मानव शुरू से ही जिज्ञासु रहा है और मानव की यही क्षमता उसे अन्य जीवित प्राणियों से अलग करती है और श्रेष्ठ भी बनाती है आज भी समाज के विकास में जिज्ञासु ही योगदान देता है भले ही उसकी योगदान की धारा धीमी और अदृश्य हो। जैसा मेने पहले लिखा था की जब कुछ ऋषियों ने सूर्य देवता पर ग्रहण के रूप में आने वाले संकट का पूर्वानुमान लगाना शुरू किया और सूर्य को संकट से मुक्ति का रास्ता खोजा, तो यह स्वाभाविक जिज्ञासा थी की जब सूर्य देवता पर आकाशीय असुर स्वर्भानु (जिसे अब राहु कहा जाता है) के द्वारा पैदा किये गए संकट के बारे में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है तो विष्णु के अवतार राजा के ऊपर आने वाले संकट और उससे राजा की मुक्ति के बारे में आकाशीय ग्रह नक्षत्रों के बारे में क्यों नहीं जाना जा सकता, यही से भविष्य जानने की जिज्ञासा का सूत्रपात हुआ और राशियों के बारे में यूनान से ज्ञात जानकारी का उपयोग कर ज्योतिष के सिद्धांत बनाने का काम शुरू हुआ। सम्राट अशोक मौर्य के समय पूरे भारत में बौद्ध धर्म का प्रभाव हो चुका था और सनातन धर्म हाशिये पर आ चूका था। ईसा पूर्व 204 में सेनापति पुष्यमित्र द्वारा मौर्य राजा व्रहदरथ की हत्या के पश्चात समाज की रचना में तेजी से परिवर्तन हुआ, बौद्ध धर्म के लोगो को मारा जाने लगा सनातन धर्म को समाज में तेजी से प्रविष्ट कराने के लिए और समाज को पुनः बौद्ध धर्म से सनातन धर्म की तरफ मोड़ने के प्रयास तेज हुए और राजा के भविष्य के बारे में भी ऋषियों की चिंता बढ़ी। यूनान से संपर्क बढ़ जाने के कारण वहां का राशि गत ज्ञान का उपयोग ऋषियों ने शुरू किया तो यहां का पंच तत्व का ज्ञान यूनान पहुंचा और यहाँ के पंच तत्व में से उन्होंने आकाश तत्व की अलावा अन्य 4 तत्व (पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु) को ही मान्य किया और राशियों को इन्ही 4 तत्व में विभाजित किया। आप देख सकते है की राशियों सिर्फ 4 तत्व की है और इनका आधार तत्कालीन यूनान के मौसम के अनुरूप ही है जबकि यहां के ऋषियों ने पंच तत्व के 7 ग्रह, 4 तत्व की राशियाँ और 28 नछत्र से भविष्य जानने का आधार बनाने की प्रक्रिया शुरू की। भारत में बौद्ध धर्म की समाप्ति पर ग्रहण की जानकारी के आधार पर जिज्ञासु ऋषियों की एक शाखा, यूनान की 4 तत्व वाली राशि और 5 तत्व वाले ग्रह के आधार पर भविष्य जानने की प्रक्रिया पर आगे बढ़े। यहाँ यह तथ्य भी उल्लेखनीय है की यूनानियों को भारतीय ऋषियों से 5 तत्व की जानकारी मिली थी किन्तु उन्होंने आकाश तत्व को महत्व नहीं दिया और अन्य 4 तत्व को मौसम के अनुरूप पा कर राशियों को 4 तत्व से सम्बंधित कर दिया। किन्तु ऋषियों की एक शाखा भविष्य बताने की प्रक्रिया अपनाने वाले व्यक्तियों के पूर्णतः विरोध में भी थी और उनमे वेदव्यास, मनु जैसे ऋषि भी शामिल थे जिन्होंने भविष्य बताने का कार्य करने वाले ज्योतिषियों को चांडाल, नरक गामी आदि अनेक शब्दों से भर्त्सना भी की जिसके बारे में अनेक शास्त्रों में उल्लेख देखा जा सकता है परन्तु राजा के जीवन की अनिश्चितता के साथ साथ समाज की स्थिति भी जुडी हुई थी अतः जिज्ञासा के कारण ग्रह और राशि के आधार पर भविष्य जानने की इच्छा राजा की भी रहती थी यहां से भविष्य ज्ञात करने के लिए ज्योतिष के सिद्धांत बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई।
फलित ज्योतिष की तरफ बढ़ने वाले भारतीय ऋषियों को जब यूनान से राशियों की जानकारी हुई तो यह सबसे पहली समस्या थी कि फलित के लिए इन राशियों का उपयोग कैसे किया जा सकता है क्योंकि यूनान में सूर्य की राशिगत स्थिति के आधार पर मौसम का पूर्वानुमान लगाया जाता था और उन्होंने भारतीय ऋषियों के पञ्चतत्व में से चार तत्व को निम्नानुसार राशियों से जोड़ लिया था।
मेष, सिंह, धनु - अग्नि तत्व।
वृष, कन्या, मकर - पृथ्वी तत्व।
मिथुन, तुला, कुम्भ - वायु तत्व।
कर्क, वृश्चिक, मीन - जल तत्व।
इसीलिये व्यक्तिगत भविष्य ज्ञात करने के लिए ऋषियों ने राशि और ग्रहों को आपस में जोड़ने का प्रयास किया - तो स्वाभाविक था कि ऋषि ग्रहों के बारे में उपलब्ध जानकारी के आधार पर ही आगे बढ़ते। आदि काल में ऋषियों के पास ब्रह्माण्ड के बारे में यह जानकारी थी कि पृथ्वी स्थिर और चपटी है जिसके मध्य में सुमेरु पर्वत है पृथ्वी से एक लाख योजन ऊंचाई अर्थात करीब 15 लाख किलोमीटर ऊंचाई पर सूर्य है और उससे एक लाख योजन ऊंचाई पर चन्द्रमा है, उससे एक लाख योजन ऊंचाई पर नछत्र मंडल है, उससे दो लाख योजन ऊंचाई पर बुध ग्रह है, उससे दो लाख योजन ऊंचाई पर शुक्र ग्रह है, उससे दो लाख योजन ऊंचाई पर मंगल ग्रह है, उससे दो लाख योजन ऊंचाई पर गुरु ग्रह है, उससे दो लाख योजन ऊंचाई पर शनि ग्रह है इस जानकारी के आधार पर राशि स्वामी का सिद्धांत बनाया गया।
ग्रहों को ऋषी देवता मानते थे इसलिए यह मान्यता भी स्वाभाविक थी की यह देवता भी उसी तरह की मानसिकता रखते है जैसी मनुष्य रखते है और देवताओं के मनुष्य जैसे क्रिया-कलाप सभी पुराणों में विस्तार से उपलब्ध है। चूंकि मान्यता के अनुसार मनुष्य के जीवन की घटनाएं देवताओं की इच्छा से प्रभावित होती है इसलिए कुंडली की सहायता से भविष्य की घटनाओं को पहले से ज्ञात करने के लिए यह आवश्यक और स्वाभाविक भी था की देवताओं के आपसी सम्बन्धो को ज्ञात किया जाए इसके लिए ऋषियों ने मनुष्यो के मध्य चलने वाले मित्र शत्रु जैसे सम्बन्धो की तरह ही देवताओं के मध्य चलने वाले मित्र शत्रु जैसे सम्बन्धो की खोज कर, ज्योतिष के महत्वपूर्ण मूल सिद्धांत की रचना की। ज्योतिष के अन्य सिद्धांतो की तरह ही ज्योतिष के आचार्य भी हजारो वर्ष में यह नहीं खोज पाये है की ऐसे मूल सिद्धांत बनाने का आधार और प्रक्रिया क्या थी इसलिए ज्योतिष का यह मूल सिद्धांत भी सिर्फ अन्धविश्वास की तरह ही माना जा रहा है जबकि अब हम जानते है की ग्रह कोई जीवित देवता नहीं है वरन सिर्फ पिंड हैं जिनके मध्य मनुष्य के स्वभाव की तरह मित्र शत्रु जैसे कोई सम्बन्ध नहीं है।
ज्योतिष विश्वासी सामाजिक वर्ग में अधिकतर व्यक्ति ज्योतिष के बारे में कुछ भी नहीं जानते होंगे और ऐसे ही 20-30 वर्ष की आयु के युवा ज्योतिषीयों द्वारा दिए जा रहे तथाकथित सही भविष्यवाणियों के विज्ञापन के भ्रम जाल में आसानी से फस जाते है क्योंकि इस उम्र में उनको अनेक तरह की समस्या का सामना करना पड़ता है और आत्मविश्वास की कमी, बढ़ती हुई प्रतियोगिता, भविष्य की अनिश्चितता, परिवार और स्वयं के बड़े-बड़े सपने, ज्योतिषीयों के विज्ञापन, टोटको के विज्ञापन आदि मिल कर किसी को भी ज्योतिषी के पास जा कर भविष्य जानने के लिए प्रेरित कर सकती है और फिर वह धीरे धीरे ज्योतिषीयों द्वारा डरा कर या सुनहरे सपने में थोड़ी सी परेशानी को टोटके, नग आदि से ठीक करने की बात को मान कर अनजाने में ही ज्योतिषियों के जाल में फसता जाता है और फिर जिंदगी भर तोते की तरह ज्योतिषीयों की भाषा बोलता रहता है और सही ज्योतिषी को ढूंढने के चक्कर में मानसिक शांति और धन भी गंवाता है क्योंकि वह कभी भी अपने दिमाग से नहीं सोचता और विज्ञान आदि पढ़ा होने के बाद भी अनपढ़ और ठग ज्योतिषी के पीछे चल रही भीड़ और अन्य मित्रो को सही मान कर उनके पीछे ही चलता रहता है। उन सभी मित्रो को में यह बताना चाहता हूँ की ज्योतिष कोई कठिन विषय नहीं है अगर आप 12वीं तक पढ़े है तो ज्योतिष और ज्योतिष की ठगी को आसानी से समझ सकते हो इसलिए अपनी जिज्ञासा को जाग्रत करिये ज्योतिष के सिद्धांत, उनका आधार और ज्योतिषियों की ठगी, झूठ और चालाकी को जानिये। जानिये की कैसे आधी-अधूरी और गलत जानकारी से फलित ज्योतिष के सिद्धांत बनाए गए थे जो ज्योतिषी कभी नहीं बताएँगे।
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