आदिकाल काल से ही मनुष्य आकाश में तारों, ग्रहों एवं अन्य खगोलीय पिंडों को देखता आ रहा है और अपनी जिज्ञासावश इन खगोलीय पिंडो का अध्ययन व अवलोकन करता आया है। परंतु आकाश में तारों का टिमटिमाना, चन्द्रमा की कलाओं का बदलना, उल्कापिंडों का टूटना, धूमकेतुओं का अचानक से दिखाई होना, सूर्य व चन्द्रमा का उदय व अस्त होना, ग्रहों में गतिशीलता के कारण स्थान बदलते रहना, सूर्य एवं चंद्र ग्रहण इत्यादि अनेक खगोलीय घटनाओं को देखकर मनुष्य के मन में अनेक प्रश्न उत्पन्न होते होंगे जिनके सही उत्तर जानने का वह प्रयास भी करता होगा लेकिन ब्रह्माण्ड के विषय में सही ज्ञान न होने के कारण वह इन खगोलीय घटनाओं को देखकर वह अधिक कुछ समझ नहीं पता होगा और अज्ञान के कारण आदिकाल में यह धारणा बन गई की इन आकाशीय पिंडों में अवश्य ही कोई न कोई विशेष दिव्य शक्ति है, जिससे यह आकाश में इस प्रकार से आगे पीछे चलायमान है और पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्य जीवन को अवश्य ही प्रभावित करते हैं। उनकी इस धारणा के पीछे कुछ कारण भी थे जैसे कि दिन रात का बनना, सूर्य का प्रकाशित होना, तारों का टिमटिमाना, वर्षा का होना, बिजली का चमकना, भूकंप का आना आदि अनेक खगोलीय एवं प्राकृतिक घटनाएं थी जिनका कारण वह समझ नहीं पाता था अतः खगोलीय व प्राकृतिक घटनाओं का घटित होना दिव्य शक्तियों द्वारा हुआ माना जाने लगा और इस कारण ग्रहों को देवता मान लिया गया। यदि हम इतिहास पर नजर डाले तो जानेंगे की प्राचीन काल में एक विशेष समुदाय के व्यक्ति ही शिक्षित होते थे उन्हें ही शिक्षा प्राप्ति का अधिकार था अतः उनकी कही बात ही सत्य एवं सर्वमान्य होती थी समाज के अन्य वर्गों की अशिक्षा व अज्ञानता का लाभ उठाकर समाज में धीरे-धीरे कुछ चतुर व्यक्तियों का एक वर्ग बनने लगा जो परिश्रमी व्यक्तियों की मेहनत की कमाई लूटने लगा उन चतुर वर्ग में शामिल व्यक्तियों को ज्योतिषी कहा जाता था (महाभारत के अनुसार ऐसे व्यक्तियों को नक्षत्र जीवी कहा जाता था) उन्होंने समाज की अशिक्षा अज्ञानता व अंधविश्वास का लाभ उठाकर प्राकृतिक व खगोलीय घटनाओं का ग्रहों से तालमेल बिठाते हुए व्यक्ति के भविष्य से जोड़ा और भविष्यवाणी करने लगे इस प्रकार अंततः फलित ज्योतिष की उत्पत्ति हुई। प्रारंभिक समय में फलित ज्योतिष खगोलशास्त्र के अंतर्गत बना रहा और उस समय में खगोलशास्त्री को ज्योतिषी कहा जाता था परन्तु जब यूरोप आदि के देशों में खगोल विज्ञान ने जन्म लिया और अनेक खगोलशात्रियों ने विभिन्न प्राकृतिक व खगोलीय घटनाओं की सटीक एवं प्रामाणिक व्याख्या की और ब्रह्मांड के अनेक रहस्य उजागर हुए उसके पश्चात फलित ज्योतिष अर्थात भविष्य बताने वाली विद्या को खगोलशास्त्र की शाखा से पूर्णतः अलग कर दिया गया। लेकिन तब तक चतुर वर्ग द्वारा ग्रहों नक्षत्रों के विषय में फैलाए गए अंधविश्वास के कारण फलित ज्योतिष अपनी जड़ें जमा चुका था और उसकी समाप्ति नहीं हुई तथा वह पहले ही की तरह चलता रहा जो वर्तमान में भी जारी है। यह विदित है कि तत्कालीन समय में बड़े-बड़े राजा व महाराजा भी ज्योतिषीयों के प्रपंचो से स्वयं को नहीं बचा पाए और इनके चंगुल में फस गए तो आम जनता जो पहले से ही अशिक्षित और गरीब थी वह भला कैसे स्वयं को इनके जाल में फसने से बचा सकती थी इस कारण ज्योतिष का धंधा फलता फूलता रहा। आज समाज शिक्षित है और अज्ञानता मिट चुकी है लेकिन अंधविश्वास नहीं मिटा है वह ज्यों का त्यों बना हुआ है जिस कारण ज्योतिष जैसा बोगस विषय भी बना हुआ है अनेक व्यक्ति ज्योतिष के व्यावसाय से जुड़े हुए है जिन्हें मूलतः ज्योतिषी कहा जाता है जो त्रिकालज्ञ कहलाने के साथ ही शुभ-अशुभ समय (मुहूर्त) के भविष्यवक्ता है जिनके पास अपना भविष्य जानने के लिए व्यक्तियों की भीड़ देखी जा सकती है जिनका भविष्य ज्योतिषी ऐसे बता रहे होते है जैसे उन्होंने ने लिखा हो।
वर्तमान मानव सभ्यता वैज्ञानिक सभ्यता है इसलिए अनेक त्रिकालज्ञ ज्योतिषी अपनी भविष्यवाणी की विश्वसनीयता और अपने व्यापार को बढ़ाने व फलित ज्योतिष को विज्ञान दर्शाने के लिए फलित ज्योतिष को एक वैज्ञानिक विषय कहते हुए देखे जा सकते हैं और ज्योतिष पर आश्रित सामाजिक वर्ग, ज्योतिषी द्वारा फलित ज्योतिष के विषय में फैलाई जा रही आधारहीन व तथ्यविहीन बातों पर सरलतापूर्वक विश्वास कर लेता है लेकिन फलित ज्योतिष को विज्ञान मानना पूर्णत: गलत है जो व्यक्ति विज्ञान का ज्ञान रखते है वह कभी भी फलित ज्योतिष को विज्ञान नहीं कह सकते है ऐसे व्यक्ति यदि फलित ज्योतिष को विज्ञान कहते है तो इसका कारण उनका अंधविश्वास (उनकी अज्ञानता) है वह विज्ञान में भले ही शिक्षित है लेकिन उससे परिचित नहीं है ऐसे शिक्षित व्यक्तियों को फलित ज्योतिष जैसे बोगस विषय मे विश्वास करते हुए देखकर अन्य व्यक्ति भी उनका अनुसरण करते हुए फलित ज्योतिष को विज्ञान कहना व माना प्रारम्भ कर देते है। ज्योतिषीयों का फलित ज्योतिष को विज्ञान कहने के पीछे अपना एक निहित स्वार्थ है और वह है, व्यक्ति को मूर्ख बनाकर सरलतापूर्वक धन कमाने का उपाय जिसे जगजाहिर नहीं किया जाता है जो सामान्यजन नहीं जानते है और न ही जानना चाहते है। फलित ज्योतिष पर आश्रित सामाजिक वर्ग को इस विषय के बारे में प्रचारित की जा रही भ्रमित करने वाली बातों के कारण फलित ज्योतिष जैसे अंधविश्वास को विज्ञान मानने के लिए बाध्य कर दिया है जैसे की फलित ऋषियों की देन है, यह एक दैवीय या पराविज्ञान है, यह मानवीय विज्ञान से आगे का विज्ञान है आदि। फलित ज्योतिष को विज्ञान बनाने के लिए इस प्रकार के अनेक बेतुके तर्क दिए जाते है जो सभी व्यर्थ है जिनके बारे में जिज्ञासु व्यक्ति पढ़ चुके है। परंतु फलित ज्योतिष को विज्ञान क्यों नहीं माना जा सकता है ? फलित ज्योतिष पर विश्वास करने एवं इस विषय को विज्ञान मानने वाले अंधविश्वासी व्यक्तियों के मन में यह प्रश्न नहीं उठता है लेकिन इसी भीड़ में अनेक जिज्ञासु व्यक्ति भी होते है जिनके मन में इस प्रकार के प्रश्न उठते है जिसका उत्तर इस श्रृंखला में स्पष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है उम्मीद है कि उन्हें समझ में आएगा।
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