ज्योतिष का इतिहास शीर्षक लेख में अभी तक जो लिखा है उसमे ही अनेक ऐसे बिन्दु है जिसके बारे में ज्योतिषी समाज को गलत जानकारी दे कर अन्धविश्वास में धकेलते रहते है मित्रो की सुविधा के लिए उन बिंदुओं को लिख रहा हूँ ताकि जब वह किसी से चर्चा करे तो उनको सुविधा रहे।
1 - ज्योतिषी भविष्य के बारे में तभी बता सकते हैं जब भविष्य निश्चित हो अगर भविष्य किसी भी टोटके, उपाय या पुरुषार्थ से बदला जा सके तो बदलने वाला भविष्य ज्योतिष के सिद्धांत से कभी नहीं बताया जा सकता है।
2 - ज्योतिषी ज्योतिष में खोज किये जाने की बात करेंगे तो जब अभी खोज ही की जानी हैं तो धंधा किस आधार पर शुरू किया जा चुका है।
3 - ज्योतिषी कहेंगे की 99% ज्योतिषी गलत हैं जब की वह स्वयं न तो गलत ज्योतिषी का नाम जानते हैं ना ही सही ज्योतिषी का।
4 - जिस तरह से ज्योतिषियों ने बिना किसी आधार के यूरेनस, नेपच्यून, प्लूटो से फलित को जोड़ दिया था उसी तरह आदि काल में भी बिना किसी खोज के फलित को ग्रहों से जोड़ दिया गया था।
5 - ज्योतिषियों को यही नहीं पता की सिद्धांत किस आधार और किस प्रक्रिया से बनाये गए थे।
6 - जो ज्योतिष वेद की आँख के रूप में बताया जाता हैं वह सिर्फ सूर्य और चन्द्रमा की नक्षत्रीय स्थिति ज्ञात करने के लिए था ताकि सही समय पर यज्ञ किया जा सके उस ज्योतिष को आजकल एस्ट्रोनॉमी कहते है।
7 - यूनान में 12 राशियों का नामकरण हुआ था ना की भारत में और यूनान के ज्ञान से हमारा संपर्क सिकंदर के हमले के बाद हुआ।
8 - भारतीय ऋषि, ग्रहण के बारे में उसकी पुनरावृति के आधार पर ही जानते थे ना की किसी गणना के आधार पर।
9 - बौद्ध धर्म के प्रभाव के बाद राजनीतिक अस्थिरता एवं सूर्य ग्रहण, चन्द्र ग्रहण जैसे डरावने कारण थे जिसके कारण विष्णु के अवतार राजा का भविष्य जानने की जिज्ञासा के कारण ही ऋषियों का एक समूह फलित ज्योतिष के लिए आधार बनाने की तरफ आगे बढ़ा।
10 - उस समय तक असुर राहु को ही सूर्य ग्रहण एवं चन्द्र ग्रहण की पीछे का कारण माना जाता था।
11 - राहु को उस समय स्वर्भानु कहा जाता था।
12 - उस समय तक भारतीय ऋषियों में केतु नामक असुर की कोई कल्पना नहीं थी।
13 - ऋषियों ने पृथ्वी (या सूर्य) एवं चन्द्रमा की भ्रमण कक्षा के कटान बिन्दु को कभी भी राहु नहीं कहा था ना ही उनको ऐसे किसी तथ्य की जानकारी थी।
14 - यूनानियों ने ऋषियों के द्वारा मान्य किये गए 5 तत्व में से आकाश तत्व के अलावा 4 तत्व को ही मान्य कर उन्हें राशियों से सम्बंधित किया।
15 - फलित ज्योतिष का आधार बनाने के लिए ऋषियों के पास 28 नछत्र, यूनानियों द्वारा मौसम से जोड़ी गयी 4 तत्व वाली 12 राशियां एवं 5 तत्व वाले सूर्य, चन्द्र, राहु सहित 8 ग्रह थे।
16 - ज्योतिष के सिद्धांत तात्कालिक धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं पारिवारिक व्यवस्था पर आधरित थे - क्यों की किसी भी सिद्धांत की रचना तत्कालीन समय पर उपलब्ध ज्ञान के आधार पर ही की जा सकती है।
17 - भविष्य जानने की प्रक्रिया का आधार बनाने और उसका उपयोग करने के कारण वेदव्यास, मनु जैसे अनेक ऋषियों ने इसका विरोध भी किया और ज्योतिषी को चांडाल और नरक में जाने जैसे कड़े शब्दों में भर्त्सना भी की।
उपरोक्त तथ्य से जिज्ञासु मित्र जान सकते हैं की किस तरह ठग ज्योतिषियों द्वारा समाज में गलत जानकारी दे कर अन्धविश्वास फैलाया गया हैं और युवा पीड़ी का सत्यानाश किया जा रहा है।
18 - मित्र अधिकतर परेशानी में अपना आत्मविश्वास खो कर ही ज्योतिषियों के जाल में फसते हैं।
19 - अगर वह स्वयं ज्योतिष को जानने का प्रयास करेंगे तो आसानी से समझ सकते हैं और ठगे जाने से बच सकते हैं।
20 - ऋषियों ने राशियों को ग्रहों से जोड़ने के लिए तत्कालीन ब्रह्मांडीय जानकारी का उपयोग किया।
21 - ऋषियों की जानकारी के अनुसार पृथ्वी स्थिर और चपटी है जिसके मध्य में सुमेरु पर्वत है।
22 - पृथ्वी से एक लाख योजन ऊंचाई अर्थात करीब १५ लाख किलोमीटर ऊंचाई पर सूर्य है और उससे एक लाख योजन ऊंचाई पर चन्द्रमा है।
23 - चन्द्रमा से एक लाख योजन ऊंचाई पर नक्षत्र मंडल है, उससे दो लाख योजन ऊंचाई पर बुध ग्रह है, उससे दो लाख योजन ऊंचाई पर शुक्र ग्रह है, उससे दो लाख योजन ऊंचाई पर मंगल ग्रह है, उससे दो लाख योजन ऊंचाई पर गुरु ग्रह है, उससे दो लाख योजन ऊंचाई पर शनि ग्रह है - इस जानकारी के आधार पर राशि स्वामी का सिद्धांत बनाया गया।
24 - ग्रह स्थिति के बारे में ऋषियों की यह अवधारणा वर्तमान वैज्ञानिक जानकारी के परिपेक्ष्य में पूरी तरह गलत सिद्ध हो चुकी हैं।
25 - ऐसे स्थिति में स्पस्ट हैं की गलत जानकारी के आधार पर बने सिद्धांत कैसे सहीहो सकते हैं
26 - सिद्धांत को बनाने में किसी भी तरह के आंकड़ों का मिलान नहीं किया गया था वरन पञ्च तत्व का मिलान ही आधार था।
27 - मौसम के आधार पर बनी राशियों के तत्व के अनुसार व्यक्तिगत चरित्र भी मनोविज्ञान के आधार पर मिलता हुआ लगता था इसलिए कभी ऐसे सिद्धांत पर शंका नहीं की गयी और वैसे भी ऋषियों की बात पर शंका भी कौन करता जबकि राजपरिवार सहित समाज तो अनपढ़ ही था
28 - इसलिए कभी किसी ने नहीं पूछा की मंगल जैसे ग्रह को दो शत्रु तत्व (अग्नि और जल) की राशियों (मेष और वृश्चिक) का स्वामी बनाने का कोई तथ्य आधारित कारण नहीं है।
29 - इसी तरह बुध ग्रह को दो शत्रु तत्व (पृथ्वी और वायु) की राशियों (कन्या और मिथुन) का स्वामी बनाने का कोई तथ्य आधारित कारण नहीं हैं।
30 - शुक्र ग्रह को दो शत्रु तत्व (पृथ्वी और वायु) की राशियों (वृष और तुला) का स्वामी बनाने का कोई तथ्य आधारित कारण नहीं है।
31 - शनि ग्रह को दो शत्रु तत्व (पृथ्वी और वायु) की राशियों (मकर और कुम्भ) का स्वामी बनाने का कोई तथ्य आधारित कारण नहीं हैं।
32 - ऐसे ही विपरीत सिद्धांत के आधार पर ज्योतिषी मनमर्जी से कुछ भी कह कर या किसी भी घटना को किसी से भी जोड़ कर अंजान जातक को संतुष्ट कर देते हैं।
33 - जब दूरी ही राशियों का स्वामी बनाने का आधार हैं तो हर जन्म के समय दूरी के आधार पर राशियों के स्वामी बनाना चाहिए।
34 - यूरेनस और नेपच्यून तो ऋषियों को दिखे नहीं थे तो अब तो उन्हें भी राशियों का स्वामी बनाया जाना चाहिए।
उपरोक्त विवरण से मित्र समझ सकते हैं की जब ज्योतिष का मूल सिद्धांत अर्थात राशि स्वामी ही ग्रहों की सही जानकारी पर नहीं बना था तो पूरा ज्योतिष किस तरह गलत, तथ्यहीन, अवैज्ञानिक और भ्रामक होगा।

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