अब तक आपने मांगलिक दोष के बारे मे जाना इसके अलावा भी कुंडली मिलान से सम्बन्धित अनेक योग है जिनको दोष का नाम देकर ज्योतिषीयों ने समाज मे अनावश्यक रुप से भय व्याप्त कर रखा है जिनके बारे मे आपको बताया जा रहा है ऐसा ही एक योग है विषकन्या योग जिसे विषकन्या दोष भी कहा जाता है। इस योग पर भी मांगलिक दोष की तरह ही विवाह से पूर्व विचार किया जाता है लेकिन इस योग/दोष को केवल स्त्री की कुंडली मे ही देखा जाता है क्योंकि यह योग जैसे कि नाम से ही स्पष्ट है स्त्री जातक के लिए ही है। दरअसल यह योग मृत सन्तान उत्पन्न होने से सम्बन्धित है इसलिए, स्त्रियों की कुंडली से ही सम्बन्धित है। लेकिन विषकन्या योग के बारे मे भी ज्योतिषीयों द्वारा अनेक प्रकार की भ्रांतियां फैलाई गई है जैसे कि ऐसी स्त्री विवाह के तुरन्त बाद ही विधवा हो जाती है आदि। विषकन्या योग का सिद्धांत अपने आप मे ही बोगस है लेकिन फिर भी यह प्रचलित तो है ही इसलिए यह योग किस प्रकार से बोगस है इसका ज्ञान उन सभी जिज्ञासु मित्रों को होना चाहिए जो ग्रुप मे हो चर्चा व इस ब्लाग पर अन्य लेख को निरन्तर पढ़ रहे है और समझ भी रहे है जिसके कि मांगलिक दोष की तरह अनेक बोगस योग/दोष के नाम पर की जा रही ठगी के बारे मे आपके ज्ञान मे वृद्धि हो और भविष्य मे स्वयं के साथ अन्य मित्रों की ठगे जाने से बचा सके।
विषकन्या योग के सिद्धान्त की जानकारी के लिए एक बार फिर से वृहदपाराशर होराशास्त्र से कुछ सिद्धान्त लेते है आप विचार कर रहे होंगे की हमेशा पाराशर होराशास्त्र की बात ही क्यों करता हूं, वह इसलिए क्योंकि ज्योतिष जगत मे इस पुस्तक को ज्योतिष का पितामह माना जाता है तो एक तरह से पाराशर होराशास्त्र ज्योतिष के बोगस सिद्धांतो के बरगद के पेड़ की जड़ है जिसकी प्रत्येक डाल पर ज्योतिषी बैठकर ठगी का धंधा कर रहे है इसलिए जब जड़ ही नहीं रहेगी तो पेड़ अपने आप ही सूख जाएगा हालांकि इसे सूखने मे अनेकों वर्ष लग जाएंगे लेकिन उसके लिए प्रयास तो अभी से करना पड़ेगा वही यह ग्रुप कर रहा है। वृहदपाराशर होराशास्त्र के 80वें अध्याय के श्लोक 43,44,45,46 के अनुसार -
ससपार्ग्रिजलेशक्ष्रे भानुमंदारवासरे।
भद्रातिथौ जनुर्यस्या: सा विषाख्या कुमारिका।।४३
अर्थ जिस स्त्री का जन्म रविवार को आश्लेषा नक्षत्र और द्वितीय तिथि मे, शनिवार को कृतिका नक्षत्र और सप्तमी तिथि मे, मंगलवार को शतभिषा नक्षत्र और द्वादशी तिथि मे, हो तो वह स्त्री विषकन्या होती है।
विषयोगे समुत्पन्ना मृतवत्सा च दुर्भगा।
वस्त्राभरणहीना च शोकसंतप्तमानसा।।४४
अर्थ विषकन्या योग मे जन्म लेने वाली स्त्री के प्रजनन अंगो मे विकृति होती है और वह मृत सन्तान को जन्म देती है तथा वस्त्रों आभूषणों से महरूम होकर मन से दुखी होती है।
- इस सिद्धान्त के अनुसार यह योग न होकर वार नक्षत्र और तिथि का एक संयोग है जो ब-मुश्किल से बनता है और एक वर्ष मे १०-१२ दिन भी मुश्किल से ही बनेगा तो इस सिद्धांत की सच्चाई का अन्दाजा आप इसी बात से लगा सकते है एक दिन/नक्षत्र/तिथि जो २४ घंटे का होता है, मे लाखों बच्चे उत्पन्न होते है तो यह सम्भव नहीं है कि पूरे एक दिन इस संयोग मे उत्पन्न उन सभी स्त्रियों के मृत बच्चे पैदा हो किसी एक का भी जीवित न हो और अन्य ३५५ दिनों मे पैदा होने वाली किसी भी स्त्री के मृत सन्तान नहीं होती है सभी के जीवित ही होती है इसलिए यह सिद्धान्त बोगस है और इस पर कोई विशेष टिप्पणी करने की आवश्यकता नहीं है।
सपापश्च शुभौ लग्ने द्वौ पापौ शत्रुभस्थितौ।
यस्या जानुषि सा कन्या विषाख्या परिकीर्तिता।।४५
अर्थ यदि लग्न मे शुभ और पाप दोनों ग्रह स्थित हो, और दो पाप ग्रह शत्रु राशि मे स्थित हो तो ऐसे योग मे जन्म लेने वाली कन्या विषकन्या होती है।
- ग्रहों की मित्रता शत्रुता के सिद्धांत मे एकरुपता नहीं होने के कारण इस सिद्धांत अनुसार यह योग पूर्ण रुप से किसी भी स्थिति मे नहीं बनता है सिवाय ज्योतिषी द्वारा व्यक्ति की परिस्थिति देखकर अपने धन्धे के लिए उसे मूर्ख बनाए जाने की स्थिति के, इसलिए इस सिद्धांत के विश्लेषण की आवश्यकता नहीं है निम्नलिखित विषकन्या योग भंग होने के सिद्धांत अनुसार यह भी बोगस सिद्ध हो जाएगा।
सप्तमेश: शुभो वापि सप्तमे लग्नतोथवा।
चंद्रतो वा विषं योगं विनिहन्ति न संशय।।४६
अर्थ यदि सातवें भाव का स्वामी शुभ ग्रह हो या लग्न अथवा चन्द्र से सप्तम भाव मे शुभ ग्रह हो तो विषकन्या योग समाप्त हो जाता है।
- "यदि सातवें भाव का स्वामी शुभ ग्रह हो" -  इसके अनुसार 12 मे से 7 लग्न - मेष मिथुन कन्या वृश्चिक धनु मकर मीन - मे विषकन्या योग नहीं बनेगा क्योंकि इन लग्नों मे सातवें भाव का स्वामी शुभ ग्रह होता है, तो बाकि बचे 5 लग्न -  वृष कर्क सिंह तुला कुंभ - मे ही बनेगा। अब आप स्वयं विचार करे कि क्या यह सम्भव है कि इन पांच लग्नो मे पैदा हुई स्त्रियों के प्रजनन अंगो मे कोई समस्या हो और इन्ही पांच लग्न मे पैदा हुई स्त्रियां ही मृत सन्तान को जन्म दे और अन्य लग्न मे पैदा हुई स्त्रियों के न प्रजनन अंगो मे कोई समस्या हो न ही किसी के मृत सन्तान हो - उम्मीद है कि आप समझ गए होगें कि सिद्धांत गलत है। शारिरिक समस्या किसी भी स्त्री पुरुष के साथ हो सकती है उसका ग्रहों से या लग्न से कोई समबन्ध नहीं है क्योंकि रोग कभी भी हो सकता है वह व्यक्ति की कुंडली देखकर नहीं होता है।
"लग्न अथवा चन्द्र से सप्तम भाव मे शुभ ग्रह हो" - जब कोई भी शुभ ग्रह लग्न से सप्तम भाव मे आयेगा तो दो घंटे तक उसी भाव मे रहेगा और सिद्धांत अनुसार योग नहीं बनेगा और उस ग्रह के सप्तम मे आने से पहले व बाद मे योग बन जाएगा जो यह प्रश्न उत्पन्न करता है कि उन दो घंटो मे ऐसा क्या हो जाएगा कि योग भंग हो जाएगा, जब्कि ग्रह स्वयं अपनी स्थिति नहीं जानते कि किस समय कहां पर है ! बिना अपनी स्थिति जाने न योग बना सकते है न ही समाप्त कर सकते है। चन्द्रमा से सप्तम भाव मे तो ग्रह पूरे दिन रहता है फिर किसी भी लग्न मे यह योग नहीं बनेगा(चाहे उस दिन उपरोक्त ४३,४५वें सिद्धान्त अनुसार योग क्यों न हो), जो अपने आप ही सिद्धांत की सत्यता पर प्रश्न चिन्ह लगाता है। किसी स्त्री की कुंडली मे विषकन्या योग और विषकन्या योग भंग योग, दोनो बन रहे हो तो योग भंग होने के सिद्धांत को क्यों और किस आधार पर लिया जाए, क्या केवल इसलिए कि इस सिद्धांत मे योग भंग होने की बात लिखी है, यदि सिद्धांत मे लिखी हुई बात ही आधार है, तो सिद्धांत विषकन्या योग होने की बात भी कह रहा है उसे प्राथमिकता क्यों नहीं दी जाए? सीधे ही योग भंग होने के सिद्धांत के आधार पर निर्णय क्यों लिया जाए, विषकन्या दोष के सिद्धांत के साथ क्यों न रहा जाए? यह भी प्रश्न है जिनके उतर के रूप मे किसी ज्योतिषी के पास सिवाय यह कहने के "योग भंग होने का योग बन रहा है इसलिए योग समाप्त हो गया" और कुछ नहीं होगा। सिद्धान्त 46 के अनुसार - यदि सातवें भाव का स्वामी शुभ ग्रह हो या लग्न अथवा चन्द्र से सप्तम भाव मे शुभ ग्रह हो तो विषकन्या योग समाप्त हो जाता है - ग्रहों की यह स्थिति तो बिना विषकन्या योग के भी बनती है और आए दिन बनती है, तो उस समय कौन सा विषकन्या योग समाप्त हो रहा होता है? इन तर्कों का तर्कसंगत उतर किसी ज्योतिषी के पास नहीं है न ही होगा लेकिन ज्योतिष के सिद्धांत कैस बोगस है यह समझाने के लिए सबके समक्ष रखें है फिर भी कोई "ज्योतिषाचार्य" चर्चा कर बता सकते है कि यह सिद्धांत कैसे सही है।
यह सिद्धांत भी ज्योतिष के अन्य सिद्धांतो की तरह बोगस है और स्पष्ट रुप से ज्योतिष के सिद्धांतो का अवैज्ञानिक होना सिद्ध करता है - जब एक बार यह सिद्धांत बना दिया गया कि इस दिन इस नक्षत्र इस तिथि को जन्म लेने वाली स्त्री विषकन्या होती है, फिर उसी सिद्धांत के विपरीत योग भंग होने का सिद्धांत किस आधार पर बना दिया गया। यदि दोनो सिद्धांत सही है, तो कुंडली पर स्पष्ट रुप से दोनो सिद्धांत लागू होने पर किसी एक सिद्धान्त के आधार पर निर्णय कैसे लिया जा सकता है। चूंकि विषकन्या योग के सिद्धांत को बनाए जाने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है इसलिए किसी शुभ ग्रह के द्वारा समाप्त हो जाने के पीछे भी कोई वैज्ञानिक तथ्य नहीं होने से तीनों ही सिद्धान्त बोगस है। एक ही समय पर एक सिद्धांत योग बना रहा है तो दूसरे उसे समाप्त कर रहा है और यही अन्तर्विरोधी स्थिति सभी सिद्धांतो की है जिससे कि किसी स्पष्ट निर्णय पर नहीं पहुंचा जा सकता है। किसी सिद्धांत से स्थिति स्पष्ट न होने के कारण सही भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है इसलिए ज्योतिषी अपने मन से जातक की जेब अनुसार टुल्लेबाजी कर देते है। यदि ग्राहक पैसे वाला है और कुछ उपाय कर और पैसे दे सकता है तो कुंडली मे विषकन्या दोष है यह कह दिया जाएगा, यदि उपाय के लिए पैसे खर्चने को तैयार न हो तो सातवें भाव के स्वामी शुभ ग्रह से योग समाप्ति की घोषणा कर दी जाएगी और व्यक्ति दोनों स्थिति मे लुटते है पहले योग बनाकर फिर उसके उपाय के नाम पर - यही ठगी का धन्धा है। परंतु ज्योतिषी कभी भी आपको यह नहीं बताएगे कि ज्योतिष बोगस है सिद्धांतहीन है यह बात आपको इस ब्लाग के साथ ही इस ग्रुप मे बताई जा रही है और ज्योतिष के सिद्धान्त किस प्रकार से बोगस है यह बात सिद्धांतों के वैज्ञानिक विधि से विश्लेषण कर सभी तथ्य सामने रखते हुए समझाया जा रहा है जिसके लिए आपको अपनी बुद्धि का प्रयोग कर उन तर्क व तथ्यों को पढ़कर समझना होगा तभी आपको ज्योतिषीयों के ठगी के धन्धे से मुक्ति मिल सकती है अन्यथा ज्योतिषी नित नए बोगस योग दोष बनाते रहेंगे और आप अपने अज्ञान के कारण मूर्ख बनकर अपने अथक परिश्रम से कमाए हुए धन को इन ठगों के पेट मे डालते रहंगे।

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  1. मुझे आज ही किसी ने बताया कि मुजे विष कन्या दोष है और निवारण के 12500 रु खर्च बताया। मेरी वर्तमान स्थिति को पिछले जन्म के कर्मों का दोष बताया।

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