अधिकतर व्यक्ति ज्योतिष/फलित ज्योतिष और खगोलशास्त्र के मध्य अन्तर नहीं जानते है जिसका कारण है खगोलशास्त्र का सामान्य ज्ञान भी न होना इसलिए खगोलशास्त्र को ही फलित ज्योतिष समझकर उसे विज्ञान मानते रहते है।
ज्योतिष का प्राचीन कालीन अर्थ :- प्राचीन काल में ग्रह, नक्षत्र और अन्य खगोलीय पिण्डों का अध्ययन करने के विषय को ही ज्योतिष कहा गया था। ज्योतिष शब्द का एकल अर्थ ग्रह तथा नक्षत्रों की गणना - गति स्थिति आदि - से संबंध रखने वाली विद्या था।
आधुनिक अर्थ :- प्राचीन समय मे ज्योतिष मे केवल गणित वाला भाग ही होता था परन्तु बाद मे इसमे फलित वाला भाग भी जोङ दिया गया। अब ज्योतिष का यौगिक अर्थ है - ग्रह, राशि, तथा नक्षत्रोँ से सम्बन्ध रखने वाली विद्या जो व्यक्ति के जन्म के समय की ग्रहों की आकाशीय स्थिति पर आधारित सिद्धान्तों के प्रयोग से उसके भूत, वर्तमान तथा भविष्य का विवेचन करती है।
ज्योतिष के मुख्यतः दो भाग है 1.गणित- Calculation part. 2.फलित - Predictive part.
1.गणित :- यह ज्योतिष का वह भाग है जिसके द्वारा ग्रहोँ की आकाशीय स्थिति ज्ञात करने के लिए प्रयुक्त होता है। गणितीय प्रक्रिया से कुंडली बनाई जाती है और कुंडली व्यक्ति के जन्म के समय मे ग्रहोँ की आकाशीय स्थिति का मानचित्र ही होती है।
2.फलित :- व्यक्तियोँ के जन्म कुंडली के आधार पर उनके भूत, वर्तमान एवं भविष्य का वर्णन करने की प्रक्रिया को फलित कहते है अर्थात फलित ज्योतिष - Predictive astrology. ज्योतिष के इसी भाग को बोगस कहा जा रहा है। आज ज्योतिष के दोनो भाग - गणित और फलित, को एक ही शब्द मे पिरो दिया गया है जिसे हम ज्योतिष - Astrology के रुप मे ही जानते है।
खगोल शास्त्रः- प्राचीन समय मे खगोलशास्त्र शब्द नहीँ था इसलिए आज के खगोलशास्त्र को ज्योतिष के नाम से ही जाना जाता था। 18वीँ शताब्दी तक खगोलशास्त्र ने पूर्ण रुप से स्वयं को ज्योतिष से अलग कर लिया और अब वह वैज्ञानिक पद्धति से विकसित विषय है। खगोल शास्त्र वह विज्ञान है जिसके अन्तर्गत पृथ्वी व उसके बाहर अन्तरिक्ष मे घटित होने वाली घटनाओं का अध्ययन, अवलोकन, विश्लेषण किया जाता है जिसके अन्तर्गत  - ग्रहों की गति, स्थिति, स्थान, ग्रहण, तारों के बारे में, सूर्य/चंद्रमा का उदय/अस्त, व अन्य खगोलीय घटनाएं सम्मिलित हैं। क्योंकि व्यक्ति को सूर्य चन्द्र के उदय अस्त, ग्रहण, ग्रहों की स्थिति आदि की जानकारी पन्चांग से ही प्राप्त होती है इसलिए उन्हे लगता है कि यह गणनाएं केवल ज्योतिष द्वारा ही सम्भव है और ज्योतिषी ही कर सकते है अतः  जिज्ञासा न होने के कारण खगोल शास्त्र की उपलब्धियों के बारे मे जानते ही नहीं है।
खगोल शास्त्र फलित ज्योतिष से भिन्न है एक ओर जहां खगोलशास्त्र एक विज्ञान है वहीं दूसरी ओर फलित ज्योतिष कोई शास्त्र नहीं है इसे शास्त्र कहना भी उचित नहीं है क्योंकि यह किसी वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित नहीं है ज्योतिष मे ऐसा एक भी सिद्धांत नहीं है जो किसी वैज्ञानिक प्रक्रिया का पालन करते हुए बनाया गया हो इसलिए यह शास्त्र तो कतई नहीं है इसे शास्त्र बना दिया गया है केवल ठगी के धन्धे हेतु। ज्योतिष खगोल शास्त्र से बिल्कुल अलग है ज्योतिष व्यक्ति के जन्म के समय मे आकाश मे ग्रहों की स्थिति के आधार पर भविष्य का वर्णन करता है जिसमे वह किसी प्रकार के वैज्ञानिक सिद्धांतो का प्रयोग नहीं करता है अतः ज्योतिष एक प्रकार का छद्म-विज्ञान है जो खगोल विज्ञान की उपलब्धियों को चुराकर उस पर ज्योतिष का ठप्पा लगाकर समाज को मूर्ख बनाए रखता है। शिक्षा ज्ञान और विज्ञान के प्रसार के पश्चात आज व्यक्ति को खगोल का सामान्य ज्ञान भी नहीं है। आज भी ज्योतिष के ग्रह - सूर्य चन्द्र मंगल बुध गुरु शुक्र शनि व राहु केतु - को ही ग्रह समझते है उन्हे इसका ज्ञान ही नहीं है कि सूर्य तारा है चन्द्रमा उपग्रह और राहु केतु मात्र कटान बिन्दु। आज भी आपको ऐसे व्यक्ति मिल जाएगें जिनके लिए पृथ्वी स्थिर है और सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करता है ऐसे व्यक्ति ज्योतिषी के पास लुटने के लिए नहीं जाएगें तो क्या करेगें। एक सर्वे के अनुसार दुनिया के सबसे अधिक विकसित और आधुनिक देश अमेरिका मे 4 मे से एक व्यक्ति आज भी पृथ्वी को स्थिर मानता है तो भारत जैसे देश जहा पढ़े लिखे अन्धविश्वासी व्यक्तियों की कोई कमी नहीं है वहां क्या उम्मीद की जा सकती है।
पृथ्वी के बाहरी आकाशीय क्षेत्र व ब्रह्माण्ड  मे अनेक खगोलीय गतिविधियों का अध्ययन खगोलशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है। ज्योतिष मे केवल कुँडली बनाने के लिए ही खगोलशास्त्र और गणित की आवश्यकता होती है। कुँडली व्यक्ति के जन्म के समय की आकाशीय स्थिति का मानचित्र भर है अर्थात कौन सा ग्रह आकाश मे किस समय पर कहाँ स्थित था/है, खगोल विज्ञान और गणितीय प्रक्रिया द्वारा ही यह ज्ञात किया जाता है ज्योतिष मे इस से ज्यादा खगोलशास्त्र के विज्ञान और गणित की आवश्यकता नहीँ होती है। इसके बाद आता है फलित यानि prediction. फलित को भी विज्ञान का नाम दे दिया है जब्कि हकीकत यह है कि फलित ज्योतिष मे किसी भी प्रकार विज्ञान प्रयुक्त नहीँ होता है। फलित ज्योतिष मे फल प्रतिपादन के नियम/सूत्र/सिद्धान्त हैँ, जो कि किसी भी प्रकार से विज्ञान पर आधारित नहीँ है न ही वह प्रमाणिक हैँ। एक आम व्यक्ति को यह बातेँ पता नहीँ होती हैँ, अतः इसी का लाभ यह ज्योतिषी उठाते है और ज्योतिष विज्ञान है, ज्योतिष विज्ञान फलित विज्ञान, ग्रह विज्ञान, आदि शब्दोँ के इस्तेमाल प्रत्येक व्यक्ति को विचार करने पर मजबूर कर देतेँ है कि ज्योतिष विज्ञान ही है/होगा। व्यक्ति इस तरह के विज्ञान और इन ठग विज्ञानियो से तभी बच सकते हैँ, जब उन्हें ज्योतिष विषय के बोगस होने जानकारी हो, जब तक व्यक्ति इन ठगविद्याचार्योँ से भविष्य को छोड़ कर ज्योतिष की सत्यता और प्रमाणिकता के बारे मे प्रश्न नहीँ करेंगे तब तक इनकी ठगी का धन्धा इसी तरह से चलता रहेगा। ज्योतिषियोँ की चालाकी किसी की पकङ मेँ न आए, इसलिए यह ज्योतिष को खगोलशास्त्र से जोड़कर इस ठग विद्या को विज्ञान कह कर प्रचारित करते है और ऋषियों की बनाई हुई प्राचीन विद्या कह कर सही करार दे दी जाती है क्योँकि ऋषियों पर तो कोई व्यक्ति उँगली उठाने से रहा जब्कि फलित ज्योतिष का ऋषियों से कोई सम्बन्ध नहीं है उन्होने फलित ज्योतिष को बनाया ही नहीं था और कोई भी विषय -वस्तु प्राचीन होने से सही भी हो यह आवश्यक नहीँ होता है। प्राचीन समय मे तो पृथ्वी भी स्थिर और चपटी मानी जाती रही थी, जब तक कि कापरनिक्स गैलिलियो आदि वैज्ञानिकों ने यह गलत नहीँ सिद्ध कर दिया। आज भी इसी तरह की वैज्ञानिक सोच की आवश्यकता है न कि दाकियानुसी सोच की अत: अपने भविष्य को अपनी शिक्षा, परिश्रम, आत्मविश्वास, लक्ष्य के प्रति दृढ़ संकल्प के आधार पर सुनिश्चित करेँ न कि ग्रहों की आकाशीय स्थिति पर आधारित बोगस सिद्धांतो के किसी बोगस ग्रह योग के आधार पर।

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