हमारे समाज मे आज भी
ज्योतिष अनुसार ही नाम का पहला अक्षर रखने की परम्परा है, इसे परम्परा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है
यह एक ढकोसला मात्र है और कुछ नहीं। व्यक्ति न तो ज्योतिष अनुसार नाम का अक्षर
रखने से महान बनते है न ही अंक ज्योतिष अनुसार नाम के अक्षरो मे हेर फेर करने से।
व्यक्ति महान बनता है अपने कर्म से न कि मुकद्दर से इसलिए नाम चाहे चंगेज खां रखो
या घसीटा राम जब तक कर्म अच्छे नहीं होगें तब तक कुछ नहीं होने वाला है एक अच्छा
कर्म भी नाम का नाम कर सकता है और एक बुरा कर्म नाम को बदनाम। नाम के अक्षर बदलने
या नाम ही बदलने से भाग्य परिवर्तन की बाद कहकर ज्योतिषी मूर्ख बनाते है जैसे कि
किसी प्रसिद्ध व्यक्ति के नाम के अक्षर बदलने से या वर्तमान नाम से ही उनकी
प्रसिद्धि की बात कहकर गुमराह किया जाता है परन्तु यदि नाम ही सब कुछ होता तो सबका
नाम राम व कृष्ण ही होता। आज आपको अनेक व्यक्ति मिल जाएगें जिनके नाम यही है लेकिन
कर्म कंस और रावण से भी अधिक बुरे। महात्मा गांधी, नेल्सन
मंडेला, मौलाना आजाद, स्वामी
विवेकानन्द, दयानंद सरस्वती, राममोहन राय आदि व्यक्ति अपने कर्म के कारण ही अपना नाम अमर कर गए, तो नाम को महत्व देने की बजाय अपने कर्म को महत्व देना प्रारम्भ कर दीजीए
नाम अपने आप ही सही हो जाएगा।
चन्द्रमा जिस राशि
नक्षत्र के जितने अंश पर स्थित होता है उसी नक्षत्र के चरणाक्षर अनुसार नाम का
पहला अक्षर बताया जाता है। २७ नक्षत्रों मे से १५ नक्षत्र तो उसके शत्रु ग्रहों के
ही है। यदि आप ज्योतिष अनुसार नामाक्षर चुनने का सम्बन्ध किसी प्रकार से शुभता से
जोङते है तो उपरोक्त तथ्य को पढ़ कर आप समझ सकते है कि ज्योतिष के अनुसार
नाम रखने से शुभ अशुभ का कोई सम्बन्ध नहीं है। ऐसे मे प्रश्न उठता है कि ज्योतिष
अनुसार नाम का पहला अक्षर रखने मे कौन सी वैज्ञानिकता है जो लाखों नहीं वरन करोङो
व्यक्तियों पर समान रुप से प्रभावी है, क्योंकि
एक ही राशि नक्षत्र के अन्तर्गत करोङों व्यक्ति आते है जिनके नाम का पहला अक्षर
समान ही होता है - इस प्रश्न पर स्वयं विचार करें क्योंकि पूरा फलित ज्योतिष ही
बोगस है यह आप जान ही चुके है तो अब समय है कि अपने दिमाग पर जोर डालना प्रारम्भ
कर दीजीए तभी ठगी से बच पाएगें।
यदि आप किसी ज्योतिषी से
प्रश्न करें कि वर्णमाला के अक्षरों को नक्षत्रों के मध्य किस प्रकार से विभाजित
किया गया था और कौन सी वैज्ञानिक प्रक्रिया का पालन करते हुए किया था तो उनके पास
इस प्रश्न का कोई उतर नहीं होगा। इसका पहला कारण यह है कि ज्योतिष के सिद्धांतो के
बनाए जाने की प्रक्रिया का वर्णन ज्योतिष के किसी शास्त्र मे नहीं है और दूसरा
कारण है ज्योतिषीयों द्वारा स्वयं कोई खोज न करना और उन्हीं सिद्धांतो को जस का तस
सही मान लिया जो ज्योतिष की किताबों मे लिखे हुए है। इसका अर्थ यह नहीं है कि जो
कुछ किताब मे लिखा होता है वह गलत होता है लेकिन ज्योतिष जिसे विज्ञान कहा जाता है
क्या वह वास्तव मे विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरता है, सही है या नहीं इसका प्रमाण सिद्धांतो के वैज्ञानिक विधि द्वारा विश्लेषण
से ही सम्भव है। लेकिन ज्योतिष की अपार व्यापारिक सम्भावना को देखते हुए ज्योतिषी
क्यों सिद्धांतो की सत्यता की जांच परख करते और व्यापारिक उपयोग के कारण ऐसा करना
आवश्यक भी नहीं था - केवल अपने ठगी के धन्धे के लिए, वह
सदियों से सही चल रहा है व और अधिक फल फूल रहा है तो खोज करने का प्रश्न ही कहां
उठता है।
अंक ज्योतिष अनुसार नाम -
ज्योतिष अनुसार राशि नक्षत्र पर ने नामाक्षर ज्ञात करने के पश्चात उस अक्षर पर नाम
रख दिया जाता है। युवावस्था मे आते ही उसी नाम के अक्षरों मे कुछ जोङ घटा कर उसे
अपनी जन्म तिथि के अंको से साथ तालमेल बिठाया जाता है जिससे कि हर क्षेत्र मे
सफलता प्राप्त हो। अनेक व्यक्ति तो अपने नाम को हास्यास्पद स्थिति तक बदल लेते है
जो ऐसा नहीं कर सकते है और कुछ अन्य नाम रख लेते है जिनके अक्षरों के अंको का जोङ
उनकी जन्म तिथि से मेल रखता हो परन्तु सफलता तो कर्म से प्राप्त होती है न कि नाम
के अक्षर या पूरा नाम ही बदलने से इसलिए अनेक अंक ज्योतिषीयों से नाम की सर्जरी
करवाने के बाद भी किस्मत नहीं बदलती है और जो नाम की बजाय अपने जर्म को महत्व देते
है वह अपने नाम को अमर कर जाते है बिना उसमे कोई हेर फेर किए। इसी प्रकार से
व्यापारिक नाम है यदि किसी व्यक्ति का व्यापार नहीं चल रहा है तो उसके व्यापारिक
संस्थान के नाम के अक्षरों मे कुछ जोङ घटा कर सही कर देने की सलाह अनेक अंक
ज्योतिषी देते नजर आते है। यदि व्यापारिक नाम के अक्षरों मे कुछ जोङ घटा देने
मात्र से ही व्यापार चलत तो सहारा नोकिया सत्यम कम्प्यूटर जैसे दिग्गज आज धूल मे
क्यों मिलते। गूगल को आज कौन नहीं जानता है विश्व की चोटी की कम्पनियों मे आज
जिसका नाम शुमार है यदि गूगल इस नाम को अंक ज्योतिष के हिसाब से देखें तो इसका अंक 28 आता है जो अंक ज्योतिष अनुसार अत्यन्त अशुभ और असफलता का प्रतीक है लेकिन
परिणाम सबके सामने है, बच्चे अपने दादा दादी के नाम भले
ही न जानते हो लेकिन गूगल को भूल कर भी नहीं भुलाते है। यदि इस विषय मे किसी
ज्योतिषी से प्रश्न करेगें तो वह कह देगा कि 28 का
जोङ 10 आता है जो अंक 1 हुआ और अंक 1 सूर्य का है व सफलता का
प्रतीक है इसलिए गूगल सफल है अर्थात ज्योतिषी किसी भी प्रकार से व्यक्ति को मूर्ख
बनाकर चलता कर सकते है क्योंकि वह इस खेल के माहिर खिलाङी होते है।
किसी भी वेद पुराण व अन्य धर्म ग्रन्थो मे ज्योतिष/राशि नक्षत्र अनुसार नाम रखने का उल्लेख नहीं है न ही ऐसा करने को कहा गया है नामकरण संस्कार की जो विधि है उसमे भी इस बात का उल्लेख नहीं है कि पहले ज्योतिषी से पूछकर राशि नक्षत्र अनुसार नाम का अक्षर निकलवाओ और फिर उसी अक्षर से नाम रखो। यह सब ज्योतिषीयों द्वारा अपने ठगी के धन्धे के विस्तार हेतु फैलाया गया भ्रम है नाम चाहे जितना ही अच्छा क्यों न रखा जाए जब तक कर्म नहीं होगें तब तक सब व्यर्थ है। इसलिए नाम के नहीं वरन कर्म के महत्व को पहचाहिए नहीं तो नाम बदलकर किस्मत बदलने के चक्कर मे लाखों रुपये बर्बाद हो जाएगें और हाथ लगेगा बाबा जी का ठुल्लु। यदि आप उपरोक्त तर्क/तथ्यों से सहमत नहीं है और नामकरण अब भी ज्योतिष अनुसार ही करना चाहते है तो भी जो नामाक्षर ज्योतिषी निकाल रहें है वह भी सही नहीं है उसकी गणना ही गलत की जा रही है क्योंकि पन्चांग ही गलत है। अब न तो अश्विनी पहला नक्षत्र है न ही वह मेष राशि के अन्तर्गत आता है और ऐसा क्यों है यह विस्तारपूर्वक जानने के लिए सनत जैन जी की किताब - (Astrology a science or myth/ज्योतिष कितना सही कितना गलत) पढ़ सकते है। किताब नहीं पढ़ना चाहते है तो astrology a science or myth @ www.facebook.com/groups/sanatjain/ इस ग्रुप में ज्योतिषीयो के साथ की जा रही चर्चा पढ़ लीजीए या इस ब्लॉग के लेख ही पढ़ लीजीए सभी तथ्य लिखे हुए है वह भी नहीं पढ़ सकते है तो यूं ही मूर्ख बनते रहें जैसे आज तक बनते आ रहे है - बोगस ज्योतिष के नाम पर।
किसी भी वेद पुराण व अन्य धर्म ग्रन्थो मे ज्योतिष/राशि नक्षत्र अनुसार नाम रखने का उल्लेख नहीं है न ही ऐसा करने को कहा गया है नामकरण संस्कार की जो विधि है उसमे भी इस बात का उल्लेख नहीं है कि पहले ज्योतिषी से पूछकर राशि नक्षत्र अनुसार नाम का अक्षर निकलवाओ और फिर उसी अक्षर से नाम रखो। यह सब ज्योतिषीयों द्वारा अपने ठगी के धन्धे के विस्तार हेतु फैलाया गया भ्रम है नाम चाहे जितना ही अच्छा क्यों न रखा जाए जब तक कर्म नहीं होगें तब तक सब व्यर्थ है। इसलिए नाम के नहीं वरन कर्म के महत्व को पहचाहिए नहीं तो नाम बदलकर किस्मत बदलने के चक्कर मे लाखों रुपये बर्बाद हो जाएगें और हाथ लगेगा बाबा जी का ठुल्लु। यदि आप उपरोक्त तर्क/तथ्यों से सहमत नहीं है और नामकरण अब भी ज्योतिष अनुसार ही करना चाहते है तो भी जो नामाक्षर ज्योतिषी निकाल रहें है वह भी सही नहीं है उसकी गणना ही गलत की जा रही है क्योंकि पन्चांग ही गलत है। अब न तो अश्विनी पहला नक्षत्र है न ही वह मेष राशि के अन्तर्गत आता है और ऐसा क्यों है यह विस्तारपूर्वक जानने के लिए सनत जैन जी की किताब - (Astrology a science or myth/ज्योतिष कितना सही कितना गलत) पढ़ सकते है। किताब नहीं पढ़ना चाहते है तो astrology a science or myth @ www.facebook.com/groups/sanatjain/ इस ग्रुप में ज्योतिषीयो के साथ की जा रही चर्चा पढ़ लीजीए या इस ब्लॉग के लेख ही पढ़ लीजीए सभी तथ्य लिखे हुए है वह भी नहीं पढ़ सकते है तो यूं ही मूर्ख बनते रहें जैसे आज तक बनते आ रहे है - बोगस ज्योतिष के नाम पर।
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