। जिन ज्योतिषीयों को ऋषियो ने ही बहिष्कृत कर दिया, सभी मित्रो को विशेषत: महिलाओ को ऐसे ज्योतिषीयो
के पास जाने से पहले अच्छी तरह से विचार करना ही चाहिए। आखिर व्यक्ति के सम्मान का
प्रश्न है, वह ऐसे व्यक्ति के
द्वार पर क्योँ लुटाया जाए जिसे ऋषियों द्वारा पुराणों/शास्त्रो मे ही कोई मान न
दिया गया हो।
यह सम्भव है कि
ज्योतिष और ज्योतिषी के विषय मे जो मैनें लिखा है उस पर विश्वास न करें जो बिल्कुल
सही है क्योंकि बिना किसी सही तथ्य/तर्क/प्रमाण के किसी भी बात पर सहजता से
विश्वास नहीं किया जाना चाहिए इसलिए अपनी प्रत्येक बात के समर्थन मे विभिन्न
शास्त्रों व पुराणों से वह श्लोक सपष्ट सन्दर्भ सहित लिखे जा रहें है उन्हे पढ्कर
पाठक स्वयं निर्णय करें।
निम्नलिखित श्लोक विभिन्न
शास्त्रो मे उल्लेखित है जिनको की स्पष्ट संदर्भ सहित ज्यों का त्यों लिखा जा रहा
है ताकि यदि किसी ज्योतिषी या अन्य किसी मित्र को शास्त्रों/पुराणों मे वर्णित
फलित ज्योतिष व ज्योतिषीयों के विषय मे दिए गए विचारो पर तनिक भी संदेह हो तो वह स्वयं
उक्त शास्त्र/पुराण मे पढ़ सकते है।
उशना स्मृति
नृपायां विप्रपश्चैर्यात्
संजातो योभिशक् स्मृतः।
अभिषिक्तनृपस्याज्ञां
प्रतिपाल्य तु वैद्यकः।। (26)
आयुर्वेदमथाष्टांगं तन्त्रोक्तं
धर्ममांचरेत् ।
ज्यौतिषंगतिणतंवौपि
कायिकीं वृत्तिमाचरेत् ।। (27)
अर्थ:- ब्राह्मण
पुरूष और क्षत्रिय कन्या के गुप्त प्रेम से उत्पन्न सन्तान भिषक कहलाती है। ऐसी
सन्तान दवा दारू, तन्त्र मन्त्र अथवा
गणित ज्योतिष के कार्य द्वारा अपनी आजीविका चलाए।
नैषध चरितम
एकं
संदिग्धयोस्तावद् भावि तत्रेष्टजन्मनि, हेतुमाहुः।
स्वमन्त्रादीनसांगानन्यथा
विटाः।। (नैषध चरितम् 17-55)
अर्थ:- यह
भविष्यवक्ता, संदिग्ध मामलों में
से एक की भविष्यवाणी कर देते हैं। यदि संयोगवश सही हो जाए तो उसे अपनी योग्यता का
चमत्कार बताते हैं। और गलत होने पर कह दिया जाता है कि हमारी भविष्यवाणी तो
बिल्कुल सही थी, आप ने फलां पूजा, फलां पाठ ठीक से नहीं किया जिस कारण ऐसा/वैसा
हुआ है।
विलिखति सदसद् वा
जन्मपत्रं जनानाम्,।
फलति यदि तदानी
दर्षयत्यात्मदाक्ष्यम् विषाखायाः,।
विविध
भुजंगक्रीडासक्तां गृहिणीं न जानाति।।
अर्थ:- जो
ज्योतिर्विद आकाश में चन्द्र के विशाखा (नक्षत्र) के समागम की गणना करता है, उसे यह भी ज्यात नहीं होता कि उस की स्री अनेक
व्यभिचारी पुरूषों से समागम करती है।
अत्रिसंहिता
ज्योतिर्विदो, श्राद्धे यज्ञे महादाने न वरणीयाः कदाचन (385)
श्राद्धं च पितरं
घोरं दानं चैव तु निष्फलम् यज्ञे च फलहानिः स्यात् तस्मात्तान् परिवर्जयेत् (386)
याविकः चित्रकारश्च
वैद्यो नक्षत्रपाठकः, चतुर्विप्रा न
पूज्यंते बृहस्पतिसमा यदि (387)
अर्थ:- अर्थात ज्योतिषीयों
को श्राद्ध, यज्ञ और किसी बड़े
दान पुण्य के कार्य मे नहीं बुलाना चाहिए। इन्हें बुलाने से श्राद्ध अपवित्र, दान निष्फल और यज्ञ फलहीन हो जाता है। आविक
(बकरीपाल), चित्रकार, वैद्य और नक्षत्रों का अध्ययन कर जीविका चलाने
वाले (ज्योतिषी), ये 4 तरह के ब्राह्मण यदि देवताओं के गुरू बृहस्पति
के समान भी विद्वान हों, तो भी उनका सम्मान नहीं करना चाहिए।
महाभारत – जिसे पांचवा
वेद भी कहा जाता है उसमे ज्योतिषी के बारे मे क्या लिखा है वह भी जान लाजीए।
आहायका देवलका
नक्षत्रग्रामयाजका।
ऐते ब्राह्मणचंडाला
महापथिकपञ्चमा।।
अर्थ:- न्यायलय या कहीं भी लोगो को बुलाकर लाने का काम करने वाले, वेतन लेकर देव मन्दिर मे पूजा करने वाले, नक्षत्र विद्या द्वारा जीविका चलाने वाले (ज्योतिषी) ग्राम पुरोहित तथा पांचवे महापथिक (दूर देश यात्री या समुद्र यात्रा करने वाले) ब्राह्मण चांडाल समान है।
(महाभारत, शान्ति पर्व,
76, 8)
नक्षत्रैश्च यो
जीवति, ईदृशा ब्राह्मण
ज्ञेया अपांक्तेया।
युधिष्ठिर, रक्षांसि गच्छते हव्यमित्याहुर्बह्मवादिनः।।
अर्थ:- जो ब्राह्मण
नक्षत्रों के अध्ययन से जीविका चलाता हो, ब्राह्मणों को उसे अपनी पंक्ति में बैठ कर भोजन नहीं करने देना चाहिए। हे
युधिष्ठिर, ऐसे व्यक्ति द्वारा
खाया हुआ श्राद्ध भोजन राक्षसों के पेट में जाता है, न कि पितरों को। (महाभारत - अनु॰ प॰ 90,
11/12)
ऋषि पाराशर जिनको
ज्योतिषीयों द्वरा फलित ज्योतिष का पितामह
कहा जाता है उन्होने चांडाल (अर्थात भविष्य बताने वाले) के विषय मे क्या कहा है यह
भी जान लीजीए।
चांडालदर्शने सद्यादित्यमवलोक्येत्।
चांडालस्पर्शने चैव सचैलं स्नानमचरेत्।।
अर्थ – यदि भूलवश चांडाल (ज्योतिषी) को देख लिया जाए तो उसी क्षण सूर्य का दर्शन करें तब वह शुद्ध होता है, तथा
चांडाल का स्पर्श होने पर वस्त्रों सहित स्नान करें
तभी व्यक्ति पवित्र होता है। (पराशर स्मृति 6/24)
यही बात ऋषि वेदव्यास जी द्वारा भी
कही गई है। व्यास स्मृति (अध्याय-1 /11, श्लोक - 12) में चांडालों के बारे में लिखा गया है कि अगर कोई व्यक्ति चांडाल, स्वपच को भूल से भी देख ले तो उसी समय सूर्य की ओर देख ले और स्नान करे, तभी वह शुद्ध हो सकता है। यदि ऋषि पाराशर ने फलित ज्योतिष
की रचना की होती तो क्या वह ज्योतिषीयों को चांडाल कह कर संबोधित करते? जाहिर है की फलित ज्योतिष की रचना उन्होने नहीं की थी यह केवल
ज्योतिषीयों द्वरा फैलाया गया भ्रम है।
चाणक्य नीति (अ॰ 11/17) के अनुसार - देव-मंदिरों के लिए निर्धारित भूमि, रत्नकोश, दूसरों की धन और अन्य संपदा, और गुरु की भूमि जो धोखे से अपने कपट के व्यवहार से हड़प लेता है उसे चांडाल कहा जाता है।
ज्योतिषी भी बिलकुल यही करते है बोगस ज्योतिष के बोगस सिद्धांतो से मिथ्या भविष्य
बताकर व ग्रहों का भय दिखाकर दूसरों के अमूल्य धन व अन्य संपदा को अपने कपटपूर्ण व्यवहार
से पल मे हड़प लेते है तो वह भी चांडाल हुए।
मनु स्मृति
नक्षत्रैर्यश्च
जीवति एतान् विगर्हिताचारानपांक्तेयान्।
द्विजाधमान्, द्विजातिप्रवरो विद्वानुभयत्र विवर्जयेत्।।
अर्थ:-
नक्षत्र-जीवी(ज्योतिषी) लोग निंदित, पंक्ति को दूषित करने वाले और द्विजों में अधम हैं, इन्हें विद्वान द्विज देवयज्ञ और श्राद्ध में
कभी भोजन न कराएं। (मनुस्मृति अ 3,167)
नारद पुराण (15, 85 - 88) के अनुसार सभी ज्योतिषी नर्क मे जाएगे
– जो सदैव दान लिया करते है, जो नक्षत्रों का अध्ययन कर (भविष्य
बताकर) अपनी जीविका चलाते है, वह पाप से पूर्ण जीव एक कल्प तक
नर्क मे सभी प्रकार की यातनाओ मे पकाए जाते है और वह सदा दुखी रहकर निरंतर कष्ट को
भोगते है। तत्पश्चात कालसूत्र से पीड़ित हो तेल मे डुबाए जाते है फिर उन्हे नमकीन जल
से नहलाया जाता है और उन्हे खाने मे मल मूत्र दिया जाता है। इसके पश्चात वह पृथ्वी
पर आकार मलेच्छ जातियों मे जन्म लेते है।
पलित ज्योतिष और
ज्योतिषीयों के विषय मे विभिन्न शास्त्रों व पुराणों मे उल्लेखित उपरोक्त उद्धरणों
को पढ़ने के पश्चात यह स्वयं स्पष्ट हो जाता है कि पलित ज्योतिष किस प्रकार की विधा
है और विद्या है और इन भविष्यवक्ताओं का सभ्य समाज मे क्या स्थान होना चाहिए। जिन
ऋषियों के नाम पर ज्योतिषी ठगी का धन्धा कर रहें है वास्तव मे उन्हीं ऋषियों ने
हमें बताया है कि सभ्य समाज के व्यक्तियों को इन ज्योतिषीयों के साथ किस तरह का
व्यवहार करना चाहिए लेकिन यह विडम्बना ही कही जाएगी की यह तथ्य जानने के पश्चात भी
(सभ्य समाज) के उच्च शिक्षित व्यक्ति प्रत्येक ज्योतिषी का पता अपनी जेब मे लेकर घूमते
है, कहाँ तो ऋषियों के द्वारा बताए गए
मार्ग पर चलकर कर्म द्वारा अपने भविष्य को समृद्ध बनाया जाना जाना चाहिए परंतु व्यक्ति
है जो यह समझना ही नहीं चाहते है वह उन्हीं ज्योतिषीयों की तलाश मे अपना बहुमूल्य समय
और धन नष्ट कर देते है जो उन्हे ऋषियों के बताए मार्ग से विमुख कर अंधविश्वासी और भायवादी
बना रहें है।
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