ज्योतिष शास्त्र मे दिया
गया ग्रहो का विवरण। क्या आज की जानकारी से कहीं से भी सही प्रतीत होता है।
सूर्य:-
मधुपिङ्गलदृक्सूर्यश्चतुरस्रः
शुचिर्द्विज।
पित्तप्रकृतिको धीमान्
पुमानल्पकचो द्विज॥ २३॥
अर्थः- सूर्य शहद के सदृश
भूरे नेत्रों वाला, चौकोर शरीर, स्वच्छ कांति वाला, पित प्रकृति, दर्शनीय पुरुष ग्रह, थोङे बालो से युक्त स्वरुप
वाला है।।२३।।
चन्द्रमा:-
बहुवातकफः
प्राज्ञश्चन्द्रो वृत्ततनुर्द्विज।
शुभदृङ्मधुवाक्यश्च
चञ्चलो मदनातुरः॥ २४॥
अर्थः- चन्द्रमा वायु और
कफ से युक्त प्रकृति, बुद्धिमान, गोल शरीर, सुन्दर नेत्र, मीठे वचन बोलने वाला, चंचल और कामी है।।२४।।
मंगल:-
क्रूरो रक्तेक्षणो
भौमश्चपलोदारमूर्तिकः।
पित्तप्रकृतिकः क्रोधी
कृशमध्यतनुर्द्विज॥ २५॥
अर्थः- भौम(मंगल) क्रूर
स्वभाव, रक्तवर्ण की दृष्टि, चपल, उदार, पित
प्रकृति, क्रोधी, पतले मध्यम
कद के शरीर वाला है।।२५।।
बुध:-
वपुःश्रेष्ठः
श्लिष्टवाक्च ह्यतिहास्यरुचिर्बुधः।
पित्तवान् कफवान् विप्र
मारुतप्रकृतिस्तथा॥ २६॥
अर्थः- बुध सुन्दर शरीर, तोतली बोली वाला, अत्यन्त हास्यप्रिय, पित कफ वायु से युक्त प्रकृति वाला है।।२६।।
गुरु:-
बृहद्गात्रो गुरुश्चैव
पिङ्गलो मूर्द्धजेक्षणे।
कफप्रकृतिको धीमान्
सर्वशास्त्रविशारदः॥ २७॥
अर्थः- गुरु लम्बा बड़ा
शरीर, सुनहरे पीले केश और दृष्टि वाला, कफ प्रकृति, बुद्धिमान, सभी शास्त्रो को जानने वाला है।।२७।।
शुक्र:-
सुखि कान्तवपु श्रेष्ठः
सुलोचनो भृगोः सुतः।
काव्यकर्ता
कफाधिक्योऽनिलात्मा वक्रमूर्धजः॥ २८॥
अर्थः- शुक्र सुन्दर शरीर, सुखी, सुन्दर नेत्रो वाला, कविता करने वाला, कफ वायु मिश्रित प्रकृति, घुंघराले बालो वाला है।।२८।।
शनि:-
कृश्दीर्घतनुः शौरिः
पिङ्गदृष्ट्यनिलात्मकः।
स्थूलदन्तोऽलसः पंगुः
खररोमकचो द्विज॥ २९॥
अर्थः- शनि दुर्बल, लम्बा शरीर, पीले-भूरे नेत्र, वायु प्रकृति, मोटे दांत, आलसी, पंगु, रुखे
रोम और बालो वाला है।।२९।।
राहु-केतु:-
धूम्राकारो
नीलतनुर्वनस्थोऽपि भयंकरः।
वातप्रकृतिको धीमान्
स्वर्भानुस्तत्समः शिखी॥ ३०॥
अर्थः- स्वर्भानु धुएं के
सदृश वर्ण, नीले रंग का शरीर, जंगल मे रहनेवाला, भयंकर, वायु प्रकृति और बुद्धिमान केतु भी इसी के समान है।।३०।।
(बृहदपाराशर
होराशास्त्र अथ ग्रहगुणस्वरूपाध्यायः॥३॥)
ज्योतिष के शास्त्र वृहदपाराशर
होराशास्त्र मे ग्रहों का इस प्रकार का विवरण इस तथ्य का स्पस्ट प्रमाण है का जिस
समय फलित ज्योतिष के सिद्धांतो की रचना की जा रही थी उस समय इन ग्रहो को जीवित
देवता माना जाता था। इसलिए मानवीय समाज की रचना की तरह ही इन ग्रहों का
जीवन(भविष्य) पर पङने वाले प्रभाव के अध्ययन हेतु ही उन्हे मनुष्य की तरह ही वर्ण, मित्र, उच्च, दृष्टि
आदि जैसे गुण दे कर भविष्य जानने का प्रयास भर किया गया था। उस समय के ज्ञान के
अनुसार वह सही ही कहे जायेगें लेकिन आज २१वॆ सदी में ग्रहों के ऐसे विवरण और
विभाजन को कैसे तर्कपूर्ण एवं वैज्ञानिक आधार पर सही माना जा सकता है। आज यह
सर्वमान्य व निर्विवाद रुप से स्वीकृत हो चुका है कि ग्रह जीवित देवता नहीं है न
ही मनुष्य के भविष्य पर उनका कोई प्रभाव पङता है इसलिए पुरातन काल के अज्ञान जो आज
का अन्धविश्वास है, के साथ बने रहने मे कोई समझदारी नहीं
है जब्कि हम यह भलि भांति जानते है ग्रह जीवित न होकर गैस से निर्मित गोले मात्र
है।
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