ज्योतिषीयों द्वारा बनाए
गए इस शब्द को सुनते है प्रत्येक उन माता पिता के होश उङ जाते है जिनकी सन्तान की
आयु विवाह योग्य हो गई हो क्योंकि विवाह के समय ही लङके व लङकी की कुंडली मिलान के
समय इस दोष पर विचार किया जाता है। इस दोष के विषय मे अनेक भ्रांतियां फैलाई गई है
इसलिए यह अति आवश्यक हो जाता है कि व्यक्ति अपने अन्धविश्वास के कारण पृथ्वी से 7.8
करोङ किलोमीटर दूर सूर्य की परिक्रमा कर रहे मंगल ग्रह से डरे
क्योंकि इतनी दूरी से वह मांगलिक दोष बनाकर वैवाहिक जीवन नष्ट करने के कार्य के
लिए ही है। आज के युग मे जब इन्सान चांद पर उतर चुका है मंगल पर यान उतार चुका है
और भविष्य मे मंगल ग्रह पर स्वयं उतरेगा ऐसे युग मे ग्रहों का डर इस कदर हावी है
कि व्यक्ति ग्रहों को ठीक करने के लिए एक ऐसे ज्योतिषी के द्वार पर बैठे रहते है
जिसे उनकी वास्तविक स्थिति का भी पता नहीं है। ग्रहों को ठीक करवाने वाले
व्यक्तियों मे शिक्षित व्यक्तियों की संख्या कहीं अधिक है तो ज्योतिषी भी ठगी का
धन्धा क्यों न करे जब व्यक्ति स्वयं लुटने के लिए आते हैं।
मांगलिक दोष जैसा की आज कल प्रचलित है, का ज्योतिष के किसी भी प्राचीन शास्त्र मे उल्लेख नहीँ है यह मात्र ठगी का
ही एक रुप है ऐसे मे यह प्रश्न उठता है कि मांगलिक दोष आया कहां से ! यह आया/बनाया
गया वृहदपाराशर होराशास्त्र से जिसके 80वें अध्याय के 47,48वें श्लोक के अनुसार -
लग्ने व्यये सुखे वापि सप्तमे च अष्टमे कुजे।
शुभदृग्योगहीने च पतिं हन्ति न संशय:।।४७
यस्मिन् योगे समुत्पन्ना पतिं हन्ति कुमारिका।
तस्मिन योगे समुत्पन्नो पत्नीं हन्ति नरो§पि च।।
अर्थ – पहले व्यय चतुर्थ
सप्तम अष्टम भाव में मंगल शुभ ग्रह के साथ न हो शुभ ग्रह की दृष्टि से रहित हो तो
ऐसी स्त्री विधवा होती है इसमे कोई संशय नहीं है इसी योग में उत्पन्न पुरुष विदुर
होता है।
- उपरोक्त श्लोक मे केवल वैधव्य योग की बात
कही गई है वह भी तब जब मंगल किसी शुभ ग्रह के साथ न स्थित हो और न ही किसी शुभ
ग्रह की उस पर दृष्टि हो। ज्योतिषीयों के द्वारा बनाए गए मनगढ़ंत मांगलिक दोष -
यदि मंगल कुंडली मे 1,4,7,8,12 भाव मे स्थित हो तो मांगलिक
दोष होता है - का उल्लेख इस श्लोक मे नहीं किया गया है। ज्योतिष के अन्य सिद्धांतो
की तरह यह भी एक सिद्धांत है लेकिन ज्योतिषीयों द्वारा अपने ठगी के धन्धे के
विस्तार के लिए ऐसे अनेक ग्रह योग द्वारा समाज मे डर फैला दिया है उसी क्रम मे इस
योग के बारे मे इसे मंगल/मांगलिक दोष बनाकर अनेक प्रकार की भ्रांतियां फैला रखी है
जैसे कि - कुंडली मे मांगलिक दोष हो तो विवाह नहीं होता, अधिक
आयु मे होता है, पति पत्नी के बीच सम्बन्ध मधुर नहीं रहते है,
तलाक हो जाता है, या मृत्यु हो जाती है आदि -
जब्कि उपरोक्त सिद्धांत मे वैधव्य योग के सिवाय अन्य कोई बात नहीं लिखी है जिससे
स्पष्ट है कि ठगी के धन्धे मे चार चांद लगाने के लिए ही इस श्लोक का मनमाफिक अर्थ
कर मांगलिक दोष का नाम देकर अनावश्यक रूप से समाज को भयभीय किया जा रहा है।
वृहदपाराशर होराशास्त्र के एक अन्य सिद्धान्त अनुसार -
सूर्येस्तभे पतित्यक्ता बाल्यस्ते च विधवा कुजे।
शनावशुभसन्दृष्टे याति कन्यैव वृद्धताम्।।१८
अर्थ - यदि सप्तम भाव मे सूर्य हो तो स्त्री का पति उसे त्याग
देता है, यदि मंगल हो तो स्त्री बाल्यवस्था मे ही
विधवा हो जाती है, यदि शनि हो तो स्त्री आजीवन अविवाहित रहती
है।
- इस श्लोक मे तीन सिद्धांत है लेकिन चर्चा
मांगलिक दोष पर है तो उसी से सम्बन्धित सिद्धांत लेते है – यदि
सातवें भाव मे मंगल हो तो स्त्री बाल्यवस्था मे विधवा हो जाती है – लेकिन बाल विवाह कानून के पश्चात लड़की का विवाह ही 18 वर्ष से कम आयु मे नहीं हो सकता है तो विधवा कैसे हो जाएगी? यही एक तर्क इस सिद्धांत के बोगस होने के लिए पर्याप्त है(ज्योतिष के
परिपेक्ष्य मे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विश्लेषण आगे किया जा रहा है) और यह
सिद्धांत उपरोक्त 47वें सिद्धांत को गलत सिद्ध करता है
क्योंकि एक सिद्धांत मंगल के, बिना किसी शुभ ग्रह की दृष्टि
व साथ के सातवें भाव मे स्थित होने पर ही वैधव्य योग की बात करता है तो दूसरा केवल
मंगल के सातवें भाव मे स्थित होने पर ही बाल्यवस्था मे वैधव्य योग बना रहा है,
दोनो सिद्धांत अन्तर्विरोधी है जो सिद्धांतो के बोगस होने को
प्रमाणित करते है।
कुंडली मे मांगलिक दोष का विचार लग्न, चन्द्र, और शुक्र से किया जाता है अर्थात लग्न से और
चन्द्र शुक्र स्थित राशि से ही मुख्यत: मंगल की स्थिति देखकर ही मांगलिक दोष
सुनिश्चित किया जाता है। मांगलिक दोष नामक मनगढ़ंत सिद्धांत की परिभाषा के अनुसार
यदि कुंडली मे मंगल 1,4,7,8,12 भाव मे से किसी भी भाव मेँ
स्थित हो तो ऐसे जातक की कुंडली मंगली होती है, और उक्त
व्यक्ति की कुंडली मे मांगलिक दोष है ऐसा कहा जाता है। एक लग्न 2 घंटे का होता है और दिन के 24 घंटे मेँ 12 लग्न होते है अर्थात दिन मेँ 2-2घंटे के लिए 5
बार ऐसी स्थिति बनेगी जब मंगल कुंडली के 1,4,7,8,12 इन भाव मे स्थित होता है यानि 1 दिन मेँ 10 घंटे मांगलिक दोष वाले व्यक्ति पैदा होते है। मंगल एक राशि मे 45 दिन तक रहता है उदाहरण के लिए यदि मंगल किसी समय मेष राशि मे स्थित हो तो
मेष मकर तुला कन्या और वृष लग्न मे उत्पन्न हुए सभी व्यक्ति की कुंडली मे मांगलिक
दोष होगा क्योंकि इन लग्नों के लिए मंगल क्रमश: 1,4,7,8,12 भाव
मे स्थित होगा। अब आप स्वयं विचार कर सकते है कि क्या यह सम्भव है कि 45 दिन तक इन लग्नो मे उत्पन्न हुए सभी स्त्री पुरुष विधवा व विदुर हो जाएगें
किसी एक का वैवाहिक जीवन सुखमय न हो? और बिना मांगलिक दोष मे
उत्पन्न हुए सभी स्त्री पुरुषों का वैवाहिक जीवन सुखी रहेगा ! मंगल की कुंडली मे
स्थिति अनुसार मांगलिक दोष बनता है और कुल जनसंख्या के 40% स्त्री
पुरुष की कुंडली मे मांगलिक दोष होता है जिसका अर्थ है कि 40% आबादी विधवा और विदुर है? दक्षिण भारत मे तो दूसरे व
छठे भाव मे स्थित मंगल को मांगलिक दोष मे गिना जाता है यदि इस हिसाब मे गणना की
जाए तो आधे से अधिक आबादी विधवा/विदुर हो जानी चाहिए।
वृहदपाराशर होराशास्त्र के 80वें अध्याय के 49वें श्लोक के अनुसार -
स्त्रीहन्त्रा परिणीता चेत पतिहन्त्री कुमारिका।
तदा वैधव्ययोगस्य भंङगो भवति निश्चयात।।
अर्थ – यदि वैधव्य योग वाले
स्त्री पुरुष का विवाह समान योग वाले स्त्री पुरुष के साथ किया जाए तो वैधव्य योग
निश्चित रूप से समाप्त हो जाता है।
- यह सिद्धांत उपरोक्त सिद्धांत के वैधव्य
योग का उपाय न होकर सिद्धांतो का अन्तर्विरोधी व अवैज्ञानिक होना सिद्ध करता है।
वैधव्य योग का सिद्धांत जब स्पष्ट रुप से विधवा/विदुर होने की बात कह रहा है तो विवाह
किसी से भी क्यों न किया जाए, सिद्धान्त सही है तो फल का
होना निश्चित है अतः वह होकर ही रहेगा। सिद्धांत अनुसार कुंडली मे वैधव्य योग होने
पर पति/पत्नी की मृत्यु निश्चित है तो पति और पत्नी दोनो की कुंडली मे वैधव्य योग
होने के कारण दोनो की ही मृत्यु होनी चाहिए - यह कैसे सम्भव है कि वैधव्य योग वाले
स्त्री/पुरुष का विवाह बिना वैधव्य योग वाले पुरुष/स्त्री से करने पर सिद्धांत
फलित होगा और वैधव्य योग वाले स्त्री/पुरुष से करने पर फलित नहीं होगा? यदि सिद्धान्त सही है तो दोनो की कुंडली मे योग होने पर योग फलित न होकर
समाप्त हो जाए असम्भव है यदि ऐसा होता है तो सिद्धांत बोगस है - इस पर
विस्तारपूर्वक अगले लेख मे चर्चा की जाएगी - लेकिन सभी जिज्ञासु मित्र इस विश्लेषण
के द्वारा ही समझ सकते है कि मांगलिक दोष बोगस है मात्र ज्योतिषीयों द्वारा अपने ठगी के धन्धे के लिए ही
बनाया गया है इसका कोई भी वैज्ञानिक आधार नहीं है। यदि कोई त्रिकालदर्शी, डिग्रीधारी, महाज्ञानी ज्योतिषी इन सिद्धांतो को सही सिद्ध करना चाहे तो आकर चर्चा कर
सकते है।
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