वैज्ञानिक युग मे भी समाज में ज्योतिष के बने रहने के निम्न कारण हैं
1. पूर्वजो का तिरस्कार - किसी भी तरह के अन्धविश्वास का विरोध करना पूर्वजों के तिरस्कार के रुप मे देखा जाता है जिसमे ज्योतिष भी शामिल है फिर वह बङे बुजुर्ग हो या ऋषि मुनि व अन्य आचार्य गण यदि आप उनके अज्ञान स्वरूप निभाई जा रही किसी भी प्रकार की मान्यता व धारणा का अपने तर्क व तथ्य से विरोध किया तो इसे आपके द्वारा अपने बड़े बुजुर्गों की अवहेलना के रूप मे देखा जाता है। परम्परा के नाम पर किए जा रहे दाकियानुसी कार्य के सम्बन्ध मे यदि कोई प्रश्न किया जाए या उसे नकार दिया जाए तो उसे पूर्वजों के तिरस्कार के रुप मे लिया जाता है क्योंकि हमारे पारिवारिक संस्कार हमे ऐसा करने की इजाजत नहीं देते है और प्राय यही समझा जाता है कि बङे बुजुर्ग करते आ रहें है वही सही है इसलिए उनके किसी अतार्किक कार्य पर प्रश्न करने का अर्थ उनके कार्य को गलत ठहराया जाना न होकर अपमान का विषय बना दिया जाता है अतः अनेक रूढ़िवादी परंपराए और मान्यताएं ज्यों की त्यों चल रही है जिसमे ज्योतिष भी शामिल है। अपने पूर्वजो के सम्मानस्वरुप किसी प्रकार के अन्धविश्वास के साथ बने रहने मे कोई बढ़ाई नहीं होती है उनके अज्ञान के कारण किए गए कार्य का अपने ज्ञान के साथ परित्याग करना वास्तव मे उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
2. ज्योतिष को संस्कृति का एक हिस्सा मानना – भारतीय समाज मे ज्योतिष को संस्कृति का एक अंग माना जाता है कुछ तो इसे विशेष धर्म का हिस्सा मानते है जबकि ज्योतिष का संबंध न तो किसी धर्म से है न ही यह किसी संस्कृति का हिस्सा है लेकिन समाज मे तो वही बात सही होती है जिसके साथ भीड़ होती है इसलिए सभी भीड़ के साथ बने रहते है।
3. भविष्य जानने की उत्सुकता – पौराणिक कथाओं के अनुसार भविष्य पूर्वनिश्चित है इस कारण समाज मे यही धारणा है की भविष्य पूर्व जन्म के कर्म का फल है जिसे ज्योतिष की सहायता से जाना जा सकता है अतः प्रत्येक व्यक्ति अपने भविष्य को जानना चाहता है की उसे धन मकान सम्पति वाहन आदि कब मिलने वाला है कब विवाह होगा नौकरी मिलेगी संतान कब होगी विदेश कब जाएगे आदि जीवन से जुड़े अनेक प्रश्न है जिनके उतर जानने के लिए वह उत्सुक रहते है जिसने ज्योतिष को जन्म दिया।
4. भविष्य में घटित होने वाली बुरी घटनाओं के प्रति सचेत होने की प्रवृत्ति होना – प्रत्येक व्यक्ति जीवन मे सुखी रहना चाहता है चूंकि वह मानता है की उसका भविष्य पूर्वनिश्चित है जिसे ज्योतिष की सहायता से ज्ञात किया जा सकता है इसलिए अपने साथ होने वाली किसी भी अप्रिय घटना के बारे मे जान कर उसे किसी टोटके द्वारा होने से रोकना या बदलना चाहता है जो वास्तव मे मूर्खता होती है। जीवन की अधिकांश घटनाएँ अचानक से घटित नहीं होती है प्रत्येक घटना व्यक्ति के कार्य का सिलसिलेवार वह क्रम है जो उस प्रकार की परिस्थियों का निर्माण करती है जिसका कभी आकलन नहीं किया जाता है इसलिए अचानक से हुई प्रतीत होती है जिसे किसी टोटके की सहायता से नहीं रोका जा सकता है उसके लिए एक ही टोटका है वह है अपने कर्मानुसार परिस्थिति का आकलन करना।
5. ज्योतिष और विज्ञान में अंतर का ज्ञान न होना – व्यति आज भले ही शिक्षित है लेकिन उन्हें खगोलशास्त्र का इतना सामान्य ज्ञान भी नहीं है जितना कि एक पाँचवी कक्षा के छात्र को भी होता है इस कारण वह ज्योतिष और विज्ञान मे अंतर नहीं कर पाते है व्यक्ति की इसी अज्ञानता का लाभ ज्योतिषीयों को मिलता है और वह ज्योतिष को विज्ञान की तरह से प्रस्तुत करते है खगोलशात्र का सामान्य ज्ञान न होने के कारण व्यक्ति सूर्य को ग्रह समझते है जो वास्तव मे एक तारा है, चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है और राहू केतू का अस्तित्व ही नहीं है अपने इस महान अज्ञान के कारण ज्योतिष के नौ ग्रह ही उनके लिए वास्तविक खगोलीय ग्रह है।
6. ज्योतिष का प्रचार – ज्योतिष का प्रचार भविष्य बताने वाली विद्या के रूप मे किया जाता है जिसमे ज्योतिष को विज्ञान कहना भी शामिल है जबकि सच्चाई यह है कि ज्योतिष से एक चींटी तक का भविष्य नहीं बताया जा सकता है जिसका कि खाना ढूंढने के सिवाय और कोई कार्य नहीं होता है, मनुष्य का जीवन तो विविधताओं से भरा है। ज्योतिष से आज तक किसी एक व्यक्ति को भी अपना भविष्य पता नहीं चला है प्रत्येक व्यक्ति इस सच्चाई को जानता है लेकिन फिर भी ज्योतिष के प्रति उसकी आसक्ति कम नहीं होती है – मूर्खता की देवी के आशीर्वाद के कारण बुद्धि नामक दैत्य आस पास भी नहीं फटक सकता है।
7. कर्महीन व भाग्यवादी जीवन - ज्योतिष केवल कर्महीन व भाग्यवादी जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्तियों के लिए ही है कहा जाए तो ज्योतिषीयों ने अपने ठगी के धंधे के लिए समाज को कर्महीन व भाग्यवादी बना दिया है आज हालात यह है कि व्यक्ति जानते ही नहीं है कि कर्म किसे कहते है उनके लिए तो टोटके करना ही कर्म रह गया है। भाग्यवादी और कर्महीन व्यक्ति यंत्र मंत्र रत्न टोटके आदि से ही कर्म की अपेक्षा रखते है इसलिए ज्योतिष का चलते रहना लाजमी है।
8. शिक्षा का महत्व न होना - हमारे देश मे शिक्षा केवल अच्छी नौकरी व पति/पत्नी प्राप्ति के उद्देश्य से ही ग्रहण की जाती है अतः योग्यता न होने के कारण ज्योतिष यन्त्र मन्त्र रत्न टोटके आदि ही एकमात्र सहारा रह जाता है जिसके लिए दिमाग को बचपन से ही शिक्षित किया जाता है शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति न होने से अज्ञान दूर नहीं होता है इस कारण ज्योतिष भी चल रहा है।
9. भविष्य के प्रति अनिश्चितता - जनसंख्या वृद्धि, अत्यधिक प्रतियोगिता, आदि अनेक कारणों से भविष्य के प्रति अनिश्चितता की स्थिति के कारण प्रत्येक व्यक्ति अपने भविष्य के प्रति चिंतित रहते है इसलिए अपने भविष्य को जानने की जिज्ञासा बढ़ जाती है अत उसे सुनिश्चित करने के लिए व्यक्ति ज्योतिष और टोटको को आजमाने से नहीं चूकते है।
10. सामाजिक विषमता - सामाजिक असमानता ज्योतिष के बने रहने के कारणों मे से एक है यह असमानता अनेक रूप मे विद्यमान है और समाज में संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक भी है। लेकिन यहाँ पर हम जिस असमानता की बात कर रहें है वह है वैचारिक असमाननता। यह व्यक्ति के विचार ही है जो समाज मे एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से भिन्न करते है अन्यथा सभी एक समान है। प्रत्येक व्यक्ति समाज में एक विशेष स्थान, महत्त्व रखता है लेकिन हमारे विचार ही इस प्रकार के है किसी के महत्व को नकार कर निम्न कर देते है तो किसी को अति विशिष्ठ इसलिए स्वयं को सामाजिक आर्थिक शैक्षणिक आदि रूप से सुदृढ़ करने के लिए ज्योतिष का सहारा लिया जाता है।
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