अगर आप शिक्षित हो कर स्वयं मे विश्वास रखते है, तो ज्योतिषीयो के पास जाकर मूर्ख बनने की क्या आवश्यकता है वह भी ऐसे ज्योतिषी जिन्हे ऋषि वेदव्यास ने चांडाल कहा है।
 यदि आप भाग्य किस्मत आदि मे विश्वास रखते है तो उसे स्वयं अपने शिक्षा आत्मविश्वास और पुरुषार्थ से बनाने मे विश्वास क्यों नहीं रखते है। क्यों उसे ज्योतिष मे तलाशते है जिसे कभी किसी ऋषि ने मान्यता ही नहीं दी थी।
 ग्रहो नक्षत्रो मे विश्वास करने की बजाय आप पुरुषार्थ करने मे विश्वास क्यों नहीं रखते है। वह भी ऐसे ग्रह जो करोङो कि.मी. दूर है और नक्षत्र तो हमारे सौरमंडल मे ही नहीं है - पता नहीं उन्हे पृथ्वी दिखाई भी देती है या नहीं इन्सान तो दूर की बात।
 शिक्षित होकर भी आप अन्धविश्चासी ही क्यों बने रहना चाहते है अपने साथ आने वाली पीढ़ी को भी यही अन्धविश्वास क्यों देना चाहते है।
 शिक्षित होने के पश्चात भी अगर आप यह नहीं समझ पाए कि पृथ्वी स्थिर नहीं सूर्य स्थिर है जो ग्रह न होकर तारा है और चन्द्रमा उपग्रह तो कब समझेगें और आने वाली पीढ़ी को क्या ज्ञान देगें।
 अन्धविश्वास का त्याग न करके आप स्वयं को भाग्यवादी कर्महीन व उत्साह हीन क्यों बनाए रखना चाहते है ऐसा करने आपका क्या भला हो रहा है।
 जिस चन्द्रमा पर इन्सान मे कदम रख लिए और वह देखता रहा तो पूर्णिमा को पागल करने आदि बातो पर आप कैसे विश्वास करते है यदि चन्द्रमा ऐसा कर सकता तो उनका क्या हाल होताजो वहां से होकर आए थे।
 शिक्षक वह ही नहीं होते जो स्कूल मे शिक्षा देते है बच्चे के सबसे पहले शिक्षक उसके माता पिता व बङे बुजुर्ग होते है - जब वह ही अन्धविश्वासी होगें तो ऐसे मे अपने बच्चो से सफलता की अपेक्षा करना मूर्खता है।
 आप अपने बच्चो को स्वयं नकारा बनाते है उनके जन्म से लेकर स्कूली शिक्षा समाप्ति तक उन्हे अन्धविश्वास के दलदल मे झोंक कर परिपक्व कर देते है। उनकी शिक्षा का भी ग्रहअनुसार ही चुनाव करेगें उसके बाद उनसे उम्मीद रखते है कि वह सफल डाक्टर वैज्ञानिक अफसर आदि बने - कैसे मुमकिन है।
 जन्म लेते ही काला टीका दूध न पिये तो काली बिल्ली, थोङा बङा हुआ तो काला धागा, परीक्षा मे समय दही, ग्रहो के रत्न और टोटके अलग से - ऐसे बच्चे पास भी हो जाए तो बङी उपलब्धि समझिए कुछ बनना तो दूर की बात।
 पङोसी के बच्चा मैरिट मे आया है हमारे बच्चे क्यों नहीं आये - चलो ज्योतिषी के पास! यह तो भला हो हमारे पाठयक्रम का जिसमे सुधार की बदौलत आज बच्चे समझने लगे है और वही जीवन मे सफल भी हो रहे है।
 व्यावसाय नहीं चल रहा तो ग्रह अनुकूल नहीं होगा - चलो ज्योतिषी के पास पैसे फूंक आते है। टाटा बजाज रिलांयस बिरला गोदरेज आदि बिजनेस घराने 100 से भी ज्यादा कारोबार कर रहे है जैसे सभी ग्रह अनुसार अनुकूल ही है - बस आपके ही नहीं है।
 नौकरी नहीं मिल रही तो वह ज्योतिषी दिलवाएगें जिनके अपने बच्चे भी खाली बैठे है। कभी अपनी उन किताबो पर भी नजर डालिए जिन्हे रटकर डिग्री तो मिल गई लेकिन आता क्या है - योग्यता है ! इस पर भी मन्थन करे।
 ज्योतिष बोगस है यह ज्ञान आपको नहीं है परन्तु पृथ्वी से करोङो कि.मी दूर स्थित गैसे के गोले कैसे हमारा भविष्य बना अथवा बता सकते है इस पर विचार करने के लिए तो किसीविशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं है।
 सुबह से शाम तक टोटके करने की बजाय अगर पुरुषार्थ किया जाए तो सफलता कई गुना बढ़ जाए। लेकिन व्यक्ति के अन्धविश्वासी भाग्यवादी विचार उन्हे ऐसा करने नहीं देते है फिर ज्योतिषीयो की जेब कौन भरेगा अगर सब कर्म प्रधान बन गए।
 कोई भी ज्योतिषी किसी के घर जाकर नहीं लूटते है आप स्वयं ही ठगे जाते है अपने अन्धविश्वास के कारण जो बताशे दाल गुङ बहाकर और चाट समोसे खा कर कृपा की उम्मीद लगाए होते है।

 ज्योतिष जैसे ठगी के धन्धे से जितनी जल्दी आप बाहर निकलेगें उतना ही अच्छा है आपके लिएभी और आपके भविष्य के लिए भी, नहीं तो कुंडलीदिखाते टोटके करते उम्र बीत जाएगी और हासिल कुछ नहीं होगा। भविष्य जानने के चक्कर मे वर्तमान भी हाथ से निकल कर इतिहास बन जाए - उचित है वर्तमान को पहचान कर उसे सार्थक बनाएं।

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