ज्योतिष के विषय मे प्रचलित धारणा है की ज्योतिष एक विज्ञान है क्योंकि ज्योतिषीयों के द्वारा ज्योतिष का प्रचार इसे विज्ञान की तरह प्रस्तुत करके किया जाता है जो आज के विज्ञान के युग मे ज्योतिष पर विश्वास का एक सबसे बड़ा कारण है। समाज मे आम प्रचलित अवधारणा यही है कि फलित ज्योतिष एक विज्ञान है क्योंकि फलित ज्योतिष के जानकारो द्वारा इसे विज्ञान कह कर ही प्रचारित किया जाता रहा है इसलिए फलित ज्योतिष को विज्ञान कहना उचित ही है परन्तु क्या फलित ज्योतिष वास्तव मे एक विज्ञान है इस प्रश्न पर शायद ही किसी ज्योतिष पर विश्वास करने वाले व्यक्तियों द्वारा किया गया हो क्योंकि फलित ज्योतिष ऋषियों द्वारा निर्मित है, सदियों से चला आ रहा है आदि मान्यताओं के कारण कोई व्यक्ति फलित ज्योतिष के विज्ञान होने पर प्रश्न चिन्ह क्यों लगाएगा विशेषतः समाज के अन्धविश्वासी होने के कारण, तार्किकता के अभाव मे किसी भी आम प्रचलित मान्यता को सहजता से स्वीकार कर लिया जाता है जिससे कि अन्धविश्वास बढ़ता जाता है और फलित ज्योतिष जैसा विषय जो विज्ञान के तर्क की श्रेणी मे भी कहीं स्थान नहीं रखता है विज्ञान बना दिया जाता है परंतु क्या ज्योतिष वास्तव मे विज्ञान है इस पर चर्चा कर इसे समझने का प्रयास करते है।
किसी भी विषय का क्रमबद्ध ज्ञान जो विज्ञान कहलाता है, वह व्यवस्थित ज्ञान है जो विचार - अवलोकन - अध्ययन - प्रयोग और उससे प्राप्त निष्कर्ष के बाद सही पाए जाने पर सिद्धांत का रुप लेता है इस प्रकिया से बना कोई भी सिद्धांत दुनिया के किसी कोने मे भी प्रयुक्त किया जाए, परिणाम सदैव एक ही होता है। किसी वैज्ञानिक सिद्धान्त या परिकल्पना की सबसे बडी विशेषता यह है कि उसे असत्य सिद्ध करने की गुंजाइश(scope) होनी चाहिये। जब मान्यताओं को ही सिद्धांत बना दिया जाए तो ऐसे सिद्धांत को असत्य सिद्ध करने की कोई गुंजाइश नहीं होती न ही जांचने की कोई विधि होती है। उदाहरण के लिए अच्छे कर्म करो तो स्वर्ग/मोक्ष मिलता है - यह केवल एक मान्यता है और मान्यताओं का कोई वैज्ञानिक आधार हो यह आवश्यक नहीं होता है इसालिए मान्यताओं को स्थापित सिद्धांत के रुप मे नहीं देखा जाना चाहिए। अगर इसे ज्योतिष के सिद्धांत रुप मे देखा जाए तो यदि केतु 12वें भाव मे हो तो जातक को मोक्ष मिलता है। व्यवाहरिक रुप मे इस सिद्धांत की जांच सम्भव ही नहीं है क्योंकि कोई भी व्यक्ति मोक्ष मिलने के पश्चात वापिस आकर नहीं बताने वाला कि हां मेरे 12वें भाव मे केतु था जिसके कारण मुझे मोक्ष मिला। अगर इस सिद्धांत को वैज्ञानिक परिपेक्ष्य मे देखा जाए तो मृत्यु दर मे से 10 प्रतिशत व्यक्तियों को मोक्ष मिल जाता है। दूसरे शब्दो मे कहा जाए तो प्रत्येक दिन दो घंटे मे पैदा हुए व्यक्ति बिना कोई कर्म किए ही मोक्ष के अधिकारी तय हो गए ! और विश्लेषण किया जाए तो केतु एक राशि मे 18 महीने तक रहता है तो केतु जिस राशि मे स्थित होगा उस राशि से अगली राशि-लग्न मे पैदा हुए सभी व्यक्तियों को मोक्ष मिलेगा - जैसे कि आजकल केतु कुंभ राशि मे है तो 18 माह तक मीन लग्न मे पैदा हुए सभी व्यक्तियों को मोक्ष मिलेगा ! अन्य लग्नो मे पैदा हुए व्यक्ति जो चाहे कर ले कितने ही अच्छे कर्म क्यों न कर ले उन्हें मोक्ष मिलने से रहा? जब तक केतु 12वें भाव मे नहीं आ जाता तब तक तो प्रश्न ही नहीं उठता और अब आने से रहा क्योंकि अब तो जन्म हो चुका है और जन्म के समय केतु 12वें भाव मे नहीं था तो किया ही क्या जा सकता है - सिवाय टोटके कर केतु को प्रसन्न कर १२वें भाव की फल देने के लिए बाध्य करने के, है न। यदि आपके अंदर जिज्ञासा है तो इस सिद्धान्त के विष्लेषण से ही आप समझ सकते है ज्योतिष विज्ञान नहीं है और ज्योतिष के सिद्धान्त किसी वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित नहीं है इसलिए ज्योतिषी किसी एक सिद्धान्त को भी सही सिद्ध नहीं कर सकते है न ही कोशिश कर रहें है क्योंकि ज्योतिषी स्वयं जानते है कि ज्योतिष मे एक भी सिद्धांत सही नहीं है सब के सब बोगस है इसलिए अनुभव के आधार पर और व्यहारिक रूप से ही सभी सिद्धांतो को सही बताते रहते है जाब्कि ज्योतिष के किसी भी सिद्धांत की सत्यता की जांच व्यवहारिक रुप मे नहीं की जा सकती है, यदि ज्योतिष एक विज्ञान है तो इसके सिद्धांतो की जांच वैज्ञानिक विधि से की जानी चाहिए। ज्योतिषी वह न करके अनुभव व व्यवहारिक रुप मे कर/बता रहे है जो कहीं से भी सही नहीं है। ज्योतिषी कर रहे है तो केवल अपने ठगी के धंधे के लिए क्योंकि उन्हे केवल व्यक्ति को मूर्ख बनाने से मतलब है इसलिए कोई सिद्धान्त किसी व्यक्ति के जीवन से मिला दिया और ज्योतिष को सही करार दे दिया जिससे कि अनेक व्यक्ति झांसे मे आकर लुटाने के लिए कतारें लगा दें, क्योंकि कोई बोगस सिद्धांत संयोगवश किसी की कुंडली और जीवन से मिल गया तो सभी के जीवन से मिलेगा यह आवश्यक नहीं और सदैव संदेहास्पद रहेगा और किन्ही दो व्यक्तियो का भविष्य एक जैसा नहीं होता है तो एक ही सिद्धांत करोङो व्यक्तियो की कुंडली मे होकर समान रुप से फलित हो यह असम्भव है जब्कि उसका कोई वैज्ञानिक आधार न हो। सर्वविदित है कि जुङवा बच्चो की समान कुंडली होने के पश्चात भी जीवन एक सा नहीं होता है - अर्थात सिद्धांत एक से फलित नहीं होते है ऐसे मे सिद्धांत का करोङो व्यक्तियो के लिए एक समान फलित होने, अनुभव व व्यवहार मे सही पाए जाने की बात करना सरासर मूर्खता ही कहलाएगी। लेकिन अगर कोई ज्योतिषी ज्योतिष के सिद्धांतो पर शोध/प्रयोग कर भी रहे है तो वह वैज्ञानिक विधि से मीलों दूर व्यवहारिक रुप मे ही किये जा रहें है केवल अपने ठगी के धंधे को नया रूप देने के लिए क्योंकि समाज मे ऐसे व्यक्ति भी है जिन्हे अब प्राचीन मान्यताओं के आधार पर मूर्ख नहीं बनाया जा सकता है चूंकि वह अभी पूरी तरह से अंधविश्वास से मुक्त नहीं हुए है इसलिए उन्हे यथावत बनाए रखने के लिए नए दांव पेंच आवश्यक है और ज्योतिषी ज्योतिष पर शोध के नाम पर उसी की खोज करते रहते है - जैसे कि किसी की कुंडली मे कोई सिद्धांत मिल गया और जीवन से भी मेल रखता हो तो उसे सही मान लिया। यदि कभी न ऐसा सिद्धांत मिला न व्यक्ति तो किसी बङी हस्ती की कुंडली तो है ही ! उसका विश्लेषण कर कोई भी बोगस ग्रह योग बनाकर जीवन मे कुछ चुनिंदा घटनाओ से मिलाकर ज्योतिष को सही करार दे दिया जाता है इस तरह से सभी ज्योतिषीयो के अपने-अपने सही सिद्धांत बन गए लेकिन पूछने पर बता एक भी नहीं पा रहें है। अगर ग्रुप मे सिद्धांतो का विश्लेषण भी व्यवाहारिक रुप से अनुभव के आधार पर हो रहा होता तो अब लाखो सिद्धांत सही सिद्ध हो चुके होते जो वैज्ञानिक विधि से विश्लेषण करने पर कहीं पर भी स्थान नहीं रखते है।

यदि ज्योतिष के सिद्धांतो का वैज्ञानिक दृष्टि से विश्लेषण किया जाए तो सिद्धान्त कहीं से भी विज्ञान नजर नहीं आते है और स्पष्ट हो जाता है कि सिद्धान्त किसी वैज्ञानिक प्रक्रिया का पालन करते हुए नहीं बनाए गए थे ऐसा इसलिए है क्योंकि ज्योतिष की रचना का आधार ही सही नहीं है ब्रह्मांड के जिस ज्ञान के आधार पर ज्योतिष की रचना की गई थी वह आज के आधुनिक खगोल के ज्ञान के अनुसार कहीं से भी सही नहीं है। स्थिर व चपटी पृथ्वी के ऊपर परिक्रमा करते सूर्य चन्द्र आदि सभी ग्रह, पृथ्वी के निकट सूर्य और चन्द्रमा उस से भी दूर, सभी नक्षत्र अर्थात तारे चन्द्रमा के उपर और बुध के मध्य मे स्थित थे ब्रम्हांड के इस प्रकार के ज्ञान के आधार पर ज्योतिष की रचना की गई थी, तो ब्रह्मांड के विषय मे ऐसी गलत जानकारी के आधार पर बनाए गए सिद्धान्त कैसे सही हो सकते है, जाहिर है कि नहीं हो सकते है इसलिए ऐसे किसी भी विषय को विज्ञान नहीं कहा जा सकता है जिसमे एक भी सिद्धान्त सही न हो अतः ज्योतिष को विज्ञान नहीं कहा जा सकता है यह एक अंधविश्वास मात्र है जिसे ज्योतिषीयो ने अपने ठगी के धंधे के लिए विज्ञान बना दिया है जिससे कि सामान्य जन जो ज्योतिष के विषय मे कुछ नहीं जानते है उन्हे भ्रमित कर मूर्ख बनाकर लूटा जा सके इसी कारण ज्योतिषी विज्ञान की आधुनिक शब्दावली का प्रयोग कर ज्योतिष को विज्ञान कहते है जिससे कि उनका ठगी का धंधा चलता रहे।

एक टिप्पणी भेजें

 
Top