कर्म करना जितना मुश्किल है टोटके करना उससे कहीं अधिक सरल है इसलिए व्यक्ति कर्म की बजाय टोटके से सब करने की उम्मीद लिए ज्योतिषी के द्वार पर बैठे रहते है जिससे कि वह अपना भविष्य जानकर ग्रहों को चाबुक मारकर उनसे अपनी इच्छानुसार कार्य करवा सके। व्यक्ति की इसी भाग्यवादिता और कर्महीनता के कारण ज्योतिष का धंधा पनपता है और वह स्वयं अपनी इच्छानुसार ज्योतिषीयों के द्वारा बिछाए गए ग्रह जाल के चक्रव्यूह मे फसकर आजीवन ग्रहों को ठीक कराने के लिए ज्योतिषी के द्वार पर बैठे रहते है यंत्र मंत्र तंत्र टोटके आदि से किसी चमत्कार की उम्मीद रखते हुए अपने भविष्य को स्वयं अपने ही हाथों से तबाह कर देते है। लेकिन ऐसा क्यों होता है की व्यक्ति कर्म के महत्व को नकार कर भाग्यवादी जीवन को अपना लेते है ? ऐसा होता है कर्महीन जीवन जीने की चाह और समाज मे प्रचलित विभिन्न प्राचीन मान्यताओं के कारण जिन पर व्यक्ति का अटूट विश्वास होता है। 21वीं सदी मे भी व्यक्ति अंधविश्वासी है भले ही वह शिक्षित है और स्वयं को आधुनिक कहे व दिखाने का प्रयास करे लेकिन सच तो यह है कि विचारों से वह आज भी जड़ मति है विचारों मे कोई विशेष परिवर्तन व जिज्ञासा न होने से वह बड़ी आसानी से किसी भी बात पर यकीन कर लेते है। वास्तव मे व्यक्ति आधुनिकता की दौड़ मे स्वयं को पिछड़ता हुआ नहीं देखना चाहते है आगे न बढ़ सके तो कम से कम साथ चलते रहे इसके लिए हर संभव प्रयास किया जाता है जिसमे सफलता के साथ असफला का मुंह भी देखना पड़ता है और बार बार असफलता मिलने के कारण जन्म होता है भाग्यवादिता का जिसमे ज्योतिष से लेकर प्रारब्ध किस्मत पूर्वजन्म आदि शामिल होते है। एक बार भाग्यवादी विचार हावी होने के पश्चात कर्म की ओर लौटने का प्रश्न नहीं उठता है क्योंकि उनके अनुसार अब तक वही करते आए है और बावजूद उसके सफलता मीलों दूर से मुस्कराते हुए व्यक्ति के परिश्रम मे कमी व अयोग्यता का आकलन कर उसके भाग्यवादी होने पर ठठा लगा रही होती है।
भाग्यवादिता कर्महीनता की जननी है व्यक्ति कब भाग्यवादी होकर कर्महीन बन जाते है उसका उन्हें पता भी नहीं चलता है भाग्यवादी विचार हावी होने के पश्चात व्यक्ति भाग्य से ही कर्म करने की अपेक्षा करने लगते है और अपने अनिर्मित भाग्य के झरोखे मे झाँककर अपने भविष्य को सुनिश्चित कर लेना चाहते है ऐसे भविष्य को जिसे कर्म से बनाया जा सकता है और बनाया जाना चाहिए परंतु भाग्य का आवरण ओढ़कर कर्म रूपी वृक्ष को जड़ से ही काट दिया जाता है अथवा वह धीरे-धीरे सूखता चला जाता है। एक मान्यता के अनुसार – “कर्म के साथ भाग्य का होना आवश्यक है” पर क्या वास्तव मे ऐसा है ! बिल्कुल नहीं, कर्म के लिए भाग्य की आवश्यकता नहीं है और भाग्य के लिए कर्म की, कर्म से भाग्य का निर्माण किया जा सकता है लेकिन भाग्य से कर्म का निर्माण नहीं होता है। प्रचलित धारणा यही है की जो भाग्य मे लिखा होता है वही होता है लेकिन यदि भाग्य मे लिखे लेख के अनुसार ही जीवन चक्र चलित हो तो कर्म की आवश्यक्ता ही क्या है भाग्य के लेख अनुसार सब स्वतः ही हो जाएगा और यदि कर्म अनुसार ही जीवन चक्र चालित हो (जो की वास्तव मे है) तो भाग्य का कोई महत्व नहीं है। भाग्य और कर्म दोनों एक दूसरे के विपरीत विषय है। विडम्बना भी यही है कि भाग्यवादी व्यक्ति कर्म के महत्त्व को नहीं समझते है उनके अनुसार जो उनके भाग्य में लिखा होगा वह उन्हें अवश्य प्राप्त होगा तो कर्म क्यों किया जाए लेकिन अपने भाग्य में लिखे हुए लेख को भी वह बदलना चाहते है जिसके लिए वह मंत्र यंत्र रत्न व टोटको का सहारा लेते है जिसके की उनके भाग्य में लिखी जा चुकी वस्तु की शीघ्र प्राप्ति हो। वास्तव में मनुष्य में धैर्य नहीं है किसी भी कार्य या वस्तु की प्राप्ति के लिए वह समय की प्रतीक्षा नहीं कर सकता है वह समय के साथ नहीं अपितु उस से एक कदम आगे रहना चाहता है अपने इस प्रयास में वह कितना सफल रहता है इसका आकलन शायद ही किया जाता है।
संत कबीर ने कहा है - धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय। ऐसा लगता है जैसे की संत कबीर ने यह दोहा पूर्वनिश्चित भविष्य को टोटके से बदल कर निश्चित समय से पहले ही फल की प्राप्ति की इच्छा रखने वाले व्यक्तियों को समझाने के लिए ही लिखा हो। यदि इस दोहे में कही गई गूढ़ बात को समझा जाए तो यंत्र मन्त्र रत्न व टोटके करना ठीक वैसा है जैसे की कोई माली किसी पेड़ को इस उम्मीद में पानी दे कर सींचता रहे कि भोर होते ही पेड़ फल देने लग जाए। माली के इस कर्म को यदि उसके भाग्य से जोड़ दिया जाए तो क्या यह संभव है कि समय/ऋतु से पूर्व ही उसका भाग्य उस पेड़ को फल देने के लिए बाध्य कर दे! जबकि पेड़ का भाग्य (फल लगने की ऋतु) भी निश्चित है वह कब किस ऋतु में फल देगा प्रकृति अनुसार निश्चित है माली यदि अपने भाग्य को बदल भी ले तो उसके साथ ही ऋतु के क्रम को भी बदलना पडेगा तभी पेड़ में फल लगेंगे और माली के नए भाग्य अनुसार उसे फल की प्राप्ति होगी। परंतु क्या ऐसा होना संभव है? इस पर सभी व्यक्ति एकमत होंगे कि ऐसा होना सम्भव  ही नहीं है क्योंकि वह जानते है कि ऋतु चक्र निश्चित है माली कितना ही प्रयास करे ऋतु चक्र को नहीं बदला जा सकता है लेकिन इस तथ्य को समझने के पश्चात भी अपने, केवल "मान्यता रूपी निश्चित भविष्य" को यंत्र मंत्र रत्न व बेतुके टोटकों से बदलने का निर्रथक प्रयास करते है।
भविष्य बदलने की बात तब आती है जब भविष्य पूर्वनिश्चित हो अर्थात व्यक्ति को उसका ज्ञान हो उसके पश्चात ही उसे बदलने के लिए आवश्यक कर्म पर विचार किया जा सकता है जो प्रथम दृष्टि में टोटके यंत्र मंत्र आदि ही है। टोटके करना भी एक प्रकार का कर्म है जो व्यक्ति द्वारा अपने भविष्य को बदलने के लिए किया जाता है और टोटके यंत्र मन्त्र रत्न आदि अनेक ज्योतिषीय उपाय करने का अर्थ है पूर्वनिश्चित भविष्य के अंतर्गत घटित होने वाली घटनाओं को पूरी तरह से बदलना अर्थात समय चक्र को बदलने का प्रयास करना जो वास्तव में मुमकिन ही नहीं है। क्योंकि अपनी घड़ी में समय बदलने का अर्थ यह नहीं होता है की वास्तविक समय भी परिवर्तित हो गया है, हां मनोवैज्ञानिक रूप से आप उसी समय को वास्तविक समय मानकर चल सकते है लेकिन जैसे ही आप घर से बाहर कदम रखेंगे, तो आपको उसी क्षण वास्तविक समय पर आना पड़ेगा अन्यथा समय के साथ तालमेल नहीं बिठा पाएंगे। पूर्वनिश्चित भविष्य के संदर्भ ने देखा जाए तो यंत्र मंत्र रत्न टोटके आदि करना स्वयं में निरथर्क कर्म है क्योंकि व्यक्ति चाहकर भी अपने पूर्वनिश्चित भविष्य को नहीं बदल सकता है जजाहिर है अपने जिस भविष्य का वह जन्मदाता ही नहीं है, उसे कैसे बदल सकता है ! सम्भवतः आप भविष्य बदलने के मेरे इस कथन को केवल अपने भविष्य के संदर्भ में ही देख रहें हों लेकिन वास्तविकता यह है कि आपका भविष्य केवल आपके साथ साथ आपके परिवार मित्र अन्य परिचित व अपरिचित व्यक्तियों के साथ जुड़ा होता है इसलिए यदि आप टोटके या किसी अन्य माध्यम द्वारा अपने भविष्य के बदलने की राह देखते है तो आप गलत है ऐसी स्थिति में आपने अपरोक्ष रूप से आपके साथ जुड़े हुए उन सभी व्यक्तियों का भविष्य भी उनके द्वारा बिना कुछ किए ही बदल दिया जो कि नाममुकिन है। क्रमशः

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