ज्योतिष के रचयिता माने जाने वाले ऋषि पराशर के अनुसार ग्रह पृथ्वी के उपर एक के बाद एक इस क्रम मे स्थित थे - पृथ्वी - सूर्य - चन्द्रमा - नक्षत्र - बुध - शुक्र - मंगल - गुरु - शनि. आधुनिक खगोल विज्ञान के अनुसार सूर्य से दूरी के अनुसार ग्रहों के क्रम हैं  बुध - शुक्र - पृथ्वी - मंगल - वृहस्पति - शनि - अरुण - वरुण। इस प्रकार से आप स्वयं सकते है कि ब्रह्मांड का सही ज्ञान नहीं होने से ग्रहों की सही स्थिति की गणना सम्भव नहीं थी अतः गलत आधार पर बना ज्योतिष बोगस है - जिसे किसी ऋषि ने नहीं बनाया था।
 स्थिर पृथ्वी के निकट सूर्य व चन्द्रमा सूर्य से भी दूर - इस जानकारी के आधार ग्रहण की गणना नहीं की जा सकती थी और आज के राहु केतु की जानकारी किसी ऋषि को नहीं थी न ही हो सकती थी न ही किसी शास्त्र मे ग्रहण की गणना की स्टीक विधि लिखी हुई है।
 सूर्यग्रहण - जब सूर्य तथा पृथ्वी के बीच चंद्रमा आ जाता है तो सूर्य की चमकती सतह चंद्रमा की वजह से दिखाई नहीं पड़ती है, इसे सूर्यग्रहण कहते हैं। यह तथ्य किसी ऋषि को ज्ञान नहीं था और ग्रहण का कारण स्वर्भानु नामक दैत्य को समझा जाता था।
 राहु केतु - चन्द्रमा और पृथ्वी की परिक्रमण कक्षा से बनने वाले दो कटान बिन्दु मात्र है स्वर्भानु दैत्य के द्वारा सूर्य/चन्द्र ग्रहण की मान्यता के आधार पर इन्हे छाया ग्रह कहा जाने लगा इनकी सही जानकारी किसी ऋषि को नहीं थी उनके अनुसार स्वर्भानु दैत्य ही था जो सूर्य व चन्द्रमा को खा जाता था।
 ऋषि ग्रहों की औसत गति से गणना करते थे उनकी सही गति का ज्ञान जो आज के खगोलशास्त्र द्वारा दिया गया है उसका ज्ञान उन्हे नहीं था।
 ब्रह्मांड के नियमित अध्ययन का आरम्भ क्लाडियस टालेमी के समय से हुआ उनका मत था कि पृथ्वी ब्रह्मांड का केन्द्र बिन्दु है तथा सूर्य एवं अन्य ग्रह इसकी परिक्रमा करते है। हजारों वर्षो तक टालेमी के ब्रम्हांड के माडल को ही सही माना जाता रहा था।
 टालेमी द्वारा प्रतिपादित ब्रह्मांड का स्वरुप इस प्रकार से था - केन्द्र मे पृथ्वी - चन्द्रमा - बुध - शुक्र - सूर्य - मंगल - गुरु - शनि - नक्षत्र।
 हजारो वर्षो तक पृथ्वी को स्थिर और सौरमंडल का केन्द्र बिन्दु माना जाता रहा व इसी आधार पर ज्योतिष के सिद्धांतो की रचना की गई थी।
 सूर्य सौरमंडल का केंद्र है और पृथ्वी सूर्य के गिर्द घूमती है,1543 ईस्वी मे यह बात निकोलस कॉपरनिकस ने कही थी। सर्वप्रथम कॉपरनिकस ने पृथ्वी के स्थान पर सूर्य को ब्रम्हांड का केन्द्र बिन्दु कहा और सौरमंडल की खोज की परन्तु चर्च द्वारा मान्यता न दिए जाने से वह अपनी खोज को सर्वमान्य रुप मे स्वीकृत नहीं करवा पाए।
 अरस्तु पृथ्वी को गोलाकार कहने वाले पहले खगोलशास्त्री(known) थे। ऋषियों के अनुसार पृथ्वी चपटी थी यदि किसी ने गोल कहा भी तो वह थाली की तरह गोलाकार कहा था न कि गेंद की तरह।
 वास्तव मे सर्वप्रथम आर्यभट्ट ने पृथ्वी को गोलाकार कहा था और पृथ्वी की परिधि की लम्बाई भी इसकी वास्तविक लम्बाई के निकट बताई थी परन्तु 1500 वर्ष तक भी किसी ने उनकी बात को नहीं माना था। आर्यभट्ट ने ही चन्द्र ग्रहण का कारण चन्द्रमा पर पृथ्वी की छाया का पङना बताया था।
 सूर्य के गिर्द घूमने वाले खगोलीय पिंड को ग्रह कहते है तथा ग्रहो के गिर्द घूमने वाले छोटे आकाशीय पिंड को उपग्रह कहते है। ज्योतिष की रचना के समय ग्रहों व उपग्रहों के मध्य का अन्तर नहीं जानते थे इसलिए सूर्य और चन्द्रमा ज्योतिष मे ग्रह बन गए।
 किसी स्थान का समय देशांतर रेखाओं के आधार पर ज्ञात किया जाता है जिसका ज्ञान किसी ऋषि को नहीं था। ऋषि न तो कुंडली बनाते थे न ही देशांतर की जानकारी के बिना सही कुंडली बनाना सम्भव था।
 बुध मंगल गुरु शुक्र शनि यह सभी ग्रह नंगी आखों से दिखाई देते है इनको देखने के लिए किसी यन्त्र की आवश्यकता नहीं होती है इसलिए ऋषियों द्वारा ग्रहों की खोज किया जाना कोई बङी उपलब्धि नहीं थी। असंख्य तारो ग्रहों व अन्य ब्रह्माडीय पिन्डो मे एक ग्रहों की पहचान करना उनकी विशेष उपलब्धि थी।
 अरुण वरुण और यम इन तीनों को बिना दूरदर्शी यन्त्र के नहीं देखा जा सकता है इसलिए ऋषियों को भी इनका ज्ञान नहीं था इस कारण उनके अनुसार हमारा सौरमंडल शनि ग्रह तक ही था।
 बुध ग्रह को सूर्योदय से 2 घंटे पहले पूर्वी क्षितिज पर और सूर्यास्त से दो घंटे बाद तक पश्चिमी क्षितिज पर देखा जा सकता है. शुक्र ग्रह को सूर्योदय से 4 घंटे बाद तक और सूर्यास्त के 4 घंटे बाद तक पश्चिमी क्षितिज पर देखा जा सकता है यही कारण है कि शुक्र को भोर व संध्या का तारा कहते है।
 बुध और शुक्र को छोङकर सभी ग्रहों के अपने उपग्रह(चन्द्रमा) है जिसमे गुरु और शनि के सर्वाधिक है कुछ उपग्रहों का आकार बुध ग्रह से भी बङा है।
 गैलिलियो वह पहले खगोलशास्त्री थे जिन्होने खोज कर 1609 ईस्वी मे कहा था कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है जिससे दिन रात बनते है। इस से पूर्व सूर्य के द्वारा पृथ्वी की परिक्रमा करने से ही दिन रात का बनना माना जाता था।
 ऋषियों द्वारा सायन पद्धति मान्य थी वह सायन पद्धति द्वारा ही खगोल की गणना करते थे न कि कुंडली बनाते थे। निरयन पद्धति ऋषियों के समय थी नहीं थी।
 अयनांश - निरयन व सायन के मध्य अन्तर के कारण ज्योतिष मे ग्रहों की सही स्थिति के जानने के लिए अयनांश की गणना की जाती है। सायन पद्धति मे अयनांश सदैव शून्य अंश ही होता है लेकिन निरयन पद्धति मे यह 24 अंश मान लिया गया जो वास्तव मे आज इस से भी कहीं अधिक हो चुका है निरयन पद्धति से बनाई जा रही कुंडली ही गलत है। अयनांश की गणना सही कुंडली बनाने के लिए अत्यन्त आवश्यक है और ऋषियों को अयनांश का ज्ञान ही नहीं था।
 तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा मे पृथ्वी और सूर्य की सटीक दूरी नहीं लिखी हुई है केवल भ्रमित करने के लिए दूरी व समय की ईकाई को आपस मे गुणा कर एक संख्या निकाल दी गई है जिसके बारे मे कोई व्यक्ति ध्यान नहीं देता है और तुलसीदास कवि थे न कि खगोलशास्त्री।
 ज्योतिष मे जातक शब्द केवल पुरुषों के लिए प्रयुक्त किया गया है। सभी सिद्धांत पुरुष वर्ग के लिए ही रचे गए है और स्त्रियों की कुंडली बनाई ही नहीं जाती थी। स्त्रियों की कुंडली न होने से विवाह के समय कुंडली मिलान असम्भव था अर्थात अष्टकूट मिलान जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी।
 भूत जलोकिया - विश्व की सबसे तीखी मिर्च मे से एक जो भारत के नागालैंड राज्य मे होती है इस पोस्ट मे लिखे सही तथ्यों को पढ़ने के बाद ज्योतिषीयों व ज्योतिष के समर्थको को वह लगेगी क्योंकि सही तथ्य प्रस्तुत करने के पश्चात उनके पास कहने को कुछ होता नहीं है इसलिए बोगस ज्योतिष को सही तो सिद्ध नहीं किया जा सकता है तो मिर्च की जलन को शांत करने के लिए बेतुकि व व्यर्थ की बातें लिखकर समय खराब करते है। ज्योतिष को सही करार देकर भ्रमित करने के लिए ज्योतिषीयों द्वारा आधुनिक ज्ञान को ऋषियों का ज्ञान बताकर प्रचारित किया जाता है उनके इस कार्य को और अधिक फैलाने का कार्य ज्योतिष के समर्थको द्वारा किया जाता है क्योंकि उनके अन्दर न आत्मविश्वास होता है न पुरुषार्थ करने की चाह और जिज्ञासा तो बिल्कुल नहीं होती है इसलिए वह कभी सत्य जान ही नहीं पाते है स्वयं तो ज्योतिषीयों की ठगी का शिकार बनते ही है साथ मे अन्य को भी बनाते है। व्यक्ति के अज्ञान का लाभ उठाकर ज्योतिषी आजीवन मूर्ख बनाते रहते है इसलिए मूर्ख बनना छोङिए और अपनी अक्कल का प्रयोग करना प्रारम्भ कर दीजीए इस से पहले की आने वाली पीढ़ी भी कोल्हू के बैल की तरह ज्योतिषीयों के द्वार पर आपकी तरह ही चक्की पीसती रहे।


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