पिछले लेख में आपने जाना कि फलित ज्योतिष की नींव ही गलत है। इतिहास के अध्ययन से यह ज्ञात होता है की आदिकालीन समय में ब्रह्मांड का सही ज्ञान नहीं था उस समय के ज्ञान अनुसार ब्रह्मांड बेलनाकार था और सभी ग्रह एक के ऊपर एक स्थित थे। तत्कालीन ज्ञान अनुसार पृथ्वी स्थिर व चपटी थी जिसके ऊपर सभी ग्रह परिक्रमा करते थे जब यह तथ्य सार्वजनिक किया जाता है तो अनेक व्यक्ति इसे मानने को तैयार नहीं होते है इसका पहला कारण है पुरातन ज्ञान को 100 प्रतिशत सही मान लेना और दूसरा है खगोल का सामान्य ज्ञान नहीं होना। अधिकतर व्यक्तियों को खगोल के विषय मे सही ज्ञान नहीं है वह सौरमंडल के वर्तमान ज्ञान को ही आदिकालीन व ऋषियों द्वारा प्रतिपादित ज्ञान समझते है इस कारण फलित ज्योतिष की रचना के समय ब्रह्मांड के बारे में क्या ज्ञान था इसे समझने में असमर्थ रहते है। तीसरा कारण है इतिहास का ज्ञान नहीं होना - व्यक्ति भले ही शिक्षित है लेकिन वह खगोल के इतिहास के बारे कुछ नहीं जानते है खगोलशास्त्र के इतिहास से संबंधित सामान्य बातों का भी ज्ञान उन्हें नहीं है उन्हें लगता है कि गरुत्व बल का ज्ञान ऋषियों ने न्यूटन को दिया था, पृथ्वी के गोल होने, सौरमंडल के केंद्र में न होने, सूर्य की परिक्रमा करने, अपनी धुरी पर घूमने आदि बातों की जानकारी भी ऋषियों ने ही अरस्तु, कॉपरनिकस, गैलीलियो, कैप्लर को दी थी। यह सही है कि ब्रह्मांड के विषय मे खोज की नींव ऋषियों ने ही रखी थी लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि उन्हें उसकी सही जानकारी भी थी। ऋषियों ने जब पहली बार आकाश को देखा होगा तो असंख्य तारों उपग्रहों के मध्य ग्रहों की पहचान करना उनकी बड़ी उपलब्धि थी। आकाश मे चलते ग्रहों को देखकर उन्हे दैवीय शक्ति माना जाना उचित ही प्रतीत होता है क्योंकि पहली बार मे ही कोई खोज सही हो, उसके बारे मे पूर्ण ज्ञान हो जाए यह आवश्यक नहीं होता है। आज आधुनिक तकनीक के होते हुए भी वैज्ञानिक ब्रह्मांड के विषय मे किसी नवीन ख़ोज पर पहली बार मे ही सही सही नहीं बता सकते है जब तक की उसके बारे में और जानकारी एकत्र नहीं हो जाती है तो आदिकालीन समय मे ऋषि मुनि जिनके पास आधुनिक ज्ञान के साथ आधुनिक समय की कोई उन्नत तकनीक नहीं थी, वह किस प्रकार से ब्रह्मांड के विषय मे सही सही जानकारी एकत्र कर सकते थे। यहां आप आपके मन मे यह प्रश्न भी उठता होगा कि यदि ऋषियों को ब्रह्मांड के बारे में सही ज्ञान नहीं था तो इस से क्या अंतर पड़ता है, उनके बनाए सिद्धांत तो सही है! - जी नहीं, यह तर्क ठीक वैसा ही है जैसे आप पत्र तो अपने किसी मित्र को ही लिखते है लेकिन उस पर पता किसी और का लिख कर पोस्ट कर देते है। अब इस बात को विस्तारपूर्वक समझिए। फलित ज्योतिष का आधार है ग्रह और फलकथन के सिद्धांतो का आधार है ग्रहों की आकाशीय स्थिति। फलित ज्योतिष के सभी सिद्धांतों की रचना ग्रहों की आकाशीय स्थिति के आधार पर की गई थी, चूंकि आदिकालीन समय में ग्रहों की वास्तविक स्थिति का ज्ञान नहीं था इस कारण सभी सिद्धांत गलत है क्यंकि जब सिद्धांतो को बनाए जाने का आधार ही गलत हो तो सिद्धांत कैसे सही बनाए जा सकते थे ! यह सम्भव ही नहीं है। खगोल का सामान्य ज्ञान रखने वाले व्यक्ति भी इस से सहमत नहीं होंगे की "बेलनाकार ब्रह्मांड में स्थिर पृथ्वी के ऊपर घूमते सभी ग्रह" इस आधार पर बने फलित ज्योतिष के सिद्धांत आज के ब्रह्मांड के ज्ञान के परिपेक्ष्य में सही नहीं है क्योंकि फलित ज्योतिष के सिद्धांत ग्रहों की आकाशीय स्थिति पर आधारित है और जब फलित ज्योतिष के रचयिताओं को ग्रहों की वास्तविक आकाशीय स्थिति का ज्ञान ही नहीं था तो सिद्धान्त भी सही नहीं बनाए जा सकते थे। आज हम भली भांति जानते है की न तो ब्रह्मांड बेलनाकार है न ही पृथ्वी स्थिर व चपटी है न ही ग्रह एक के ऊपर एक स्थित है न ही वह पृथ्वी के ऊपर परिक्रमा करते है, ब्रह्मांड के विषय मे आदिकाल का यह ज्ञान गलत सिद्ध हो चुका है तो इसी आदिकालीन ब्रह्मांड के ज्ञान के आधार पर बने ज्योतिष के सिद्धान्त भी स्वतः ही गलत सिद्ध हो जाते है भले ही किसी व्यक्ति को अंधविश्वास के कारण फलित ज्योतिष के सिद्धांतों का बोगस होना स्वीकार्य न हो पर यह अटल सत्य है।
फलित ज्योतिष को अवैज्ञानिक विषय क्यों कहा जा रहा है क्योंकि यह वास्तव में एक अवैज्ञानिक विषय ही है जिसे ज्योतिषीयों द्वारा अपने धंधे की विश्वसनीयता को बनाए रखने के उद्देश्य से विज्ञान बनाकर समाज के समक्ष प्रस्तुत किया जाता रहा है जिस कारण छद्मविज्ञान का यह विषय विज्ञान का पर्याय बन कर स्थापित हो चुका है। छद्मविज्ञान की पहचान किस प्रकार से की जाए इस पर इस श्रृंखला के पिछले लेख में बताया जा चुका है। फलित ज्योतिष विज्ञान है अथवा नहीं इसे समझने के लिए हमें पहले विज्ञान की परिभाषा को समझना होगा। विज्ञान का अर्थ है वह विशिष्ट ज्ञान, जो क्रमबद्ध एवं सूत्रबद्ध विधि से प्राप्त हुआ हो। विज्ञान ज्ञान प्राप्त करने की ऐसी विधि है, जिसमें तार्किक विधियों एवं प्रयोगों के आधार पर निष्कर्ष पर पहुँचा जाता है। वास्तव में सही तथ्य की खोज का नाम विज्ञान है, अर्थात विज्ञान का मतलब सम्यक ज्ञान होता है। विज्ञान की सबसे बड़ी खूबी होती है की वह सत्य को स्वीकारता है और झूठ को नकारता भी है समय और ज्ञान की उन्नता के चलते वह पूर्व में कही गई अपनी ही बात को नकारने से भी गुरेज नहीं करता है जबकि फलित ज्योतिष में ऐसा कुछ भी नहीं है। फलित ज्योतिष आज भी आदिकालीन ब्रह्मांड के ज्ञान पर ही चल रहा है विज्ञान के विपरीत फलित ज्योतिष ने कभी भी पुराने ज्ञान को हटाकर नए तर्कसंगत व सही ज्ञान के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने की जहमत नहीं उठाई। फलित ज्योतिष में सूर्य जो एक तारा है, आज भी ग्रह है और चंद्रमा जो ग्रह न हो कर पृथ्वी का उपग्रह है ज्योतिष में ग्रह है इसी प्रकार से राहु केतु दो ऐसे ग्रह बना दिए गए जिनका भौतिक रूप में अस्तित्व ही नहीं है और राहु केतु की पौराणिक मान्यता ही फलित ज्योतिष का विज्ञान है। फलित ज्योतिष के ब्रह्मांड के विषय में आधुनिक ज्ञान सम्मिलित करना पौराणिक व धार्मिक मान्यताओं के कारण आवश्यक ही नहीं था जबकि हकीकत यह है की यदि फलित ज्योतिष में ग्रहों के विषय मे आधुनिक ज्ञान को सम्मिलित किया जाता तो पूरा फलित ज्योतिष स्वतः ही निर्रथक हो जाता सभी सिद्धांत बोगस सिद्ध हो जाते इस कारण से ज्योतिषीयों ने ब्रहांड के आधुनिक ज्ञान को ऋषियों के नाम से छापना व प्रचारित करना प्रारंभ कर दिया जिससे कि किसी के मन मे यह संदेह उत्पन्न न हो की फलित ज्योतिष ब्रह्मांड की गलत जानकारी के आधार पर बनाया गया था और बोगस है। फलित ज्योतिष को विज्ञान बनाने के लिए ज्योतिषीयों द्वारा समाज में अनेक प्रकार की भ्रांतियां फैलाई गई जो अटल सत्य का पर्याय बन कर अंधविश्वास के रूप में हमारे सामने है जिसे मिटाने के लिए संयुक्त रूप से प्रयास करना होगा ताकि भविष्य की पीढ़ी को अंधविश्वास से बचाया जा सके।
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Jyotish is fake.........koi kisi ka future nhi bta sakta ........insaan apna future apni soch ke hisab se khud banata hai...........agar asa hi hota to koi work hi ni krega or beth jaega bhagya k bhrose😂😂😂😂
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