क्या ज्योतिष की 2/4 किताबें पढ़कर ज्योतिष नहीं आता है/ज्योतिषी नहीं बना जा सकता है जैसा कि ज्योतिषीयों द्वारा कहा जाता है।
ज्योतिष को ज्ञान का सागर कहा जाता है इसका कारण है कि प्रत्येक ज्योतिषी द्वारा अपने सिद्धांतो का प्रतिपादन करना व्यवहारिक रुप से जिस ज्योतिषी ने जो सिद्धांत किसी व्यक्ति के जीवन से सही मिला दिया उसे सही मान लिया और इस प्रकार से ज्योतिष की अनेक पुस्तकों मे अनेक सिद्धांत हो गए और ज्योतिष सीखने व इस विषय मे रुचि रखने वाले व्यक्ति जिन्होने आधुनिक ज्योतिषीयों द्वारा लिखित पुस्तकें ही पढ़ी होती है इसलिए उन सभी पुस्तकों मे प्रत्येक विषय पर अलग व अनेक सिद्धांत/योग लिखे होने के कारण ज्योतिष ज्ञान का सागर बन जाता है। लेकिन ज्योतिष के जिन मूल/आधारभूत सिद्धांतो के आधार पर फलकथन के द्वितीय सिद्धांतो की रचना की गई/जा रही है, वह आज भी आदिकालीन ब्रम्हांड के ज्ञान पर आधारित है जो इस प्रकार से था - "स्थिर पृथ्वी के गिर्द(ऊपर) घूमते सूर्य चन्द्रमा आदि सभी ग्रह, पृथ्वी के निकट चन्द्रमा और सूर्य चन्द्रमा से भी दूर, व सभी राशियों/नक्षत्रों के तारे चन्द्रमा के उपर और बुध के मध्य स्थित है आदि" - इस प्रकार की जानकारी के आधार पर ज्योतिष के मूल सिद्धांतो की रचना की गई थी जो आज के ब्रम्हांड के ज्ञान के अनुसार सहीं नहीं है। ज्योतिष के मूल सिद्धांत - राशि स्वामी, ग्रहों की दृष्टि, उच्च नीच राशि, मित्र शत्रुता, मूल त्रिकोण, दशा आदि - जो सभी ज्योतिषी द्वारा प्रयुक्त किए जाते है वह सभी ब्रम्हांड की इस प्रकार की जानकारी के आधार पर बनाए गए थे और सभी गलत है। क्योंकि आधुनिक खगोल के ज्ञान अनुसार ब्रम्हांड बेलनाकार नहीं है न ही ग्रह एक के उपर एक इस क्रम मे स्थित है और सूर्य ब्रम्हांड के केन्द्र मे है व पृथ्वी सहित सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते है। इसलिए जब मूल सिद्धांत का आधार ही गलत है तो इनके आधार बने बनाए गए अन्य सिद्धांत कैसे सही हो सकते है वह सब बोगस है फिर चाहे ज्योतिष की कितनी ही पुस्तकें क्यों न रट्ट ली जाए बोगस सिद्धांतो पर से सही भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है।
किसी ज्योतिषी द्वारा कही गई बात गलत निकलने पर सामान्यतः मान लिया जाता है कि उक्त ज्योतिषी ने ज्योतिष की 2/4 किताबें ही पढ़ी है इसलिए उसे ज्योतिष का सम्पूर्ण ज्ञान नहीं है, जब्कि कारण ज्योतिषी का ज्ञान न होकर ज्योतिष के सिद्धांत है। लेकिन ज्योतिष विषय मे प्रचलित मान्यताओं व धारणाओं के कारण गलत भविष्यवाणी का कारण ज्योतिष का ज्ञान ही समझा जाता है क्योंकि आमतौर पर प्रचलित धारणा है कि जिस ज्योतिषी को ज्योतिष का सम्पूर्ण ज्ञान है वही ज्योतिषी सही भविष्यवाणी कर सकते है। किस ज्योतिषी को ज्योतिष का सम्पूर्ण ज्ञान है और किसे नहीं यह सुनिश्चित करने का किसी भी व्यक्ति के पास कोई तरीका नहीं होता है सिवाय किसी सामान्य ज्ञान की बात को सही भविष्यवाणी के रुप मे स्वीकार करने के। व्यक्ति कभी भी किसी ज्योतिषी से उसके ज्योतिष ज्ञान के सम्बन्ध मे प्रश्न नहीं करते है यदि किया भी जाए तो कौन सा ज्योतिषी होगा जो यह कहेगा कि उसे ज्योतिष का सम्पूर्ण ज्ञान नहीं है ! इससे तो दुकानदारी वैसे ही खराब हो जाएगी। अतः सामान्यतः वही ज्योतिषी ज्योतिष का विद्वान माना जाता है जो अच्छी तरह से मूर्ख बनाकर वापिस भेज दे(चाहे उसने ज्योतिष की एक भी कितान न पढ़ी हो) वही ज्योतिषी सर्वज्ञ होता है।
ज्योतिष के विद्वान की श्रेणी मे वह ज्योतिषी आते है जिन्होने ज्योतिष की अनेक किताबे पढ़ी हो और दो चार किताबे पढ़कर ज्योतिषी बने व्यक्ति को अल्प ज्ञानी कहा जाता है। किस ज्योतिषी ने कितनी किताब पढ़ी है इसका पता करने का भी कोई सही तरीका किसी व्यक्ति के पास नहीं होता है इसलिए यह भी केवल एक धारणा ही है। जब्कि सच्चाई यह है कि ज्योतिषी बनने के लिए अनेक किताबे पढ़ने की आवश्यकता नहीं होती है केवल एक भृगु सहिंता या वृहदपाराशर होराशास्त्र या किसी आधुनिक ज्योतिषी द्वारा "ज्योतिष सीखें, ज्योतिषी कैसे बने" आदि शीर्षक से लिखित किसी भी पुस्तक को पढ़कर कोई भी व्यक्ति ज्योतिषी बन सकता है। सभी पुस्तकों मे ज्योतिष के सिद्धांत लिखे होते है जिसका ज्ञान होने पर ज्योतिषी बना जा सकता है इसलिए एक किताब पढ़े या दस उससे उन सिद्धांतो मे कोई अन्तर नहीं आता है हां अनेक किताबे पढ़कर व्यक्ति ठगी की कला मे माहिर अवश्य हो जाता है।
यह बात बिल्कुल गलत है कि ज्योतिष 2/4 किताबें पढ़कर नहीं आता है ज्योतिष की एक पुस्तक पढ़कर ही ज्योतिष का सम्पूर्ण ज्ञान हो जाता है इस बात को प्रमाणित करता है वृहदपाराशर होराशास्त्र का यह श्लोक -
होराशास्त्रार्थतत्वज्ञ सत्यवाग् विजितेन्द्रियः।
शुभा§शुभं फलं वक्ति सत्य तद्वचनं भवेत्।।
अर्थ - जिसको इस होराशास्त्र का सम्पूर्ण ज्ञान है, जो सत्य बोलता है, जिसने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया है, ऐसे व्यक्ति द्वारा कहा गया शुभ अशुभ फलादेश सत्य होता है। अथोपसंहाराध्यायः - ६
विवेचन - वृहदपाराशार होरा शास्त्र के इस श्लोक से स्पष्ट है कि केवल एक पाराशर होराशास्त्र पढ़कर ही ज्योतिष का सम्पूर्ण ज्ञान हो जाता है और व्यक्ति ज्योतिषी बन सकते है उसके लिए अनेक पुस्तके पढ़ने की कोई आवश्यकता नहीं है। अतः ज्योतिषीयो द्वारा यह कहा जाना पूर्णतया गलत है कि दो चार किताबें पढ़कर कोई ज्योतिषी नहीं बन सकता है। यह बात केवल दूसरों को अल्पज्ञानी व स्वयं को महाज्ञानी बताकर भ्रमित करने के लिए ही कही जाती है।
अब आप स्वयं विचार कर सकते है कि ज्योतिषीयों द्वारा किस प्रकार से समाज को भ्रमित कर मूर्ख बनाया जाता है ऐसी अनेक बातें है जो ज्योतिषीयों द्वारा केवल अपने ठगी के धन्धे के उद्देश्य से ही फैलाई गई है जिनके बारे मे आपको अवगत करवाया जा चुका है और जा रहा है। इसलिए जब भी कोई ज्योतिषी ऐसी ही किसी बात को कहकर मूर्ख बनाने की कोशिश करे तो उसे सही तथ्य बताकर स्वयं को और अन्य व्यक्तियों को भी लुटे जाने से बचाएं।
ज्योतिष को ज्ञान का सागर कहा जाता है इसका कारण है कि प्रत्येक ज्योतिषी द्वारा अपने सिद्धांतो का प्रतिपादन करना व्यवहारिक रुप से जिस ज्योतिषी ने जो सिद्धांत किसी व्यक्ति के जीवन से सही मिला दिया उसे सही मान लिया और इस प्रकार से ज्योतिष की अनेक पुस्तकों मे अनेक सिद्धांत हो गए और ज्योतिष सीखने व इस विषय मे रुचि रखने वाले व्यक्ति जिन्होने आधुनिक ज्योतिषीयों द्वारा लिखित पुस्तकें ही पढ़ी होती है इसलिए उन सभी पुस्तकों मे प्रत्येक विषय पर अलग व अनेक सिद्धांत/योग लिखे होने के कारण ज्योतिष ज्ञान का सागर बन जाता है। लेकिन ज्योतिष के जिन मूल/आधारभूत सिद्धांतो के आधार पर फलकथन के द्वितीय सिद्धांतो की रचना की गई/जा रही है, वह आज भी आदिकालीन ब्रम्हांड के ज्ञान पर आधारित है जो इस प्रकार से था - "स्थिर पृथ्वी के गिर्द(ऊपर) घूमते सूर्य चन्द्रमा आदि सभी ग्रह, पृथ्वी के निकट चन्द्रमा और सूर्य चन्द्रमा से भी दूर, व सभी राशियों/नक्षत्रों के तारे चन्द्रमा के उपर और बुध के मध्य स्थित है आदि" - इस प्रकार की जानकारी के आधार पर ज्योतिष के मूल सिद्धांतो की रचना की गई थी जो आज के ब्रम्हांड के ज्ञान के अनुसार सहीं नहीं है। ज्योतिष के मूल सिद्धांत - राशि स्वामी, ग्रहों की दृष्टि, उच्च नीच राशि, मित्र शत्रुता, मूल त्रिकोण, दशा आदि - जो सभी ज्योतिषी द्वारा प्रयुक्त किए जाते है वह सभी ब्रम्हांड की इस प्रकार की जानकारी के आधार पर बनाए गए थे और सभी गलत है। क्योंकि आधुनिक खगोल के ज्ञान अनुसार ब्रम्हांड बेलनाकार नहीं है न ही ग्रह एक के उपर एक इस क्रम मे स्थित है और सूर्य ब्रम्हांड के केन्द्र मे है व पृथ्वी सहित सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते है। इसलिए जब मूल सिद्धांत का आधार ही गलत है तो इनके आधार बने बनाए गए अन्य सिद्धांत कैसे सही हो सकते है वह सब बोगस है फिर चाहे ज्योतिष की कितनी ही पुस्तकें क्यों न रट्ट ली जाए बोगस सिद्धांतो पर से सही भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है।
किसी ज्योतिषी द्वारा कही गई बात गलत निकलने पर सामान्यतः मान लिया जाता है कि उक्त ज्योतिषी ने ज्योतिष की 2/4 किताबें ही पढ़ी है इसलिए उसे ज्योतिष का सम्पूर्ण ज्ञान नहीं है, जब्कि कारण ज्योतिषी का ज्ञान न होकर ज्योतिष के सिद्धांत है। लेकिन ज्योतिष विषय मे प्रचलित मान्यताओं व धारणाओं के कारण गलत भविष्यवाणी का कारण ज्योतिष का ज्ञान ही समझा जाता है क्योंकि आमतौर पर प्रचलित धारणा है कि जिस ज्योतिषी को ज्योतिष का सम्पूर्ण ज्ञान है वही ज्योतिषी सही भविष्यवाणी कर सकते है। किस ज्योतिषी को ज्योतिष का सम्पूर्ण ज्ञान है और किसे नहीं यह सुनिश्चित करने का किसी भी व्यक्ति के पास कोई तरीका नहीं होता है सिवाय किसी सामान्य ज्ञान की बात को सही भविष्यवाणी के रुप मे स्वीकार करने के। व्यक्ति कभी भी किसी ज्योतिषी से उसके ज्योतिष ज्ञान के सम्बन्ध मे प्रश्न नहीं करते है यदि किया भी जाए तो कौन सा ज्योतिषी होगा जो यह कहेगा कि उसे ज्योतिष का सम्पूर्ण ज्ञान नहीं है ! इससे तो दुकानदारी वैसे ही खराब हो जाएगी। अतः सामान्यतः वही ज्योतिषी ज्योतिष का विद्वान माना जाता है जो अच्छी तरह से मूर्ख बनाकर वापिस भेज दे(चाहे उसने ज्योतिष की एक भी कितान न पढ़ी हो) वही ज्योतिषी सर्वज्ञ होता है।
ज्योतिष के विद्वान की श्रेणी मे वह ज्योतिषी आते है जिन्होने ज्योतिष की अनेक किताबे पढ़ी हो और दो चार किताबे पढ़कर ज्योतिषी बने व्यक्ति को अल्प ज्ञानी कहा जाता है। किस ज्योतिषी ने कितनी किताब पढ़ी है इसका पता करने का भी कोई सही तरीका किसी व्यक्ति के पास नहीं होता है इसलिए यह भी केवल एक धारणा ही है। जब्कि सच्चाई यह है कि ज्योतिषी बनने के लिए अनेक किताबे पढ़ने की आवश्यकता नहीं होती है केवल एक भृगु सहिंता या वृहदपाराशर होराशास्त्र या किसी आधुनिक ज्योतिषी द्वारा "ज्योतिष सीखें, ज्योतिषी कैसे बने" आदि शीर्षक से लिखित किसी भी पुस्तक को पढ़कर कोई भी व्यक्ति ज्योतिषी बन सकता है। सभी पुस्तकों मे ज्योतिष के सिद्धांत लिखे होते है जिसका ज्ञान होने पर ज्योतिषी बना जा सकता है इसलिए एक किताब पढ़े या दस उससे उन सिद्धांतो मे कोई अन्तर नहीं आता है हां अनेक किताबे पढ़कर व्यक्ति ठगी की कला मे माहिर अवश्य हो जाता है।
यह बात बिल्कुल गलत है कि ज्योतिष 2/4 किताबें पढ़कर नहीं आता है ज्योतिष की एक पुस्तक पढ़कर ही ज्योतिष का सम्पूर्ण ज्ञान हो जाता है इस बात को प्रमाणित करता है वृहदपाराशर होराशास्त्र का यह श्लोक -
होराशास्त्रार्थतत्वज्ञ सत्यवाग् विजितेन्द्रियः।
शुभा§शुभं फलं वक्ति सत्य तद्वचनं भवेत्।।
अर्थ - जिसको इस होराशास्त्र का सम्पूर्ण ज्ञान है, जो सत्य बोलता है, जिसने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया है, ऐसे व्यक्ति द्वारा कहा गया शुभ अशुभ फलादेश सत्य होता है। अथोपसंहाराध्यायः - ६
विवेचन - वृहदपाराशार होरा शास्त्र के इस श्लोक से स्पष्ट है कि केवल एक पाराशर होराशास्त्र पढ़कर ही ज्योतिष का सम्पूर्ण ज्ञान हो जाता है और व्यक्ति ज्योतिषी बन सकते है उसके लिए अनेक पुस्तके पढ़ने की कोई आवश्यकता नहीं है। अतः ज्योतिषीयो द्वारा यह कहा जाना पूर्णतया गलत है कि दो चार किताबें पढ़कर कोई ज्योतिषी नहीं बन सकता है। यह बात केवल दूसरों को अल्पज्ञानी व स्वयं को महाज्ञानी बताकर भ्रमित करने के लिए ही कही जाती है।
अब आप स्वयं विचार कर सकते है कि ज्योतिषीयों द्वारा किस प्रकार से समाज को भ्रमित कर मूर्ख बनाया जाता है ऐसी अनेक बातें है जो ज्योतिषीयों द्वारा केवल अपने ठगी के धन्धे के उद्देश्य से ही फैलाई गई है जिनके बारे मे आपको अवगत करवाया जा चुका है और जा रहा है। इसलिए जब भी कोई ज्योतिषी ऐसी ही किसी बात को कहकर मूर्ख बनाने की कोशिश करे तो उसे सही तथ्य बताकर स्वयं को और अन्य व्यक्तियों को भी लुटे जाने से बचाएं।
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