फलित ज्योतिष की सत्यता के संदर्भ में हजारो ज्योतिषियों से यह पूछा जा चुका है की ज्योतिष के सिद्धांत किस प्रकार बनाए गए, सिद्धांतो के बनाए जाने का आधार व प्रक्रिया क्या थी लेकिन अब तक कोई भी ज्योतिषी ज्योतिष के सिद्धांतों को बनाए जाने के आधार व प्रक्रिया के बारे में कुछ नहीं बता पाए है और न ही इसके बारे में कुछ जानते ही है। उदाहरण के लिए राशि स्वामी का सिद्धांत जो ज्योतिष का मूल सिद्धांत है, वह कैसे बना, किस आधार पर बना और किस प्रक्रिया से बना, शत्रु तत्व के ग्रह को दो शत्रु तत्व की राशि का स्वामी बनाने में किस प्रकार जानकारी का उपयोग हुआ आदि पर किसी भी ज्योतिषी को कुछ भी नहीं पता है लेकिन फिर भी ऐसे सिद्धांतो को सही कहते है। ज्योतिषी यह तो मानते है की ज्योतिष में शोध की, खोज की आवश्यकता है, पर वह शोध, खोज कौन करेगा या कौन शोध/खोज कर रहा है इसका पता नहीं है। ज्योतिषी यह तो मानते है की 99% ज्योतिषियों ने ज्योतिष का सत्यानाश किया है, अधिकतर ठग है, ज्योतिष नहीं जानते आदि आदि, पर कभी किसी ने ऐसे किसी भी ज्योतिषी का नाम नहीं बताया जो ठग हो या जिसके कारण ज्योतिष का सत्यानाश हो रहा है और न ही उन्हें तथाकथित 1% सही ज्योतिषी के बारे में पता है जिससे स्पस्ट है की ऐसी बाते सिर्फ समाज में भ्रम फैलाने के लिए फैलाई जाती है जबकि दुनिया के सभी ज्योतिषी एक समान सिद्धांतो का उपयोग करते है। आपने देखा होगा की ज्योतिषियों ने प्लूटो, यूरेनस और नेपच्यून जैसे ग्रहों को भी न सिर्फ कुंडलियों में शामिल कर लिया वरन उनसे तरह तरह के फलित भी जोड़ लिए जबकि इन ग्रहों की खोज 250 वर्षो में ही हुई है और कभी भी किसी भी ज्योतिषी द्वारा आंकड़े इकट्ठे कर किसी भी फलित की जांच नहीं की गयी है वरन जो मन में आया उसे किसी भी ग्रह से जोड़ दिया है। आदिकाल में भी ज्योतिष के सिद्धांत बनाते समय भी यही प्रक्रिया अपनाई गयी थी और बिना आंकड़े इकट्ठे किये जैसे जिस ज्योतिषी, ऋषि को लगा वैसा ही सिद्धांत बना दिया और अंजान लोगो ने उसे डर के कारण मानना शुरू कर दिया।
आदि काल में ऋषियों द्वारा जिस ज्योतिष का उपयोग किया जाता था और जो लगध ऋषि की वेदांग ज्योतिष में है उस विधा का एक मात्र काम सूर्य और चन्द्रमा की नक्षत्रीय स्थिति ज्ञात करना था ताकि कृषि के लिए वार्षिक काल गणना की जा सके और साथ ही देवताओं को यज्ञ के माध्यम से दी जाने वाली आहुति भी नक्षत्रों से जुड़े देवता को दी जा सके ताकि वांछित कार्य में देवताओ का आशीर्वाद भी प्राप्त हो। यज्ञ के लिए चन्द्रमा की नक्षत्रीय स्थिति की सही गणना करने का कार्य ज्योतिष के द्वारा किया जाता था ताकि सही मुहूर्त (समय) पर यज्ञ किया जा सके इसीलिये ज्योतिष की इस विधा को वेद की आँख भी कहा गया क्योंकि अगर चन्द्रमा की नक्षत्रीय स्थिति का सही ज्ञान नहीं होता तो यज्ञ करने का भी समुचित फल नहीं मिलता इसीलिये मुहूर्त का महत्व था और सही नक्षत्र आधारित सही मुहूर्त ज्ञात करने के कारण ज्योतिष का महत्त्व था। पूर्व में भी यह बताया जा चुका है की जब कोई सिद्धांत बनाया जाता है तो तत्कालीन ज्ञान, जानकारी और मान्यता के आधार पर ही बनाया जाता है जैसे आज अगर विज्ञान के कोई सिद्धांत बन रहे है तो वह आज के ज्ञान, जानकारी और मान्यता पर ही बन सकते है न की सन 2500 की जानकारी और मान्यता के अनुसार। जीवन का आधार होने के कारण और आकाश में किसी भी जीवित प्राणी की तरह चलने वाले सूर्य और चन्द्रमा को जीवित देवता माना जाता था जो आदिकाल के ज्ञान, मान्यता और जानकारी के आधार पर सही ही था।
वैदिक ऋषियों ने भगवान द्वारा बनाए गए भविष्य को जानने का प्रयास नहीं किया था सम्भवतः वह भगवान के काम में दखल नहीं देना चाहते थे और वैसे भी उनके लिए राजा विष्णु का अवतार था और हर तरह के कष्ट के लिए यज्ञ कर समस्या दूर करने का साधन भी था पर जिन ऋषियों द्वारा सूर्य ग्रहण अर्थात देवता पर कष्ट आने के बारे में बताया जाता था और फिर देवता के कष्ट को दूर करने का तरीका (दान आदि) भी बताया जाता था हालांकि उनके पास ग्रहण ज्ञात करने का कोई सटीक खगोलीय ज्ञान नहीं था जिसका कारण था ग्रहों के बारे में सही जानकारी नहीं होना पर निरन्तर अवलोकन से उनको यह पता था की 18 वर्ष के बाद ग्रहण की पुनरावृति होती है। ऋषियों के ऐसे ही ज्ञान, राजाओ की सम्पति, समृद्धि, अच्छा मौसम आदि कारणों से यूनान के सिकंदर को भी भारत की तरफ आकर्षित किया और फिर चन्द्रगुप्त ने जब उनके सेनापति की पुत्री हेलेना से विवाह किया तो यूनानी खगोलशास्त्री और गणितज्ञों का ज्ञान भारत तक पहुंचा और ऋषियों के खगोलीय ज्ञान के बारे में यूनानियों को जानकारी हुई। मानव सभ्यता का विकास मुख्यतः सिंधु घाटी, बेबीलोन (मेसोपोटामिया आदि) और दक्षिण अमेरिका (माया सभ्यता) में हुआ - और सूर्य के महत्व को सभी सभ्यताओं ने माना और उसे देवता भी माना गया। सिंधु घाटी की सभ्यता में मुख्य भूमिका चन्द्रमा और नक्षत्र की रही क्योंकि नक्षत्रों के मध्य चलते हुए चन्द्रमा की स्थिति को आसानी से देखा भी जा सकता था और जांच भी की जा सकती थी जबकि बेबीलोन की सभ्यता में यूनान का प्रभाव और प्रभुत्व बढ़ने के बाद वहां के खगोलविद और गणितज्ञों ने काल गणना करने के लिए सूर्य और राशियों को महत्व दिया और उन्होंने ही सभ्यता के विकास के साथ साथ 12 राशियों का नामकरण अपने देवताओं के आधार पर किया वहीं माया सभ्यता का संपर्क किसी भी सभ्यता से नहीं होने के कारण उनके खगोलीय ज्ञान का उपयोग नहीं हो पाया। वेद में भी राशियों का उल्लेख नहीं होने से हमारे ऋषियों को राशियों का ज्ञान नहीं था, जो यूनानी सभ्यता का ज्ञान था इसलिए उनके द्वारा नक्षत्र और उनके देवता के आधार पर, मुख्यतः राज परिवार में पैदा होने वाले बच्चे के भविष्य के बारे में कुछ अनुमान लगाए जाते थे क्योंकि राजा के कारण ही समाज सुरक्षित रह पाता था इसलिए राज परिवार में पैदा होने वाले बच्चे का महत्व था जबकि समाज के अन्य व्यक्ति का ना तो कोई महत्व था और ना ही उनका कोई महत्वपूर्ण भविष्य था जो समाज को प्रभावित कर सके। यूनान की सभ्यता में अनेक प्रसिद्द गणितज्ञ और खगोलशास्त्री हुए और उनकी मान्यता थी की जो कुछ मौसम के बदलाव के रूप में पृथ्वी पर हो रहा है उसमे सूर्य सहित अन्य आकाशीय ग्रह का ही योगदान है - और इस बात का एक आधार यह भी था की नील नदी की बाढ़ लुब्धक तारे के उदय होने से जुडी थी इसी के अनुरूप उन्होंने यह पाया की सूर्य की राशि गत स्थिति ही मौसम में बदलाव लाती है।
उपरोक्त तथ्य से जिज्ञासु मित्र जान सकते हैं की किस तरह ठग ज्योतिषियों द्वारा समाज में गलत जानकारी दे कर अन्धविश्वास फैलाया गया है।
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