फलित ज्योतिष सिद्धांतो का विषय है न कि श्रद्धा आस्था या विश्वास का इसलिए फलित ज्योतिष को सही होने के लिए इसमे वर्णित सभी सिद्धांतो का सही होना आवश्यक है। फलित ज्योतिष मे फलथन के लिए सिद्धांत बनाए गए है जो पूरी तरह से बोगस है वह ब्रह्मांड की गलत जानकारी के आधार पर बनाए गए है जो आज के ज्ञान के परिपेक्ष्य मे कहीं से भी सही नहीं है जिसकी जानकारी इस ब्लॉग में दी जा रही है। ज्योतिष मे ऐसा कोई सिद्धांत ही नहीं है जो किसी भी व्यक्ति के भविष्य के संदर्भ मे घटने वाली किसी भी घटना का वर्तमान मे ही स्टीक वर्णन कर दे। मैं ऐसा इसलिए नहीं कह रहा हूं कि मुझे ज्योतिष नहीं आता, या उस पर विश्वास नहीं है, ज्योतिष को जानते नहीं है या इसी पूर्वाग्रह से ग्रसित है बल्कि अनेक वर्षो तक ज्योतिष का अध्ययन करने सभी सिद्धांतो का वैज्ञानिक विधि से विश्लेषण करने और उस से प्राप्त परिणाम के आधार ही यह बात दृढ़ता पूर्वक कही जा रही है कि पूरा फलित ज्योतिष ही बोगस है। व्यक्ति के दैनिक जीवन मे महत्वपूर्ण विषय - शिक्षा स्वास्थ्य धन सम्पति सन्तान विवाह नौकरी व्यावसाय आदि - के बारे मे बताने मे ज्योतिष विषय सक्षम ही नहीं है तो ज्योतिषी कैसे हो सकते है। जब ज्योतिष मे ऐसा कोई सिद्धांत ही नहीं है जो उन्हे उपरोक्त किसी भी विषय के किसी विशेष समय मे होने/न होने की स्टीक जानकारी देता हो, अगर ज्योतिष मे ऐसे सिद्धांत होते जिनसे सही भविष्य ज्ञात किया जा सकता तो क्या ज्योतिषी स्वयं अपना भविष्य जानकर...!
अब तक सही भविष्यवाणी का दावा करने वाले अनेक बङे तथाकथित त्रिकालदर्शी ज्योतिषीयों में से एक भी ज्योतिषी फलित का कोई सही सिद्धांत नहीं बता पाया है तो आखिर क्यों? क्या वह ज्योतिष नहीं जानते - तो कुंडलियां कैसे देख रहे हैं, क्या वह सब ढोंगी थे - तो ऐसे ढोंगियो के पास जाकर आप क्यों लुटते है। आखिर कोई कारण तो होगा कि हजारो ज्योतिषीयो मे से एक भी ज्योतिषी फलित का एक सही सिद्धांत नहीं बता पा रहें है जब्कि उन ज्योतिषीयो मे से अनेक डिग्रीधारी - आचार्य पी.एच.डी. - होने के पश्चात भी चुप्पी साधे बैठे हुए है और ब्लॉग को पढ़ रहे है ज्योतिष की धुलाई होते हुए देख रहे है लेकिन एक भी ज्योतिषी ज्योतिष कैसे सही है कौन सा सिद्धांत सही है जिससे सही भविष्य बताया जा सकता है इस पर चर्चा के लिए सामने नहीं आया है, तो क्यों इस पर विचार करें। आप यह भी मान सकते है कि ज्योतिष का विरोध करने वालो को ज्योतिष नहीं आता इसलिए बोगस कह रहे है लेकिन ज्योतिषीयो को तो बखूबी आता है तभी तो कुंडलियां देखते ही भविष्य बता रहे है फिर फलित का एक सही सिद्धांत बताने मे उनके पसीने क्यों छूट रहे है। प्राकृतिक आपदाओं के होने, चुनाव जीतने/हारने, राजनीति, सेन्सेक्स, करोङो व्यक्तियो की नौकरी लगने, सन्तान होने, शिक्षा प्राप्ति, व्यापार मे उन्नति, विदेश यात्रा, भाग्योदय, विवाह होने, धन कुबेर बनने आदि व अनेक विषयो के बारे मे सटीक भविष्यवाणी का दावा कर, भविष्य बदलने वाले ज्योतिषी, ज्योतिष का एक सही सिद्धांत नहीं बता पा रहें जो इस बात को प्रमाणित करता है कि ज्योतिष बोगस है सिद्धांतहीन है और ज्योतिषी जो भविष्यवाणियां कर रहे है हकीकत मे उनका कोई ज्योतिषीय आधार नहीं है। इसलिए वह मात्र टुल्लेबाजी है जो संयोगवश सही हो भी तो व्यक्ति के लिए ज्योतिष ही सही होगा। क्योंकि उन्हे न तो उसके पीछे का सिद्धांत पता होता है न ही वह जानना चाहते है कि -असल मे ऐसा कोई सिद्धांत ही नहीं है जिससे सही भविष्य ज्ञात किया जा सके, इसलिए उन्हे टुल्लेबाजी कर मूर्ख बनाकर ठगा गया है। ज्योतिषी ज्योतिष का एक भी सही सिद्धांत बताने मे अपनी असमर्थता जता चुके है ऐसे मे यह तो माना ही जा सकता है कि वह सही सिद्धांत जानते ही नहीं है और आप ऐसे ज्योतिषी के द्वार पर जाकर उन्हे पंडित जी गुरुजी श्री श्री बनाकर माथे टेकते रहते है जो ठग है ज्योतिष के बोगस सिद्धांतो पर से आपको मूर्ख बना रहे है और आप पृथ्वी से करोड़ों किलामीटर दूर गैसीय पिंडो को प्रसन्न करने के लिए टोटके कर रहे है जिसके लिए आप बधाई के पात्र है, जो शिक्षित होकर भी एक मिडिल पास ठग के आगे शीश नवाकर अपनी बेअक्कली व मूर्खता का परिचय देकर उनके ठगी के धन्धे को बचाए हुए है। कोई उच्च शिक्षित भी हो तब भी कोई विशेष अन्तर नहीं पङता - आखिर है तो ठग ही।
फलित ज्योतिष को भगवान ऋषि देवता आदि किसी के द्वारा भी बनाया हुआ क्यों न मान लिया जाए इस से वह सही नहीं हो जाता है - बनाए तो सिद्धांत ही है जो ग्रहो/तारो के आधार पर ही बनाए गए है - उनकी सत्यता की जांच करने के लिए सिद्धांतो पर चर्चा क्यों नहीं की जाए। ग्रह नक्षत्र राशि सभी कुछ उपलब्ध है जिनसे बने सिद्धांत - राशि नक्षत्र स्वामित्व, ग्रहो की - दृष्टि, उच्च नीच राशि, अंश, कारक तत्व, लिंग, स्वभाव, प्रकृति, मित्रता शत्रुता, भाव कारक, महादशा, अन्तरदशा सहित अनेक बिन्दु है जिनकी स्टीकता की जांच वैज्ञानिक विधि अपनाते हुए की जा सकती है तो क्यों न इन पर इसी परिपेक्ष्य मे चर्चा की जाए - ज्योतिष सिद्धांतो के सही होने पर ही सही कहा जाएगा। इस पर आंख मूंद कर कैसे विश्वास किया जा सकता है कि अग्नि तत्व की मेष राशि का स्वामी मंगल है और सही है जब्कि वही अग्नि तत्व का मंगल अग्नि के शत्रु जल, तत्व की राशि वृश्चिक का भी स्वामी है फिर भी अपने परम मित्र चन्द्रमा के स्वामित्व वाली जल तत्व की ही राशि कर्क मे नीच का हो जाता है। इसी तरह से - जल तत्व का चन्द्रमा अग्नि तत्व के मंगल का मित्र है परन्तु जल तत्व व अपने मित्र की राशि वृश्चिक मे चन्द्रमा नीच का हो जाता है - यह विभाजन सही है, कैसे स्वीकार्य हो सकता है ? ऐसा तो तभी हो सकता है जब ज्योतिषी इसे सही सिद्ध कर दे, अन्यथा सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति भी इस सिद्धांत को सही स्वीकार नहीं कर सकता है कि अग्नि तत्व और जल तत्व मे शत्रुता के पश्चात अग्नि तत्व के मंगल को दोनो(अग्नि व जल) तत्वों की राशियों का स्वामित्व दे दिया जाए, फिर अग्नि तत्व के मंगल को जल तत्व के चन्द्रमा का मित्र बनाकर अपने ही मित्र के स्वामित्व वाली जल तत्व की ही राशि मे नीच का बना दिया जाए - ऐसे ही चन्द्रमा को भी जल तत्व देकर जल तत्व की ही राशि वृश्चिक मे नीच का बना दिया जाए। इसी तरह चन्द्रमा को शुक्र अपना शत्रु मानता है फिर भी चन्द्रमा शत्रु राशि मे ही उच्च का हो जाता है ! ज्योतिष के नियमानुसार ही कोई भी ग्रह अपने शत्रु की राशि मे अच्छा फल नहीं देता है - तो चन्द्रमा अपने शत्रु की राशि मे उच्च का फल कैसे देता है व मंगल अपने मित्र चन्द्रमा की राशि मे नीच का फल क्यों और शनि द्वारा शत्रु मानने के पश्चात उसी की राशि मकर मे उच्च का फल कैसे देता है ? बुध एकमात्र ऐसा ग्रह है जो अपनी राशि मे ही उच्च का होता है - जब अन्य किसी ग्रह को स्वराशि मे उच्च नीच नहीं बनाया गया तो बुध को किस आधार पर अपनी ही राशि मे उच्च का बना दिया गया। बुध और शुक्र आपस मे परम मित्र है फिर भी शुक्र अपने मित्र बुध की ही राशि मे नीच का होता है - यह स्थिति ठीक वैसी ही है कि आपका परम मित्र आपके घर मे सब कुछ होते हुए दाने दाने को मोहताज है। इन मूल सिद्धांतो के आधार पर बने फलित के सिद्धान्तो मे - लग्न मे स्वराशि सिंह के सूर्य को रतौंधी रोग का कारक बनाकर, सप्तम मे उच्च राशि मे होकर भी मातृहन्ता बना दिया जाता है - ऐसे अन्तर्विरोधी सिद्धांत किस आधार पर बना दिए गए यह ज्योतिषी भी नहीं जानते है - सिवाय एक बात रटने के कि ज्योतिष सही है और विज्ञान है। केवल मंगल चन्द्रमा, राशि स्वामी या उच्च नीच के सिद्धांत की बात नहीं है बल्कि सभी सिद्धांतो को यदि तर्क की कसौटी पर रखकर/ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जांचा जाए तो एक भी सिद्धांत सही नहीं पाया जाता है। ऐसे मे ज्योतिष को सही कैसे मान लिया जाए - वह भी पता होते हुए कि सही नहीं है! यह तो मूर्खता ही होती।
फलित ज्योतिष का प्रारम्भ ही राशियों से होता है जिनका जन्म स्थान प्राचीन ग्रीस है न कि भारत। ऋषियों ने केवल नक्षत्र बनाए थे जिनका प्रयोग वह अपने यज्ञ आदि के लिए मुहुर्त देखने के लिए करते थे। उसमे भी सूर्य व चन्द्रमा की नक्षत्रीय स्थिति ही देखी जाती थी अन्य ग्रहो की नहीं। न ही नक्षत्र 27 थे जैसा कि ज्योतिष मे है बल्कि वेद मे 28 नक्षत्रो का उल्लेख है। ज्योतिष मे सभी 27 नक्षत्रो मे प्रत्येक नक्षत्र का विस्तार 13 अंश 20 कला है जब्कि वेद मे सभी 28 नक्षत्रो के अंश असमान है और अभिजीत नक्षत्र उत्तराषाढ़ा और श्रवण नक्षत्र के मध्य मे आता है, उसे फलित ज्योतिष मे स्थान नहीं दिया गया। ज्योतिषीयों के अनुसार अभिजीत नक्षत्र को ज्योतिष मे स्थान इसलिए नहीं दिया गया क्योंकि इसके अंश कम थे इसलिए इसके अंशो को उत्तराषाढ़ा और श्रवण नक्षत्रो मे मिला दिया गया। इस तर्क मे ध्यान देने वाली बात यह है कि अभिजीत के अंश कम थे - अर्थात सभी नक्षत्र 13 अंश 20 कला के थे ही नहीं, और जब अभिजीत के अंश उत्तराषाढ़ा और श्रवण मे ही मिला दिए गए तो उन दोनो के अंशो मे बृद्धि हो गई ऐसे मे वह भी 13 अंश 20 कला के कैसे रह गए और उनके अपने अंश क्या थे - जो स्पष्ट प्रमाण है कि 28 नक्षत्रो का 12 राशियों मे विभाजन सहीं नहीं हो रहा था इसलिए नक्षत्रो की संख्या 27 कर दी गई। राशियों के मध्य नक्षत्रो के विभाजन के इसी तर्क को अनेक प्रख्यात ज्योतिषीयों द्वारा स्वीकारा गया है कि "भारतीय ज्योतिष मे 28 नक्षत्रो को ही मान्यता दी गई थी। उस समय भारतीय ज्योतिष मे 'राशि' नाम की कोई वस्तु नहीं थी। परन्तु जब पाश्चात्य जगत से भारतीय ज्योतिष मे ईस्वी सन की प्रारम्भिक सदियों मे राशियों का प्रादुर्भाव हुआ उस समय राशियों और नक्षत्रों मे तालमेल बिठाने के उद्देश्य से भारतीय विद्वानो द्वारा अभिजीत नक्षत्र को छोङ दिया गया और शेष 27 नक्षत्रो को 12 राशियों मे विभाजित कर दिया गया" - इससे राशियों मे मध्य नक्षत्रों के विभाजन का गणित तो सही बैठ गया लेकिन साथ ही बहुत से नक्षत्रों का पहला चौथा व दो चरण दूसरी राशि के स्वामित्व मे चले जाने से 9 नक्षत्र दो-दो राशियों के अन्तर्गत आ गए जिसको स्वीकार करते हुए यह तर्क दिया गया - "27 नक्षत्रों मे राशियो की संख्या (12) का पूरा-पूरा भाग न लगने के कारण एक नक्षत्र को चार पदों या चरणों मे बांटा गया और इस प्रकार 9 चरण या 2.25 नक्षत्र एक राशि मे रखे गए" - इसका परिणाम यह निकला कि चित्रा नक्षत्र जिसका स्वामी मंगल है उसके पहले दो चरण कन्या राशि के अन्तर्गत आने से मंगल के शत्रु बुध और अन्तिम दो चरण तुला राशि के अन्तर्गत आने से मित्र शुक्र साथ मे बैठ गए - इसी प्रकार प्रत्येक नक्षत्र के अपने स्वामी ग्रह होते हुए भी राशि स्वामी के ग्रह के स्वामित्व मे भी दे दिया गया। यह विभाजन भी किसी दृष्टि से तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता है - बाकि ज्योतिषी ही बता सकते है कि कैसे सही है। यह विभाजन ऐसा ही है जैसे आप अपने घर के चार भाग करके एक भाग अपने पुत्र को एक अपने मित्र को और एक एक उनके परम मित्र और शत्रु के नाम कर देते है परन्तु पूरा घर आपके नाम पर ही है।
विभिन्न पुराणो के अनुसार प्रजापति दक्ष की 24 से लेकर 116 पुत्रियां थी जिन मे से 27 का विवाह चन्द्रमा के साथ हुआ था और ज्योतिषीयों के अनुसार 27 नक्षत्र ही चन्द्रमा की पत्नियां है - इस तर्क पर यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि नक्षत्र तो 28 थे फिर अभिजीत को क्यों और किस कारण से तलाक दे दिया गया? चन्द्रमा अपनी पत्नी रोहिणी को सबसे अधिक प्रेम करते थे इसलिए चन्द्रमा की रोहिणी नक्षत्र पर उपस्थिति शुभ मान ली गई - चलिए मान ली गई तो यही सही, परन्तु ज्योतिष मे चन्द्रमा स्त्री ग्रह है फिर उसकी पत्नियां कैसे हो गई यह तो ज्योतिषी ही बता सकते है(वास्तव में वह स्वयं नहीं जानते है) हालांकि चन्द्रमा के विवाह से ज्योतिष के सही गलत होने से कोई सम्बन्ध नहीं है लेकिन उल्लेख इसलिए किया गया कि ज्योतिषी वेद पुराणों व ऋषियों के नाम पर समाज को किस प्रकार से मूर्ख बना रहे है, आपको इस तथ्य का इसका ज्ञान हो। फलित ज्योतिष का वेद पुराणों से कोई सम्बन्ध ही नहीं है ज्योतिषीयो ने अपने धन्धे के लिए इसे वेद पुराण और यहां तक कि भगवान से ही जोङ लिया है। भगवान ! जो कर्म करने के लिए कह गए है न कि टोटके करने के लिए परन्तु आपको यह बताकर क्या लाभ - समझ मे आने से रहा। फिर भी जितना जल्दी समझेगें उतना ही अच्छा अन्यथा आप इसी तरह से ज्योतिष विज्ञान है की रट्ट लगाते रहेगें और आपकी मूर्खता का लाभ उठाकर ज्योतिषी आपको चूना लगाते रहेगें।
अब आप समझ ही गए होंगे कि अनेक ज्योतिषी जिनके द्वारा यह ब्लॉग नियमित रूप से पढ़ा जा रहा है, वह ज्योतिष को सही सिद्ध करने के लिए आगे क्यों नहीं आते है क्यों ज्योतिष के सिद्धांतो पर चर्चा न कर के इधर उधर की व्यर्थ की बातें क्यों करते रहते है - इसका एक ही कारण है कि ज्योतिष बोगस है सिद्धांतहीन है तो वह भी क्या चर्चा करे। इसके बावजूद भी ज्योतिषीयों का यह पूर्ण प्रयास रहता है कि उनके ठगी के धन्धे की पोल न खुलने पाए व ज्योतिष बोगस है इस बात का पता ब्लॉग को नियमित रूप से पढ़ने वाले मित्रो को ज्ञात न होने पाए इसके लिए वह हर संभव प्रयास कर चुके है लेकिन जिन व्यक्तियो के दिमाग अभी भी सील बन्द लिफाफे मे पङे है उन पर तो उनका जादू चल जाता है लेकिन जो जिज्ञासु मित्र अपने दिमाग का भरपूर प्रयोग करते है व पूरी तरह से जागरुक होकर अपने साथ अन्य मित्रो को भी ठगे जाने से बचा रहें है उन मित्रों पर ज्योतिषीयो का कोई जोर नहीं चलता इसलिए ज्योतिषी उन सभी जागरुक मित्रों से उचित दूरी बना कर रखते है। जो मित्र अभी भी नहीं समझे है वह समय रहते समझ जाए कि ज्योतिष बोगस है और ज्योतिषी ठग इसमे आप ही की भलाई है लुटे व ठगे जाने से आप ही बचेगें। फिर भी किसी ज्योतिषी और ज्योतिष प्रेमी को लगता है कि नहीं यह सब लिखा हुआ गलत है और ज्योतिष बिल्कुल सही है एक विज्ञान है जिसमे सभी सिद्धांत सही है जिनसे भविष्य बताया जा सकता है तो मैं अपनी ओर से बातो के धनी सभी "ज्योतिषीयों और ज्योतिष प्रेमियो" को ज्योतिष के सिद्धांतो पर चर्चा के लिए आमंत्रित करता हूं - आइए और ज्योतिष को सैद्धांतिक रुप से सही सिद्ध करिए।

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