समाज में यह धारणा व्याप्त है कि फलित ज्योतिष और खगोलशास्त्र दोनों एक ही है क्योंकि दोनों का सम्बन्ध ब्रह्मांड से है जिसके अंतर्गत ग्रहों नक्षत्रो एवं अन्य आकाशीय पिंडों का अध्ययन किया जाता है, इसलिए दोनों ही को विज्ञान की एक शाखा माना जाता है। परंतु वास्तविकता यह है कि खगोलशास्त्र विज्ञान की एक शाखा है और फलित ज्योतिष एक अवैज्ञानिक अवधारणा मात्र है। यदि हम खगोलशास्त्र को देखें तो इसकी आधारभूत मान्यताओं में कहीं पर भी कोई मतभेद नहीं है जबकि फलित ज्योतिष के आधारभूत सिद्धांत/मान्यताओं में काफी विभिन्नता पाई जाती है जिसके कुछ उदाहरण निम्नलिखित है।
• ग्रहों में अंतर - यदि ग्रहों को देखें तो पाश्चात्य ज्योतिष को ग्रहों और भारतीय ज्योतिष के ग्रहों में अंतर है एक ओर जहां पाश्चात्य ज्योतिष में राहु और केतु नहीं होते है जबकि भारतीय ज्योतिष में दोनों ही है और ग्रह कहे जाते है। जब ग्रहों के प्रभाव की बात होती है तो नेपच्यून यूरेनस और प्लूटो द्वारा पाश्चात्य देशों को व राहु केतु द्वारा केवल भारत को ही प्रभावित करने की बात तर्कसंगत नहीं है।
• यूनान की पौराणिक कथाओं और पाश्चात्य मान्यता के अनुसार शुक्र ग्रह सौंदर्य की देवी है और भारतीय ज्योतिष में शुक्र दैत्यों के गुरु है।
• भारतीय ज्योतिष में बुध ग्रह विद्या वाणी बुद्धि से सम्बंधित है जबकि पाश्चात्य ज्योतिष में बुध व्यापार का देवता है।
• पाश्चात्य ज्योतिष में मंगल युद्ध का देवता है जबकि भारतीय ज्योतिष में मंगल भूमि मकान जमीन जायदाद का स्वामी है।
• ब्रह्मांड की अवधारणा में अंतर - भारतीय ज्योतिष के सिद्धांत बेलनाकार ब्रह्माण्ड में सभी ग्रह एक के ऊपर स्थित है, इस आधार पर निर्मित है जबकि पाश्चात्य मत के अनुसार ब्रह्मांड का आकार अर्धवृताकार था अर्थात आधा गोला जिसके अंदर सभी ग्रह थे इस आधार पर निर्मित है। एक थाल मोतीयों से जड़ा सबके सर पर औंधा धरा - यह पहेली इसी मान्यता का परिणाम है।
• भचक्र में अंतर - भारतीय ज्योतिष और पाश्चात्य ज्योतिष में भचक्र (राशिचक्र) के प्रारंभिक बिंदु में अंतर है इस कारण दोनों पद्धतियों में कुंडली में दर्शाई गई ग्रहों की स्थिति, भिन्न होती है।
• पद्धति में अंतर - भारतीय ज्योतिष में निरयन पद्धति अपनाई जाती है जबकि पाश्चात्य ज्योतिष में सायन पद्धति मान्य है इस अंतर के पश्चात भी दोनों ही अपनी पद्धति को सही कहते है।
• दृष्टि के सिद्धांत में अंतर - भारतीय और पाश्चात्य ज्योतिष में ग्रहों की दृष्टि में अंतर है, यह अंतर फलित ज्योतिष की अवैज्ञानिकता को सिद्ध करता है।
• जन्म राशि के सिद्धांत में अंतर - भारतीय ज्योतिष में चंद्र स्थित राशि व्यक्ति की जन्म राशि होती है जबकि पाश्चात्य ज्योतिष के अनुसार जन्म के समय सूर्य जिस राशि में स्थित होता है वही व्यक्ति की राशि होती है। जन्म राशि के सिद्धांत में ही इतना बड़ा अंतर है कि इस विषय को विज्ञान नहीं कहा जा सकता है। यह अंतर इतना अधिक है कि भारत में 30 दिन में 12 राशियों के व्यक्ति पैदा हो जाते है जबकि पश्चिमी देशों में 30 दिन में केवल एक ही राशि के व्यक्ति पैदा होते है।
• भविष्यवाणी अलग होना - कोई भी दो या दो से अधिक ज्योतिषी किसी एक (व्यक्ति) कुंडली पर एकमत नहीं होते है फलित ज्योतिष के एक समान सिद्धांतो के प्रयोग के पश्चात भी एक ही कुंडली पर विभिन्न ज्योतिषीयों की अलग अलग राय होती है एक ही कुंडली पर एक जैसे सिद्धांतो के पश्चात प्रत्येक ज्योतिषी की अलग राय होना फलित ज्योतिष को अवैज्ञानिक बनाता है यदि फलित ज्योतिष विज्ञान है तो एक जैसे सिद्धांतो के पश्चात परिणाम अलग नहीं होने चाहिए थे।
- इसके अलावा भी अनेक तथ्य है जो फलित ज्योतिष की अवैज्ञानिकता को ही सिद्ध करते है जैसे की शनि की साढ़े साती, कालसर्प योग आदि भारतीय ज्योतिष में ही पाए जाते है अन्य में नहीं। यह बात अलग है कि भारतीय ज्योतिष में लूटने के अनेक योग दोष देखकर पाश्चात्य ज्योतिषीयों ने उन्हें अपना लिया है। यदि ग्रहों की बात करे तो अनेक ज्योतिषी यूरेनस नेपच्यून और प्लूटो के प्रभाव को मानते हुए इनको भी फलित में शामिल करते है जबकि असंख्य ज्योतिषी इन ग्रहों को महत्व ही नहीं देते और भविष्य सम्बन्धी इनके प्रभाव को नकारते है। इस विश्लेषण से जिज्ञासु व्यक्ति स्वयं समझ सकते है कि इतनी फलित ज्योतिष की आधारभूत मान्यताओं में इतना अधिक अंतर होने के पश्चात इस विषय को विज्ञान कैसे कहा जा सकता है। अनेक उदाहरण है जिससे यह ज्ञात होता है कि फलित ज्योतिष के आधारभूत मान्यताओं में आपसी मतभेद है तो ऐसे विषय को विज्ञान नहीं कहा जा सकता है। विज्ञान में यदि हम पानी को भारत मे बनाएं या आस्ट्रेलिया में फार्मूला वही रहेगा चाहे साइबेरिया में ही क्यों न बनाएं प्रत्येक जगह पानी ही बनेगा न कि कहीं बर्फ तो कही पर पानी। लेकिन बात यहीं पर समाप्त नहीं हो जाती है 2000 वर्ष से चले आ रहे फलित ज्योतिष के बावजूद भी अनेक ज्योतिषीय पद्धतियां बना दी गईं जिनमे कृष्णमूर्ति पद्धति प्रमुख है जिसे भारतीय व पाश्चात्य ज्योतिष को मिलाकर बनाया गया है जिसमे फलकथन का तरीका (या यूं कहें कि सिद्धांत) मूल ज्योतिष से बिल्कुल अलग है और सभी पद्धतियां एक दूसरे से अलग है पाराशरी जैमिनी पद्धति के होते हुए भी अनेक प्रकार की पद्धति बनाई जा रही है जैसे कि गयात्मक ज्योतिष यह पद्धति भी मूल ज्योतिष से पूर्ण रूप से मेल नहीं रखती है। यह सभी पद्धतियां फलित ज्योतिष की अवैज्ञानिकता को सिद्ध करती है क्योंकि यदि 2000 वर्षों से चला आ रहा ज्योतिष सही और विज्ञान है तो अन्य पद्धतियों की आवश्यकता क्यों हुई? परंतु बात पद्धतियों की नहीं वरन सिद्धांतो की है जो फलित ज्योतिष का आधार है अतः कितनी ही पद्धतियां क्यों न बना ली जाएं जब तक सिद्धांत सही नहीं होंगे तब तक सब औचित्यहीन है और अब तक कोई भी ज्योतिषी फलित ज्योतिष को सैद्धांतिक रूप से सही सिद्ध नहीं कर पाए है जिससे स्पष्ट होता है कि विषय बोगस है। क्रमशः

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