आज के आधुनिक समय मे व्यक्ति की तनावपूर्ण जीवन शैली, कैरियर की प्रति चिंता व भागदौङ, देर से व अधिक उम्र मे विवाह, विवाह के बाद भी अधिक समय तक माता-पिता न बनने के निर्णय के कारण अनेक दम्पतियों मे बांझपन का एक बङा कारण बनता जा रहा है लेकिन इस से अधिक बङा व महत्वपूर्ण कारण है माता पिता द्वारा अपने बच्चो के स्वास्थ्य, शारिरिक संरचना, खान-पान, व्यवहार, व रहन-सहन पर अधिक ध्यान न देना जिसके कारण विवाह के पश्चात सन्तान उत्पति मे अनेक प्रकार की बाधाएं उत्पन्न होती है और अन्धविश्वास के चलते सन्तान का न होना ज्योतिषीय ग्रह योग को समझा जाता है जिसके निवारण के लिए न जाने कितने ही दाकियानुसी टोटके मन्त्र यन्त्र रत्न व अन्य अनेक प्रकार के उपाय किये व करवाये जाते है। परन्तु क्या वास्तव मे ग्रह सन्तान न होने का कारण है इस लेख मे इसी पर चर्चा करते हुए ज्योतिषीय दृष्टिकोण पर चर्चा करेगें।
विवाह के उपरान्त सन्तान की अपेक्षा सभी को होती है और विवाह के अधिक समय व्यतीत होने के पश्चात भी सन्तान के न होने के कारणो की खोज शुरु हो जाती है। प्रारंभिक तौर पर समस्या शारिरिक ही होती है जो किसी सामान्य स्थिति से लेकर गम्भीर समस्या तक हो सकती है। किसी प्रकार की सामान्य समस्या मे कुछ उपचार के पश्चात ही सन्तान हो जाती है लेकिन अनेक समस्याएं ऐसी होती है जिनका निदान सरल नहीं होता है व समस्या जस की भी बनी रह सकती है ऐसी ही किसी समस्या से ग्रस्त व्यक्ति ज्योतिष के माध्यम से अपनी समस्या का समाधान ढूंढना प्रारम्भ कर देते है। सन्तान न होने के कारण ज्योतिषीय नहीं है न ही कोई ग्रह उसका कारण है यह केवल प्रचलित धारणाओं व मान्याताओं जिनका कारण अन्धविश्वास है, के कारण जीवन की प्रत्येक घटना को ग्रहों द्वारा प्रभावित मानकर कुंडली मे ग्रह योग का न होना प्राय सन्तान न होने का कारण समझा जाता है। कुंडली जो व्यक्ति के जन्म के समय का आकाशीय मानचित्र है वह किसी भी प्रकार से जीवन की गतिविधियों का कारण नहीं है। कारण ज्योतिषीयो ने बना दिया है अपने ठगी के धन्धे के लिए जिसके चलते एक परेशान व्यक्ति को ग्रह दोष के नाम पर डराकर लूटा जाता है जिसमे सन्तान न होने के कारण चिंतित व्यक्ति भी शामिल है उन्हे सन्तान बाधा, सन्तान प्रतिबन्धक योग आदि अनेक प्रकार के योग बनाकर और उसके उपाय के नाम पर हजारों नहीं वरन लाखों रुपये लूट लिए जाते है। सन्तान न होने के लिए ज्योतिष के सिद्धांत क्या कहते है अब उन पर चर्चा कर उनसे आपको अवगत करवाया जा रहा है जिससे कि आप समझ सके कि किस प्रकार से ज्योतिषी बोगस सिद्धांतो पर मूर्ख बनाकर समाज को भ्रमित कर लूट रहें है।
वृहदपाराशर होरशास्त्र के अनुसार - "यदि पंचमेश(पांचवे भाव का स्वामी) 6/8/12वें भाव मे हो तो सन्तान का अभाव रहता है, यदि केन्द्र व त्रिकोण मे हो तो सन्तान का सुख होता है" - इस सिद्धांत का यदि विश्लेषण किया जाए तो कन्या व तुला लग्न के लिए शनि पंचमेश होता है इन दोनो लग्नो के लिए यदि वह लग्न से 6/8/12वें स्थान पर स्थित हो जाए तो यह स्थिति पूरे पांच वर्ष तक रहेगी तो क्या उन पांच वर्ष मे कन्या व तुला लग्न के सभी जातको के सन्तान नहीं होगी और अन्य सभी लग्न मे उत्पन्न हुए जातक के होगी ! ऐसा किसी भी स्थिति मे सम्भव नहीं है न ही यह सम्भव है कि जिन व्यक्तियों की कुंडली मे पंचमेश केन्द्र या त्रिकोण मे स्थित है, उनको सन्तान होने मे कोई समस्या नहीं होगी समस्या किसी के साथ भी हो सकती है उसका पंचमेश की स्थिति से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसलिए यदि आपको ज्योतिषी ने सन्तान न होने के लिए ग्रह बाधा बता कर पंचमेश का 6/8/12 भाव मे स्थित होना या उस पर किसी ग्रह की दृष्टि का होना या कोई अन्य योग बताया जा रहा है तो वह आपको मूर्ख बना रहा है। होराशास्त्र के ही एक अन्य सिद्धांत के अनुसार - "पंचमेश 6/8/12वें भाव मे हो अथवा नीच राशि मे हो, शत्रु की राशि मे हो, या पंचम भाव मे पाप ग्रह हो तो पुत्र से कष्ट होता है" - यदि आप पहले सिद्धांत को ध्यान से पढ़े तो यह सिद्धांत उसका अन्तर्विरोधी है क्योंकि जब पंचमेश के 6/8/12वें भाव मे स्थित होने पर सन्तान ही नहीं होगी तो उस से कष्ट कैसे हो जायेगा। दूसरी ध्यान देने योग्य बात जो इस सिद्धांत मे लिखी है वह है पुत्र से कष्ट की अर्थात कुंडली मे पंचम भाव का स्वामी नीच राशि मे स्थित होने पर भी पुत्र देगा क्योंकि पुत्र से कष्ट तभी होगा जब पुत्र होगा जिसका अर्थ हुआ कि स्वयं पुत्र कारक गुरु के सिंह लग्न मे छठे भाव व अपनी नीच राशि मकर मे स्थित होने के पश्चात भी पुत्र का जन्म होगा जो ज्योतिष के मूल सिद्धान्तो के ही विरुद्ध है - क्योंकि नीच राशि मे स्थित ग्रह अच्छा फल नहीं देते है और जिस भाव के वह स्वामी होते है उस से सम्बन्धित विषय के फल मे न्यूनता लाते है - तो गुरु जो स्वयं पुत्र कारक ग्रह है और सिंह लग्न मे पुत्र भाव का स्वामी होता है वह अपनी नीच राशि मे स्थित होने पर पुत्र कैसे दे देगा ? - अर्थात सिद्धांत गलत है और गलती है ज्योतिष के मूल सिद्धांतो मे, वही गलत है और जब मूल सिद्धांत जिनके आधार पर उपरोक्त सिद्धांत बनाए गए है वही गलत है अन्य सिद्धान्त स्वतः ही बोगस हो गए उनका कोई औचित्य नहीं है और ऐसे ही बोगस सिद्धांतो पर से ज्योतिषी आपको मूर्ख बना रहें है सही भविष्यवाणी का दावा कर रहे है जब्कि उन्हे ज्योतिष का एक भी सही सिद्धांत पता नहीं है।
ज्योतिष के मूल/आधारभूत सिद्धांत ही बोगस है और ब्रम्हांड की गलत जानकारी के आधार पर बनाये गए थे। किसी वैज्ञानिक विधि पर आधारित नहीं होने से सभी अन्तर्विरोधी है और पूर्णत बोगस है। यदि इन्ही दो सिद्धांतो को प्रत्येक लग्न पर लागू कर विश्लेषण किया जाए तो ज्योतिष के अनेक सिद्धांत गलत हो जाते है जैसे कि राशि स्वामी व ग्रहों की उच्च नीच राशि का सिद्धांत। लेकिन हमें उन सभी पर चर्चा की आवश्यकता नहीं है सिद्धांत कैसे बोगस है यह अनेक बार बताया जा चुका है यहां पर सन्तान योग से सम्बन्धित बोगस ग्रह योग को समझाने के उद्देश्य से इतनी विवेचना पर्याप्त है। उपरोक्त सिद्धांत/योग सामान्य है और बनते रहते है व कई वर्षो तक भी बने रहते है आपको ऐसी अनेक कुंडलियां देखने को मिल जाएगीं जिनके पंचमेश 6/8/12वें भाव मे, नीच राशि मे व शत्रु राशि मे भी स्थित है और सन्तान भी है और ऐसी व्यक्ति भी मिल जायेगें जिनकी कुंडली मे पचमेश केन्द्र व त्रिकोण मे स्थित है और अपनी उच्च राशि मे स्थित है फिर भी सन्तान नहीं है। ज्योतिषी अपनी सुविधा अनुसार ऐसे ही व्यक्तियों की कुंडली का विश्लेषण कर उसमे सन्तान न होने के कारण को ग्रहों से जोड़ कर समाज को भ्रमित करते है और इसी कारण ज्योतिषीयो का धन्धा चलता रहता है क्योंकि अब तक सत्य बताने वाला कोई नहीं था परन्तु अब ऐसा नहीं है इस ग्रुप मे ज्योतिष के सिद्धांतो का आज के विज्ञान के परिपेक्ष्य मे वैज्ञानिक विधि से विश्लेषण कर ज्योतिष की सत्यता की जांच कर ज्योतिषीयो के ठगे के धन्धे की पोल खोली जा रही है। ग्रह न तो हमारे जीवन को प्रभावित करते है न ही सन्तान न होने का कारण ग्रह योग है यह सब अन्धविश्वास है मात्र ठगी का धन्धा है। सन्तान न होने के कारण Biological होते है न कि ग्रह दोष के कारण अतः अपने बढ़ते हुए बच्चो के स्वास्थ्य, खान पान, रहन सहन, व्यवहार आदि पर ध्यान दें जिस से आगे चलकर उनके जीवन मे किसी भी शारिरिक समस्या के कारण सन्तान उत्पति मे बाधा की सन्भावना कम हो।

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