प्रकृति के अनेक विषय आज भी रहस्य ही बने हुए है और आदिकाल में उनकी संख्या आज से कही अधिक थी आदिकाल से लेकर मनुष्य अनेक क्रियाओं और घटनाओं के होने के पीछे के कारणों को नहीं जान पाता था। वह अज्ञानतावश यही समझता था कि इनके पीछे किसी प्रकार की अदृश्य शक्ति है। रोग महामारी भूकम्प ग्रहण आसमानी बिजली तूफान सूर्य का प्रकाश रात को तारो का टिमटिमाना सुबह होते ही गायब हो जाना आदि अनेक क्रियाए थी जिनके होने के पीछे दैवीय/राक्षसी शक्ति का हाथ माना जाता था मध्यकाल तो छोडिए आधुनिक काल में भी शरीर की किसी विकृति दिखाई न देना टीवी बांझपन कोढ़ आदि अनके बीमारियाँ, भूकम्प अत्यधिक वर्षा, सूखा बाढ़, आदि अनेक घटनाओं को पूर्व जन्म का श्राप, देवता का कोप या भूत प्रेत के कारण ही मानी जाती थी। अनेक क्रियाओं के होने के पीछे का कारण ज्ञात न होने के कारण अनेक प्रकार की मान्यताओ और धारणाओं की उत्पति होती रही और अज्ञानतावश सर्वमान्य सिद्धांत के रूप में स्थापित होती रही ज्ञान का प्रकाश हो जाने पर भी ऐसी मान्यताए व धारणाए विलीन नहीं हुई जिसने आज अपनी जड़े और मजबूत कर ली है जिसे आज अंधविश्वास कहा जाता है वह आस्था श्रद्धा के नाम पर स्वयं को विज्ञान के समकक्ष स्थापित करवा रहा है। आदिकाल में मनुष्य का क्रिया क्षेत्र सीमित था जैसे जैसे मनुष्य कार्य क्षेत्र में विस्तार होता गया वैसे वैसे अंधविश्वासों का जाल भी फैलता गया और इनके अनेक प्रकार हो गए। किसी भी विषय को जाने समझे बिना विश्वास कर लेना अंधविश्वास कहलाता है चूँकि व्यक्ति किसी भी विषय को जाने समझे बिना विश्वास कर सही मान लेते है इसलिए यह आवश्यक ही नहीं होता की अपने विश्वास के पीछे के कारण को समझने के प्रयास में विषय की सत्यता को जानने का प्रयास भी करेगें अत: अंधविश्वास पीढ़ी दर पीढ़ी यूँ ही चलता रहता है। समाज में अनेक तरह के अंधविश्वास प्रचलित है जिनका वर्गीकरण संभव नहीं है परन्तु ज्योतिष भी उन्ही अंधविश्वास में से एक है जिसे विज्ञान कहकर अंधविश्वास की श्रेणी से दूर रखने का भरपूर प्रयास किया जाता रहा है। व्यक्ति अन्धविश्वासी क्यों बनते है इसका सबसे बङा कारण है अपनी बुद्धि का प्रयोग न करना जिसके कारण तार्किकता का अभाव रहता है और व्यक्ति पर अन्धविश्वास पकड़ दिन प्रतिदिन मजबूत होती जाती है यूं तो अन्धविश्वासी बनने के सामाजिक कारण अनेक होते है सभी पर तो चर्चा नहीं की जा सकती है क्योंकि यह ग्रुप ज्योतिष जैसे अन्धविश्वास को उजागर कर रहा है इसलिए ज्योतिष के संदर्भ मे ही व्यक्ति के अन्धविश्वासी होने के कारण पर चर्चा करेगें।
ज्योतिषी के पास हर तरह के व्यक्ति जाते है और सभी अपना भविष्य जानने के लिए जाते है जिनमे अधिकतर ऐसे व्यक्ति होते है जो किसी न किसी प्रकार की समस्या से झूझ रहे होते है और किसी भी तरीके से उस से निजात पाना चाहते है जाहिर है एक परेशान व्यक्ति ज्योतिषी की बताई हर बार स्वीकार करेगा। कुछ ऐसे व्यक्ति भी होते है जो शौकिया या किसी परेशान मित्र के साथ ज्योतिषी के साथ जाते है उनका भविष्य से तो कोई लेना नहीं होता परन्तु साथ मे गए मित्र को देखकर ज्योतिषी द्वारा बताई गई बाते सही कहते हुए एक क्षण के लिए ही सही पर मन अपने भविष्य के बारे मे जानने के लिए उत्सुक हो जाता है और यहीं से उनके अन्धविश्वासी बनने का सिलसिला शुरु होता है। ज्योतिष का प्रचार ही भविष्य बताने वाली विद्या और यन्त्र मन्त्र रत्न टोटके आदि को हर समस्या के समाधान के रुप मे किया जाता है। हर व्यक्ति एक बार आजमाने मे क्या हर्ज है यह विचार कर अवश्य ही आजमाते है जो उनको अन्धविश्वासी बनने की राह पर ले जाता है। आज तो प्रचार के कितने साधन टीवी रेडियो अखबार इन्टरनेट आदि है जिनमे सुबह से शाम तक ऐसे अन्धविश्वासी बनाने वाले कार्यक्रमो की भरमार होती है जिनमे प्रायोजित कार्यक्रम - जिनमे कहीं से दो चार अभिनेताओ को दुनिया का सबसे दुखी इन्सान दिखाकर व फलाने ज्योतिषी द्वारा भविष्य बदल कर धन कुबेर बना देने की कहानी होती है - देखकर बहुत से व्यक्ति पूरा अता पता याद कर लेते है क्या पता भविष्य उनकी स्थिति भी वैसी ही हो उस समय भविष्य बदलने वाले ज्योतिषी को कहां तलाश करते रहेगें। इन विज्ञापनों मे तरह तरह के ज्योतिषीय योग कुंडली विश्लेषण यन्त्र टोटके आदि बताए जाए है जिनमे असंख्य व्यक्तियों को विश्वास करते देखकर जो व्यक्ति अभी अन्धविश्वास से दूर है उनके मन मे विश्वास उत्पन्न कर देते है कि इनमे कोई सच्चाई तो अवश्य ही है जो इतने लोग विश्वास कर रहें है। इसलिए ऐसे ही किसी टीवी पत्र पत्रिका वाले ज्योतिषी के 2/3 दिन के लिए व्यक्ति के शहर मे पधारने की सूचना मिलते ही उनके पास समस्याओं के समाधान हेतु भीङ लगा देते है।
ज्योतिषी के पास जाने का कौन सा समय होता है अर्थात व्यक्ति कब किसी ज्योतिषी के पास जाते है। प्राय ज्योतिषी के पास जाने का भी एक विशेष समय होता है जिसमे - नौकरी न मिलना, विवाह न होना, व्यापार मे घाटा पङना, पारिवारिक क्लेश, स्वास्थ्य का खराब रहना - लम्बी बीमारी, पति पत्नी मे अनबन, धन की समस्या, सन्तान न होना, प्रेम सम्बन्धो मे तनाव आदि ऐसी मुख्य समस्याएं है जिनके समाधान के लिए व्यक्ति मुख्यतः ज्योतिषी के पास जाते है। इसके अलावा व्यक्ति अपना भविष्य जानने के लिए भी ज्योतिषी के पास जाते है आमतौर पर उन्हे किसी प्रकार की समस्या नहीं होती है परन्तु भविष्य जानने की जिज्ञासा उन्हे ज्योतिषी के पास खींच लाती है। चूंकि व्यक्ति पूर्व जन्म के कर्म का फल, प्रारब्ध, भाग्य, किस्मत, शुभ-अशुभ आदि पर विश्वास करते है अतः उनका ज्योतिष पर विश्वास करना भी लाजमी है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति अपने भविष्य सम्बन्धी घटनाएं - विवाह कब होगा नौकरी कब लगेगी कार कब खरीद पायेगें धन सम्पति कब होगी आदि के बारे मे जानना चाहते है क्योंकि उन्हे लगता है कि भविष्य पूर्वनिश्चित है जो पूर्वजन्म के कर्म के आधार पर लिखा जा चुका है और उनके जीवन मे कब क्या होने वाला है वह ज्योतिषी बता सकते है, व "पूर्वनिश्चित" भविष्य को व्यक्ति की इच्छानुसार मनचाहा रुप देकर जीवन समृद्ध कर सकते है इस कारण व्यक्ति दाकियानुसी ज्योतिषीय उपाय टोने टोटके यन्त्र मन्त्र तन्त्र आदि से अपनी समस्याओं का अन्त करना चाहते है। टोटके कर ग्रहों को प्रसन्न करने के नाम पर लाखो रुपये पानी मे बहाने से समस्याओं का अन्त तो नहीं होता है वरन अच्छे उच्च शिक्षित व्यक्ति भी अन्धविश्वास के शिकार होकर अपना व अपने परिवार मित्र आदि का भविष्य भी तबाह कर के रख देते है।
शैक्षणिक योग्यता अन्धविश्वास से मुक्ति को सुनिश्चित नहीं करती है - अर्थात व्यक्ति कितने ही उच्च शिक्षित क्यों न हो उनके शिक्षित होने का अर्थ यह नहीं निकाला जाना चाहिए कि वह अन्धविश्वास से मुक्त है। सच तो यह है कि ऊंचे पदो पर सुशोभित, उच्च शिक्षित, प्रसिद्ध व गणमान्य व्यक्ति जिनका अनुसरण करोङो व्यक्ति करते हुए देखे जा सकते है, स्वयं अन्धविश्वासी होते है, वह कितने ही उच्च शिक्षित क्यों न हो वास्तव मे अक्कल के अन्धे ही होते है अन्धविश्वास पर उनका विश्वास 17वीं शताब्दी के अन्धविश्वासी व्यक्ति से कहीं अधिक होता है। उन्हे न तो अपने विश्वास के सही/गलत होने का पता होता है न ही वह अपने अतिविश्वास के पीछे के सही तथ्य तर्क की जांच करते है न ही जानना चाहते है इसलिए उनके अन्धविश्वासी होने के कारण किसी बात को सही मान लेना बुद्धिमता नहीं होती है। शैक्षणिक योग्यता बुद्धि के विकास का पैमाना भी नहीं होती है - यह बात शायद आपको अच्छी नहीं लगे परन्तु यह भी एक कटु सत्य है। यदि नहीं होता तो 21वीं सदी मे भी किसी को यह बताने की आवश्यकता नहीं होती कि सूर्य ग्रह न होकर तारा है चंद्रमा उपग्रह है और नक्षत्र हमारी आकाशगंगा मे ही नहीं है, ग्रह पृथ्वी से करोङो कि.मी. दूर स्थित है जिनका हमारे भूत भविष्य से कोई सम्बन्ध नहीं है न ही टोटके भविष्य बदल कर जीवन सुखी कर सकते है। जब शिक्षा प्राप्ति का उद्देश्य केवल एक अच्छे पैसे वाली नौकरी और पति/पत्नी मिलने तक ही सीमित हो तो यह बाते कैसे समझ मे आ सकती है। अभिभावक भी इसी उद्देश्य से अपने बच्चो को शिक्षा देते है विचार मुख्यतः यही होता है कि अच्छी शिक्षा दिलवानी है जिस से उन्हे एक अच्छी नौकरी मिले एक अच्छा वर/वधु मिले जिसके लिए परीक्षा मे अच्छे अंको का आना आवश्यक है नहीं तो किसी अच्छे स्कूल कालेज विश्वविद्यालय मे प्रवेश नहीं मिलेगा व ऐसे विषय भी नहीं चुन पायेगें जिनमे कैरियर की अच्छी सम्भावना होती है। जब तक शिक्षा प्राप्ति का उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति नहीं होगा तब तक अन्धविश्वास से मुक्ति नहीं मिल सकती है।
अन्धविश्वासी बातो को इसलिए भी मान लेना चाहिए कि आपके मित्र अथवा परिचित उसमे विश्वास करते है अकसर देखने मे आता है कि अन्धविश्वासी व्यक्ति अन्य व्यक्तियो को भी दाकियानुसी बातो का अनुसरण करने के लिए प्रेरित करते रहते है उनकी बातो को मानते हुए अन्धविश्वासी बनना भी बुद्धिमता नहीं होती है। भीङ के साथ चलना मनुष्य का स्वभाव है इस तरह से वह स्वयं को सुरक्षित महसूस करते है भले ही दिमाग किसी बात को नकार रहा हो परन्तु उसकी बात को अनसुना कर दिया जाता है क्योंकि इस से वह भीङ से अलग दिखाई देगें जो उनकी सामाजिक सुरक्षा के घेरे मे सेंध लगाने जैसा होगा और कोई भी व्यक्ति नहीं चाहता है कि उसके साथ ऐसा हो इसलिए वह विचारणीय तर्क को नकारकर अचिंतनीय तथ्य की दुम पकङकर चलते रहते है - क्योंकि भीङ ने ऐसा करने का संकेत दिया है। इसमे कोई शक नहीं है कि भीङ का मनोवैज्ञानिक रुप से प्रभाव पङता है परन्तु मनुष्य की सहज प्रवृति और ज्ञान से उसे निष्क्रीय भी किया जा सकता है। किसी भी बात को सहज रुप से स्वीकार कर लेना तार्किक्ता की निशानी नहीं होती है व्यक्ति तर्कशील तब होते है जब मन मे किसी विषय के बारे मे जानने की जिज्ञासा हो जिस प्रकार व्यक्ति अपने भविष्य जानने के लिए प्रश्न करते है उसी प्रकार ग्रह कैसे भविष्य बनाते है टोटका करने से कार्य कैसे होगा आदि प्रश्न कर उनके कार्य करने के पीछे के तर्क को समझकर फिर विश्वास करे तो व्यक्ति अन्धविश्वासी नहीं रहेगें। किसी प्रश्न के उतर मे अतार्किक बात को स्वीकार करना भी सही नहीं होता है - ज्योतिषी यही करते है और गुरुत्वाकर्षण किरणें विकिरणों से भविष्य बनाकर उसे टोटके से बदलते हुए मूर्ख बनाते रहते है। क्योंकि भीङ गुरुत्वाकर्षण किरणें विकिरणों के साथ ही होती है इसलिए व्यक्ति यह जानते हुए भी इनसे भविष्य नहीं बनता है, उसी भीङ मे शामिल हो जाते है। कापर्निकस गैलिलियो आर्यभट्ट भी अपने समय मे मूर्ख ही कहे गए होगें क्योंकि भीङ इनके पक्ष मे नहीं थी परन्तु यह लोग उस भीङ के साथ नहीं गए और उसी का नतीजा है कि सूर्य सौरमंडल के मध्य मे चला गया, पृथ्वी घूमने लगी, और ग्रहण सूर्य चन्द्रमा व पृथ्वी के कारण लगने लगे।
किसी भी तरह के अन्धविश्वास पर केवल इसलिए विश्वास नहीं करना चाहिए कि वह प्राचीन है सदियो से चला आ रहा है और असंख्य व्यक्ति उस पर विश्वास करते है - प्राचीन होने, असंख्य व्यक्तियो के विश्वास करने से कोई बात सही नहीं हो जाती है। ज्ञान कभी भी कम नहीं होता है समय के साथ और अधिक श्रेष्ठ होता है इसी क्रम मे यदि कोई विषय/वस्तु सही नहीं पाई जाए तो वह गलत ही कही जाएगी चाहे कितनी भी प्राचीन क्यों न हो और कितने ही व्यक्तियों द्वारा सही करार क्यों न दी जाए उनके सही मानने का पैमाना क्रमिक विकास के अन्तर्गत प्राप्त हुए विज्ञान की कसौटी पर भी खरा उतरे यह आवश्यक नहीं होता है - विशेषतः ज्योतिष जैसे विषय के बारे मे जिसे विज्ञान कहा जाता है। अन्धविश्वास के अन्तर्गत आने वाले किसी विषय, जिसकी प्रमाणिकता संदिग्ध हो व विज्ञान पुष्टि/सिद्ध न कर पाए/आस्था और श्रद्धा के कारण प्रतिक्रिया न करे/तर्कों तथ्यों द्वारा गलत सिद्ध कर दे उसे महाविज्ञान पराविज्ञान दैवीय विज्ञान की संज्ञा देना उचित नहीं कहा जा सकता है क्योंकि अभी तक के ज्ञान के अनुसार विज्ञान की अपनी सीमाएं है जब्कि अन्धविश्वास की कोई सीमा नहीं होती है इसलिए यह मान लेना कि विज्ञान अभी इतना उन्नत नहीं हुआ है जो अन्धविश्वास के अन्तर्गत आने वाले विषयों की सत्यता/प्रमाणिकता की पुष्टि कर सके कहना, मूर्खता की पराकाष्ठा है। जैसा कि कहा जा चुका है ज्ञान समय के साथ और श्रेष्ठ होता है इसलिए यह मान लेना कि हमारे ऋषि मुनि व अन्य आचार्यो ने ग्रहों का ऐसा कोई प्रभाव देखा था जो इन्सान के भूत भविष्य को प्रभावित करता था जिसका उल्लेख करना वह भूल गए और आज वह विलुप्त हो गया जब्कि उस समय के ज्ञान व तकनीक से कहीं श्रेष्ठ ज्ञान एवं तकनीक हमारे पास उपलब्ध है, परन्तु उस प्रभाव की खोज करने मे असहाय है? इसी तरह के विचार व्यक्ति को ले डूबते है।
अन्धविश्वास का जहर समाज मे इस हद तक घुल गया है कि अन्धविश्वासी व्यक्ति को कोई भी तर्कपूर्ण बात जो उनके अन्धविश्वासी विचारो मान्यताओ से मेल नहीं रखती हो, पसन्द नहीं आती है इसलिए कापर्निक्स आर्यभट्ट गैलिलियो आदि वैज्ञानिकों की बात स्वीकार करने मे समाज को सैंकङो वर्ष का समय लग गया। इन वैज्ञानिकों के समय शिक्षा के अभाव व अज्ञानता के कारण अन्धविश्वास चरम पर था अतः सदियो से चली आ रही मान्यताओ व निर्विवाद धारणाओ के चलते किसी विपरीत बात को स्वीकार करना इतना सहज भी नहीं था। परन्तु आज स्थिति विपरीत होते हुए वैज्ञानिक युग व साक्षरता दर मे वृद्धि होते हुए भी स्थिति जस की तस है बल्कि कहना चाहिए कि अन्धविश्वास 14/15वीं शताब्दी से भी अधिक परिपक्वता के साथ अपनी जङे जमा रहा है - बहुत से प्रचलित अन्धविश्चास के खिलाफ यदि कानून न बनाया गया होता तो वह आज भी जारी रहते। अन्धविश्वास के खिलाफ आवाज उठाने वालो का पुरजोर तरीके से विरोध होता रहा है क्योंकि समाज का एक वर्ग जो अन्धविश्वास पर ही जीवन यापन कर रहा है, नहीं चाहता कि वह कभी समाप्त हो समाज मे जागृति आएगी तो उनका धन्धा ही समाप्त हो जाएगा और वह कोई अन्य काम धन्धा नहीं कर पायेगें इस सूची मे ज्योतिषी सबसे पहले आते है क्योंकि उन्होने ठगी के सिवाय न कुछ किया, न आता है, न कुछ कर ही सकते है इसलिए अपने ठगी के धन्धे को बचाए रखने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाते है - अन्धविश्वासी व्यक्ति माला मे पिरोए हुए मनको की तरह है जो चाहकर भी अलग नहीं हो सकते है क्योंकि सदियों से ज्योतिष रुपी धागे से बंधे हुए है और ज्योतिषीयो के हाथो मे घूम रहे है लेकिन अब उस माला से मुक्ति सम्भव है इस ग्रुप  ने उस ज्योतिष रुपी धागे को ही तोङ दिया है जिस पर ठगी के धन्धे की बुनियाद टिकी हुई थी इससे ज्योतिषी भी हतप्रभ है परन्तु निश्चिंत भी क्योंकि सदियों से जिन मनकों को माला मे बने रहने की आदत हो गई थी उन से दूर कैसे रह सकते है लेकिन वह यह भूल जाते है कि उन मनको के मध्य मे कोई एक जिज्ञासु जो मुक्त होने के लिए आतुर है वह स्वयं मुक्त होकर अन्य सभी को उस डोर से बाहर निकाल देगा।
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