अन्धविश्वास ने हमारे समाज को खोखला कर दिया है यह लकड़ी की उस दीमक
की तरह है जो एक बार लगने पर लकड़ी को अन्दर ही अन्दर खाती रहती है ठीक इसी प्रकार
से अन्धविश्वास व्यक्ति को मानसिक स्तर पर कमजोर करता है जिसके कारण वह ऐसी बातों
पर विश्वास करने लगता है जिसका कोई औचित्य नहीं होता है। एक बार अंधविश्वास के जाल
मे फसने के बाद व्यक्ति की मानसिक स्थिति का अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है
कि वह बिल्ली के रास्ता काटने पर, किसी कार्य को करने से पूर्व या घर से
जाते समय छींक आ जाने, रात को कुत्ते के भौंकने, कांच के टूटने, दूध उबलने, पूजा के समय दिए के बुझने आदि बातों को अपशकुन समझकर इनसे कुछ बुरा
होने के ख्याल से भयभीत होकर कार्य ही छोङ देते है। यदि ऐसा करना सम्भव नहीं हो तो
अपशकुन के कारण बुरे परिणाम से बचाव के लिए अनेक प्रकार के दाकियानुसी टोटके व
अन्य उपाय किए जाते है सरल शब्दो मे कहा जाए तो व्यक्ति जाने अनजाने मे ही एक
अन्धविश्वास से बचने के लिए दूसरे अन्धविश्वास का सहारा लेते है। इच्छानुसार कार्य
के होने, मनवांछित फल व निश्चित परिणाम की प्राप्ति हेतु व्यक्ति अन्धविश्वास
का सहारा लेते है जिसमे अनेक प्रकार के टोने टोटके व अन्य उपाय शामिल है जिनका
प्रचार व प्रसार “निश्चित
परिणाम की प्राप्ति” के लिए कहकर ही किया जाता है इसलिए व्यक्ति उन्हे आजमाने से नहीं
चूकते है। व्यक्ति यह तो जानते है कि कार खरीदने के लिए पैसों की आवश्यकता होती है
लेकिन पैसे कमाने के लिए कर्म करना पङता है यह नहीं समझते है न ही कर्म करने की
इच्छाशक्ति होती है फिर भी अपने भाग्यवादी विचारों से युक्त जीवन को समृद्ध और
खुशहाल बनाने का दिवास्वप्न सभी व्यक्तियों के द्वारा देखा जाता है जिसके लिए वह
अपने अन्धविश्वासी दिमाग का प्रयोग ग्रहों को प्रसन्न करने के किए करते है इस
उम्मीद मे की कभी न कभी तो कोई टोटका उपाय काम कर जाएगा - यह ठीक वैसा ही कि 100 तीर मे से एक तो निशाने पर सही लग ही
जाएगा - परन्तु यहां न तीर सही है और जिस पर निशाना लगाया जा रहा होता है वह ग्रह
सूदूर अन्तरिक्ष मे है न ही उनका व्यक्ति के कार्य से सम्बन्ध है तो क्या हासिल
होता है यह समझना मुश्किल नहीं है। आत्मविश्वास की कमी व पुरुषार्थ न करने की चाह
- यह मनुष्य को ज्योतिष, टोने टोटके, इत्यादि की ओर खीँच लाती है व्यक्ति ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए
टोटके करते रहते है परन्तु सब बेकार उनसे कोई लाभ नहीँ मिलता लेकिन व्यक्ति फिर भी
अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं करते है और अनेक ज्योतिषीयों के द्वार पर बैठे रहते है
इस उम्मीद मे कि कहीं कोई ज्योतिषी होगा जो उनके भविष्य को बदलने का सही टोटका बता
देगा लेकिन न ऐसा ज्योतिषी मिलता है न भविष्य बदलता है पर व्यक्ति कभी अपने अन्दर
झाँक कर नहीँ देखता कि सब समस्या व समाधान उसी के पास है वही सब कुछ कर सकता है
जरुरत है बस खोये हुए आत्मविश्वास को पुनः प्राप्त कर परिश्रम करने की।
अन्धविश्वास को एक वाक्य मे परिभाषित किया जाए तो तर्क व तथ्य रहित
विश्वास ही अन्धविश्वास कहलाता है। जैसे कि अच्छे कर्म करो तो स्वर्ग मिलता है
इसके पीछे का तर्क अच्छे कर्म करने के लिए प्रेरणा का स्तोत्र हो सकता है लेकिन
स्वर्ग मिलने के पीछे का तथ्य नदारद है क्योंकि स्वर्ग है या नहीं इसकी पुष्टि
केवल मृत व्यक्ति ही कर सकता है पर न तो कोई स्वर्ग से वापिस आकर इसकी पुष्टि करने
आने वाला है न ही पुष्टि का कोई अन्य साधन उपलब्ध है इसलिए यह केवल एक मान्यता है
और समाज मे अनेक प्रकार की मान्यताएं विद्यमान है जो वास्तव मे अन्धविश्वास ही है
लेकिन धार्मिक कारण, आस्था व श्रद्धा के चलते उन पर प्रश्न करने का अर्थ है स्वयं को
नास्तिक अधर्मी व मूर्ख कहलवाना और कोई भी व्यक्ति मूर्ख नहीं कहलाना चाहता है
इसलिए अंधविश्वासी भीड़ के साथ चलते रहते है और उसी मूर्खता के कारण अन्धविश्वास भी
चलता रहता है। दूसरों को मूर्ख कहना वाला स्वयं महामूर्ख क्यों न हो चूंकि उसके
अन्धविश्वासी मान्यताओं और धारणाओं का वैज्ञानिक तर्क/तथ्यों द्वारा खंडन किया
जाता है यही बात उसे पसंद नहीं आती है क्योंकि अन्धविश्वासी विचार दिमाग मे इस कदर
हावी होते है कि कभी उससे बाहर निकलने का प्रयास ही नहीं किया जाता है। यही बात
ज्योतिष पर भी लागू होती है यदि किसी शिक्षित व अति अन्धविश्वासी ज्योतिष समर्थक
से कहा जाए कि ज्योतिष बोगस है और ग्रहों का ऐसा कोई प्रभाव नहीं होता जो भविष्य
को बना अथवा बिगाङ सकता है तो यह बात उसे समझ मे नहीं आएगी क्योंकि दिमाग एक ही
दिशा मे कार्य करने के लिए नियोजित किया हुआ है और सदियों से चला आ रहे नियोजित पथ
(programming) को जब “आधुनिक शिक्षा” नहीं बदल पाई तो और कौन बदल सकता है।
शिक्षा और ज्ञान के प्रसार के उपरांत व्यक्ति ज्योतिष जैसे अन्धविश्वास मे लिप्त
है और रहेंगे क्योंकि उनके दिमाग का नियन्त्रण ज्योतिषीयों के हाथ मे है और हमेशा
रहेगा क्योंकि उनमे जिज्ञासा नहीं है यही उनके अन्धविश्वासी बने रहने का कारण है। 3 - अन्धविश्वास सदियों से चला आ रहा है
जो आज भी उसी रुप मे विद्यमान है प्राचीन काल मे अज्ञान के कारण जिन ग्रहों को
देवता माना जाता था वह आज भी देवता ही है। संकुचित दृष्टिकोण के कारण व्यक्ति किसी
भी विषय वस्तु को व्यापक स्वरुप मे देखने मे असमर्थ है इसलिए आधुनिक ज्ञान/विज्ञान
के महत्व को समझने मे अब भी असमर्थ है। अन्धविश्वासी व्यक्ति कभी भी स्वयं को
अन्धविश्वासी नहीं कहते है उन्हे लगता है कि उन्होने आधुनिक शिक्षा प्राप्त की है
खान पान रहन सहने आधुनिक वस्त्र पहनने फर्राटेदार अन्ग्रेजी बोलने से वह आधुनिक तो
दिखते है फिर कोई उन्हे अन्धविश्वासी कैसे कह सकता है इसलिए वह मानने को तैयार
नहीं होते कि खान पान रहन सहन आदि से आधुनिक तो हो गए लेकिन विचारों से अभी भी
अन्धविश्वासी ही है। सुबह से शाम तक अन्धविश्वास मे डूबे रहने वाले व्यक्ति कहते
हुए नजर आते है कि वह अन्धविश्वासी कहां है अपनी आस्था श्रद्धा व अज्ञान के वशीभूत
किए जाने वाले कार्यो को वह अन्धविश्वास का नाम नहीं देते है पृथ्वी से करोङो
कि.मी. दूर स्थित ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए सारा दिन टोटके करते रहेगें ताकि
गैस से निर्मित तारे और ग्रह उनके भविष्य को सही कर दे उनके लिए मसूर दाल बहाना
अन्धविश्वास नहीं है बल्कि यह तो विज्ञान है जो करोङो कि.मी. दूर ग्रहों को ठीक
करने के लिए किया जाता है अगर कोई बुद्धिमान व्यक्ति इस पर प्रश्न करे कि किसी
टोटके से ग्रह कैसे ठीक होते है तो वह आस्था व श्रद्धा की दुहाई देते नजर आते है
कि मानो तो गंगा नहीं तो बहता पानी ऐसे बेअक्कल व्यक्तियों को कभी कभी मन करता है
कि एक जोरदार थप्पङ रसीद कर दूं और कहूं कि मानो तो भूकम्प नहीं तो थप्पङ और मुझे
पूरा विश्वास है कि वह थप्पङ ही मानेगें परन्तु बात थप्पङ मारने की नहीं है बात है
ज्ञान की, किसी विषय वस्तु की जानकारी की। व्यक्ति थप्पङ और भूकम्प मे अन्तर को
तो पहचानते है परन्तु जब बात आती है उनके अन्धविश्वास और विज्ञान की तो
अन्धविश्वास के साथ यूं चिपक जाते है जैसे छिपकली दीवार से चिपकती है अधिकतर आबादी
इसी तरह से अन्धविश्वास की जर्जर दीवार से चिपक कर उसे गिरने से बचाए हुए है।
व्यक्ति मूर्ख बनकर जीवन गुजार देगें लेकिन एक पल के लिए भी अपने दिमाग से काम
नहीं लेगें ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए टोटके करते रहेगें लेकिन यह विचार नहीं
करेगें कि टोटके करने से ग्रह कैसे ठीक होते है पानी मे बहाए गए बताशे रेवङिया
मसूर दाल लोहा सीसा आदि वस्तुओं से ग्रह कैसे सही हो जाएगें, हमारे भूत वर्तमान भविष्य का ग्रहों से क्या सम्बन्ध है आदि। आज के
वैज्ञानिक युग मे भी अन्धविश्वास इतना हावी है कि व्यक्ति सूर्य ग्रहण चन्द्र
ग्रहण जैसी खगोलीय घटनाओं के वैज्ञानिक कारण को अनदेखा कर ऐसे राहु केतु रुपी
अन्धविश्वास के साथ बने रहते है जो वास्तव मे कहीं है ही नहीं केवल प्राचीन काल का
अज्ञान था और आज एक अन्धविश्वास मात्र है। अन्धविश्वास हर युग मे था हर युग की
मान्यताओं व धारणाओं के अनुसार अनेक रुप मे विद्यमान था और है समय के साथ
अंधविश्वास का स्वरूप भी बदला है प्राचीन समय मे जहां तिलक न लगाने वाले को नास्तिक
अधर्मी समझा जाता था वहीं आज पैंट कोट टाई न पहनने वाले को गंवार समझा जाता है
दोनो ही बातें अपने आप मे एक अन्धविश्वास है आपको ऐसे व्यक्ति भी मिल जाएगें जो
बिना आधुनिक कहे जाने वाले पहनावे के बावजूद भी सभ्य व शिक्षित है और ऐसे भी
व्यक्ति है जो रहन सहन पहनावे से आधुनिक तो दिखते है लेकिन विचारों से किसी जानवर
से भी गए गुजरे है। समाज मे अनेक प्रकार के ऐसे ऐसे अंधविश्वास प्रचलित है की
जिनके बारे मे सुनते ही किसी भी व्यक्ति को हंसी आ जाएगी और जिनका न कोई आधार है न
कोई ठोस तर्क लेकिन फिर भी व्यक्ति के अंधविश्वासी मन मे बैठे हुए किसी अनजाने डर
के कारण वह चाहकर भी उसे नकार नहीं सकते है क्योंकि सदियों से पूर्वज उसी परम्परा
को निभाते आ रहें है अतः उनके सम्मान स्वरूप यह अति आवश्यक हो जाता है की उन्हीं
कुरीतियों को अपने भविष्य की पीढ़ी को पारिवारिक धरोहर के रूप मे हस्तांतरित किया
जाए। अच्छे संस्कार के नाम पर अपनी भावी पीढ़ी को अन्धविश्वासी बनाकर उन्हे हमेशा
के लिए निर्बुद्धि कर्महीन और भाग्यवादी बनाना समझदारी का कार्य तो नहीं कहा जा
सकता है इसलिए अपने बच्चो को ऐसे संस्कार दीजीए जिससे उनके व्यक्तित्व व चरित्र का
विकास हो वह आत्मविश्वासी आत्मनिर्भर बने न कि भाग्यवादी कर्महीन जीवन जीकर
ज्योतिषीयों के द्वार से द्वार भटकते रहें।
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