नोट - ज्योतिष के बोगस सिद्धांतो की यह श्रृंखला केवल और केवल जिज्ञासु (अर्थात जो व्यक्ति अपनी बुद्धि व विवेक अनुसार कार्य करने में सक्षम है, कुछ नया सीखना जानना चाहते है) मित्रों के लिए ही है अन्य व्यक्तियों के लिए नहीं।
सिद्धांत - भौमक्षेत्रे यदि जीव: जीवक्षेत्रे च: भौम: राजदंड:।
स्वरूपेणं द्वादशाब्दे भवेनमृत्यु रक्षते यदि शंकर:।।
यदि मंगल और बृहस्पति मे राशि परिवर्तन हो रहा हो (अर्थात दोनो एक दूसरे की राशि मे स्थित हो) तो जातक 12 वर्ष की आयु मे दण्ड स्वरुप मृत्यु को प्राप्त होता है। ऐसे जातक को भगवान शिव चाह कर भी नहीं बचा सकते है।
विश्लेषण - मंगल मेष और वृश्चिक राशि का और गुरु धनु और मीन राशि का स्वामी होता है दोनों ही का एक दूसरे की राशि में आना जाना लगता है तो जब भी यह योग बनेगा लगातार 45 दिन तक रहेगा जैसे की - 17/02/1983 से 28/03/1983 तक। 14/02/1988 से 28/03/1988 तक। 09/10/1999 से 18/11/1999 तक। 05/02/2000 से 15/03/2000 तक। 09/01/2007 से 18/02/2007 तक। मंगल और गुरु दोनों एक दूसरे की राशि में स्थित थे तो क्या यह सम्भव है कि इस अवधि मे उत्पन्न हुए सभी बच्चों को 12 वर्ष की आयु मे मृत्यु दण्ड मिल चुका हो - कोई भी जीवित न हो जबकि देश के कानून अनुसार 16 वर्ष की आयु से कम के बच्चों को सजा के तौर पर बाल सुधार गृह में रखा जाता है न की मृत्यु दंड दिया जाता है। इस सिद्धांत का स्पष्ट अर्थ है कि मंगल और गुरु के राशि परिवर्तन के समय अवधि के दौरान उत्पन्न सभी बच्चे अपराधी बनेंगे तभी उन्हें मृत्यु दंड दिया जाएगा परंतु क्या मंगल और गुरु के राशि परिवर्तन के 45 दिन के समय अवधि के दौरान उत्पन्न हुए करोड़ों बच्चे अपराधी ही बनेंगे यह संभव नहीं है, जब संभव नहीं है तो सिद्धांत भी बोगस है। सिद्धांत को आप ग्रहों के प्रभाव के परिपेक्ष्य में भी देख सकते है यदि ग्रहों का मनुष्य के भविष्य पर कोई प्रभाव होता और ग्रह ज्योतिष के सिद्धांत अनुसार ही कार्य करने को बाध्य होते तो उपरोक्त सिद्धांत अनुसार जब भी यह योग बनता उस समय पैदा हुए सभी बच्चे अपराधी ही बनते और 12 वर्ष की आयु में कोई ऐसा संगीन अपराध करते जिसकी सजा केवल मृत्यु दंड ही हो। इस विश्लेषण से स्पष्ट है कि ज्योतिष के सिद्धांत बिना किसी अध्ययन व शोध के बनाए गए थे किसी की कुंडली में ग्रह योग देखा और सिद्धांत बना दिया जो आज भी यथावत जारी है ज्योतिषी ग्राहक की जेब अनुसार सिद्धांत बनाते रहते है - जैसा ग्राहक वैसा सिद्धांत। यह संभव है कि तत्कालीन समय में किसी को 12 वर्ष की आयु में मृत्यु दंड दिया गया हो लेकिन आज यह प्रासंगिक नहीं है इसलिए बोगस है। भारत के सन्दर्भ में विवेचन करें तो भारतीय कानून के अनुसार 12 वर्ष की आयु में किसी भी बालक को मृत्यु दंड नहीं दिया जाता है बल्कि किसी भी अपराध के लिए बाल सुधार गृह में रखा जाता है। इस प्रकार से जिज्ञासु मित्र स्वयं समझ सकते है कि सही ज्योतिषी बोगस सिद्धांतो से सही भविष्यवाणी का दावा कर किस प्रकार से ज्योतिष से अंजान मित्रों को मूर्ख बनाकर ठगी का धंधा कर रहें है।
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